चंडीगढ़, 15 फरवरी (भाषा) हरियाणा सरकार ने बृहस्पतिवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि किसान संगठन उत्तरी राज्यों की जीवन रेखा को बाधित करने पर तुले हुए हैं और उनके आंदोलन को लेकर राज्य के लोगों में ‘भय का भाव’ है।
राज्य सरकार ने यह तर्क कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश जी.एस.संधावालिया और न्यायधीश विकास सूरी की पीठ के समक्ष दाखिल हलफनाम में दिया।
अदालत ने मंगलवार को किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र, हरियाणा और पंजाब राज्यों को स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया था।
पंजाब सरकार ने एक अलग हलफनामे में कहा कि बृहस्पतिवार शाम तक, शंभू बॉर्डर पर लगभग 1,120 ट्रैक्टर और 1,320 ट्रॉलियों के साथ करीब 12,000-13,000 लोग और खनौरी बॉर्डर 450 ट्रैक्टर और 470 ट्रॉलियों के साथ लगभग 4,000-5,000 किसान जमा हुए थे।
हरियाणा के अपर मुख्य सचिव (गृह) टीवीएसएन प्रसाद की ओर से अदालत में दाखिल हलफनामा में स्थिति रिपोर्ट दी गई है। इसके अनुसार ‘किसान मजदूर मोर्चा’ और ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ (गैर-राजनीतिक) के बैनर तले कुछ किसान संगठनों ने बिना किसी अनुमति के या राज्य के अधिकारियों को सूचित किए ‘दिल्ली चलो’ मार्च का आह्वान किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक खुफिया जानकारी है कि हजारों की संख्या में आंदोलनकारी संशोधित ट्रैक्टर/ट्रॉलियों में हथियार रखकर दिल्ली में डेरा डालने के इरादे से जाएंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह भी सूचना है कि वे संसद का ‘घेराव’ करेंगे।
हरियाणा सरकार ने हलफनामा में कहा कि 2020-21 में एक साल तक चली दिल्ली की घेराबंदी की तर्ज पर योजना बनाई है जिसकी वजह से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में सामान्य यात्रियों के साथ-साथ वस्तुओं और आवश्यक सेवाओं की आवाजाही बाधित हो गई थी।
सरकार ने कहा कि किसान संगठनों का पिछला आंदोलन न केवल हिंसक था, बल्कि आंदोलनकारियों के अपराध में भी संलिप्त होने के मामले आए। किसानों ने 26 जनवरी, 2021 को दिल्ली में हंगामा किया और लाल किले से तिरंगे को हटा दिया।
हरियाणा सरकार ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने सभी प्रमुख अंतरराज्यीय सीमाओं के प्रवेश बिंदुओं पर बहुस्तरीय अवरोधक लगाए हैं। इसमें कहा गया, ‘‘इसलिए, यदि आंदोलनकारियों को आगे बढ़ने की अनुमति दी गई, तो वे हरियाणा राज्य की तरफ दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाल देंगे जैसा उन्होंने पिछली बार किया था।’’
हलफनामा में कहा गया, ‘‘राजमार्गों पर किसानों के डेरा डालने से लोगों, सामान और आवश्यक सेवाओं की आवाजाही पर बुरा असर पड़ेगा।’’
राज्य सरकार ने कहा, ‘‘किसान संगठन उत्तरी भारतीय राज्यों की जीवनरेखा को रोकने पर तुले हैं। इसलिए, ऐसी स्थिति में अधिकारी आंदोलनकारी किसानों को हरियाणा में प्रवेश करने से रोककर नागरिकों, वस्तुओं और आवश्यक सेवाओं की आवाजाही को बनाए रखने के लिए कानून के अनुसार गंभीर प्रयास कर रहे हैं।’’
याचिकाकर्ता उदय प्रताप सिंह ने किसान आंदोलन के खिलाफ हरियाणा, पंजाब और केंद्र सरकार द्वारा ‘अवरोधक’ खड़े करने की कार्रवाई पर रोक लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।अदालत में अब इस मामले पर अगली सुनवाई 20 फरवरी को होगी।
भाषा धीरज माधव
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