नई दिल्ली: फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) का कहना है कि वह राज्यों को बड़ी मात्रा में गेहूं, चावल और दाल दे रहा है. जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और हाल ही में घोषित प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत गरीब लाभार्थियों के लिए है.
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के सूत्रों ने बताया, जिसके तहत एफसीआई कार्य करता है ने, दिप्रिंट को बताया कि खाद्यान्न वितरण की रिकॉर्ड आपूर्ति के बावजूद कोविड -19 लॉकडाउन अवधि के दौरान राज्य लाभार्थियों तक अनाज नहीं पहुंचा रहे हैं या जो पहुंचा रहे हैं वह बहुत ही सुस्त प्रक्रिया है.
जबकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 81.35 करोड़ लाभार्थी प्रति माह 5 किलोग्राम चावल / गेहूं के हकदार हैं, उन्हें हाल ही में घोषित पीएमजीकेवाई के तहत अगले तीन महीनों के लिए प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम अतिरिक्त खाद्यान्न देने की बात कही गई है.
सूत्रों ने कहा कि एफसीआई ने 22 अप्रैल तक 40.03 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) की आपूर्ति की है, लेकिन राज्यों ने लाभार्थियों को केवल 19.6 एलएमटी वितरित किया. इसी तरह, पीएमजीकेवाई के 81.35 करोड़ लाभार्थियों में से केवल 39.27 करोड़ को ही खाद्यान्न दिया गया है.
बिहार और मप्र सबसे खराब
उपभोक्ता मंत्रालय के अंतगर्त आने वाले फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन के सूत्रों ने बताया कि खाद्यान्न वितरण में बिहार सबसे खराब है उसके बाद मध्य प्रदेश का नंबर आता है.
अधिकारी ने यह भी बताया कि वहीं दूसरी तरफ दोनों योजनाओं के तहत अनाज बांटने में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने अच्छे से अनाज वितरण का काम किया है.
अधिकारी ने यह भी बताया कि कुछ राज्यों ने तो पीडीएस को यूनिवर्सल तरीके से वितरित किया है. यानी जिन लाभार्थियों के पास राशन कार्ड नहीं है उन्हें भी इस योजना का फायदा दिया जा रहा है.
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एक दूसरे अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, बिहार में सिर्फ 63,280 मिट्रिक टन गेहूं ही बांटा गया है जबकि एफसीआई से उन्होंने 7.3 लाख मिट्रिक टन गेहूं उठाया है. वहीं मध्य प्रदेश ने भी अभी तक 39.840 मिट्रिक टन अनाज ही अभी तक बांटा है जबकि उसने भी एफसीआई से 2.6 एलएमटी गेहूं लिया था.
अधिकारी ने आगे बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 एलएमटी गेहूं लिया था प्रधानमंत्री ग्रामीण कल्याण योजना के अंतर्गत और वह अभी तक 3.7 एलएमटी बांच भी चुका है, ठीक वैसे ही छत्तीसगढ़ ने भी पीएमजीके वाई के तहत 2 एलएमटी गेहूं लिया था और वह 0.8 एलएमटी बांट भी चुका है.
दाल का भी वैसा ही हाल
दाल के साथ भी गेंहूं जैसा ही हाल हुआ है
22 अप्रैल तक, पीएमजीकेवाई के तहत वादा किए गए दालों का केवल 10 प्रतिशत वितरित किया गया है. केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, राज्यों ने 1.95 एलएमटी के कुल महीने के आवंटन से लाभार्थियों को महज़ 19,496 मीट्रिक टन दालों का ही वितरण किया है.
लेकिन अधिकारियों का यह भी मानना है कि राज्यों को 1.95 एलएमटी दालों के मासिक आवंटन का केवल 1,22,312 मीट्रिक टन ही जारी किया गया है. इसमें से केवल 19,496 मीट्रिक टन लाभार्थियों के बीच वितरित किया गया है.
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि पीएमजीकेवाई के तहत खाद्यान्न और दलहन वितरण में बैकलॉग का कारण कई राज्य एजेंसियां उन्हें खरीद रही थीं.
अधिकारी ने बताया, ‘अपनी पीएमजीकेवाई की आवश्यकता से पहले, इन राज्यों ने ओपन मार्केट सेल्स स्कीम (ओएमएसएस) के तहत भारी मात्रा में खाद्यान्न उठा लिया है. यह राज्य में आटा मिलों को गेहूं उपलब्ध कराने और बाजार में आपूर्ति की कमी को कम करने के लिए किया गया था.’ ‘इसके साथ, जिला मजिस्ट्रेट / कलेक्टर भी एफसीआई डिपो से सीधे खाद्यान्न उठा रहे थे.’
अधिकारी ने आगे कहा, यह खाद्यान्न का आवंटन, एनएफएसए आवंटन से अलग था जो पीएमजीकेवाई के तहत किया गया जा रहा है. अधिकारी ने कहा, ‘अब, राज्यों को विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में आटा आपूर्ति श्रृंखला को बनाए रखने के लिए इसे वितरित करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, जिससे पीएमजीकेवाई खाद्यान्न वितरण में थोड़ी देरी हो रही है.”
योजनाओं के चपेट में एनएफएसए
यहां तक कि जब केंद्र सरकार ने कम अनाज वितरण की शिकायत की, तो एनएफएसए खुद लाभार्थियों की सूची के आधार पर चपेट में आ गया.
नीति विशेषज्ञों का तर्क है कि चूंकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013, 2011 की जनगणना पर आधारित है, इसलिए राशन कार्ड में गरीब परिवारों के नाम बाद में नहीं जोड़े गए हैं.जबकि कुछ राज्यों ने राशन कार्ड के बिना भी मुफ्त प्रावधानों का लाभ उठाने की लाभार्थियों को अनुमति दी है, लेकिन अधिकतर राज्यों ने ऐसा नहीं किया है.
अंबेडकर विश्वविद्यालय और भोजन के अधिकार अभियान के की प्रमुख सदस्य और शिक्षक दीपा सिन्हा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया ,’एनएफएसए अधिनियम, 2013, 2011 की जनगणना पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि जनगणना के बाद परिवार के सदस्य जोड़े गए, जो लगभग नौ साल आयोजित किया गया था उन सभी का नाम राशन कार्ड में नहीं है.
दूसरी बात, चूंकि 2011 के बाद अभी तक कोई नई जनगणना नहीं की गई है जबकि जनसंख्या इस दौरान कई गुना बढ़ चुकी है. गरीबों और जरूरतमंदों के एक बड़े हिस्से के पास राशन कार्ड नहीं है और इसलिए वे मुफ्त राशन के पात्र नहीं हैं.
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