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Monday, 11 August, 2025
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टोंगा के निकट ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान सबसे तेजी से समुद्र में लावा का प्रवाह हुआ : अध्ययन

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नयी दिल्ली, 10 सितंबर (भाषा) दक्षिणी प्रशांत सागर स्थित टोंगा द्वीप के नजदीक 2022 में समुद्र में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान जलमग्न ज्वालामुखी विस्फोट के इतिहास में सबसे अधिक गति से लावा निकला था। यह खुलासा एक नए अनुंसधान में हुआ है जिसे साइंस पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

जीएनएस साइंस, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वॉटर एंड एटमॉस्फियेरिक रिसर्च (एनआईडब्ल्यूए) और न्यूजीलैंड, टोंगा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, अमेरिका तथा ब्रिटेन के अन्य संस्थानों के अनुसंधान के मुताबिक इस लावा प्रवाह से दक्षिण प्रशांत द्वीपसमूह को शेष दुनिया से जोड़ने वाले एवं समुद्र में बिछे दो दूरसंचार केबल क्षतिग्रस्त हो गए थे।

अनुसंधान के मुताबिक 15 जनवरी, 2022 को जब जलमग्न हंगा टोंगा-हंगा हा आपाई ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ तो उससे निकलने वाला मलबा आसमान में 57 किलोमीटर की ऊंचाई तक उछला।

अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अनुसंधान पत्र में कहा कि विस्फोट के बाद निकली सामग्री पहले ऊंचाई पर गई और इसके बाद वापस सतह पर गिरने से गर्म लावा, राख और गैस की बारिश जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। यह स्थिति करीब एक घंटे तक रही और समुद्र तल पर मलबा 122 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गिरा।

उन्होंने कहा कि यह गति किसी भी दर्ज की गई गति से 50 प्रतिशत अधिक थी, जिससे टोंगा द्वीप से करीब 80 किलोमीटर दूर समुद्र के नीचे बिछाए गए संचार केबल को भारी नुकसान हुआ। अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक ज्वालामुखी विस्फोट से समुद्र तल से करीब 850 मीटर नीचे एक बड़ा क्रेटर (गड्ढा) भी बन गया।

ज्वालामुखी विस्फोट के तुरंत बाद समुद्री तल से लिए गए नमूनों और सर्वेक्षणों से पता चला कि इन शक्तिशाली और घने मलबे से भारी नुकसान हुआ।

अनुसंधानपत्र के सह लेखक एवं जीएनएस साइंस के कर्नल डी रोंड ने बताया, ‘‘ज्वालामुखी विस्फोट के बाद मलबा जिस ऊंचाई से नीचे गिरा उससे समुद्र में तेज गति से उथलपुथल हुई और यह समुद्र में बिछे केबल को होने वाले नुकसान की व्याख्या करता है।’’

अध्ययन में कहा गया है कि इन धमाकों से पानी के नीचे उत्पन्न तरंगों के अध्ययन से उन्हें दुनिया भर में जलमग्न ज्वालामुखियों से पैदा होने वाले खतरों को समझने में मदद मिली।

एनआईडब्ल्यू के वैज्ञानिकों को टोंगा में हुए ज्वालामुखी विस्फोट को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के साथ मिलाकर यह अनुमान लगाने के लिए प्रेरित किया है कि इस वर्ष ओजोन छिद्र सामान्य से अधिक समय तक बना रहेगा। उनका मानना है कि संभव है कि यह छेद दक्षिणी गोलार्द्ध की गर्मियों की शुरुआत तक बना रहे।

एक अलग बयान में, उन्होंने कहा कि ज्वालामुखी विस्फोट से असामान्य मात्रा में जलवाष्प पृथ्वी के वायुमंडल में चला गया।

जल वाष्प ग्रीनहाउस गैस प्रभाव पैदा करता है और अंटार्कटिका के ऊपर बादल बनाकर ओजोन की कमी को बढ़ाता है। ओजोन गैस सूर्य से हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित करते हैं जो त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ओजन पृथ्वी पर जीवन के लिए सनस्क्रीन की तरह काम करते हैं।

एनआईडब्ल्यू ने बयान में कहा ऐसे संकेत हैं कि अंटार्कटिक ओजोन छिद्र, जिसका अधिकतम विस्तार आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में होता है और नवंबर या दिसंबर में गायब हो जाता है, इस साल की शुरुआत में ही बन सकता है।

भाषा धीरज रंजन

रंजन

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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