नई दिल्ली: 20 साल की ममता सिंह परीक्षा देने के बाद घर जाते समय दिल्ली के मंडी हाउस स्टेशन पर मेट्रो का इंतज़ार कर रही हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी इरविन कॉलेज में बी.ए. प्रोग्राम फाइनल ईयर की स्टूडेंट, सिंह ने करियर ऑप्शन्स के बारे में सोचना शुरू ही किया था कि परिवार ने उन्हें संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में बैठने की सलाह दी.
परिवार की सलाह और सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट ने उन्हें सिविल सेवाओं को एक मौका देने के लिए राजी किया.
ममता ने कहा, “मैंने सोशल मीडिया और अखबारों में महिला आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को देखा है. यह बहुत आकर्षक है आप सच में अपने देश और समाज के लिए कुछ अच्छा कर सकते हैं. मैं जानती हूं कि इसके लिए बहुत पढ़ाई और कोशिश की ज़रूरत है, लेकिन सपने तो कोई भी देख सकता है.”
यूपीएससी के लिए एप्लिकेशन फॉर्म भरने के बाद ममता एक कोचिंग सेंटर की तलाश करेंगी, वो अगले साल परीक्षा देने की योजना बना रही हैं.
जैसे ही वह मेट्रो में चढ़ती हैं, वह गर्व से बताती हैं, “मैं अपनी फैमिली की पहली लड़की हूं जिसने एक अधिकारी बनने के बारे में सोचा. पहले मेरे परिवार में लड़कियों को 12वीं कक्षा के बाद पढ़ने की इज़ाज़त नहीं थी.”
ममता की तरह भारत में लाखों लड़कियां हैं जो सिविल सेवाओं में शामिल होने का सपना देख रही हैं और पिछले साल में यह संख्या तेज़ी से बढ़ी है. जबकि सिविल सेवा एक ऐसा लक्ष्य है जो कई भारतीय माता-पिता अपने बच्चों के लिए तय करते हैं, अखबारों, सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर यूपीएससी परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवारों की प्रेरक कहानियां मोटिवेशन का काम करती हैं.
पिछले 15 साल में यूपीएससी परीक्षा के लिए अप्लाई करने वाली लड़कियों की संख्या कुल एप्लीकेंट्स की वृद्धि को पार करते हुए लगभग चार गुना बढ़ गई है.
यूपीएससी की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2007-08 में 3.83 लाख एप्लीकेंट्स ने अप्लाई किया था, जिनमें से 87,624 महिलाएं थीं. यह कुल एप्लीकेंट्स का लगभग 23 प्रतिशत था. 2021-22 तक के उपलब्ध डेटा में परीक्षा के लिए एप्लीकेंट्स की कुल संख्या 10.4 लाख हो गई — तीन गुना से थोड़ी कम — जबकि महिला एप्लीकेंट्स की संख्या 3.37 लाख हो गई, जो 2007-08 के मुकाबले लगभग चार गुना अधिक है. आसान शब्दों में कहें तो यूपीएससी एप्लीकेंट्स की कुल संख्या में लगभग एक तिहाई महिलाएं हैं.
यूपीएससी की वार्षिक रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चला है कि 2021-22 में यूपीएससी पद के लिए अनुशंसित उम्मीदवारों में लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं थीं, जो 2007-08 में लगभग 21 प्रतिशत थीं.
तो ऐसी क्या बात है जो ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को सिविल सेवाओं का चयन करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है?
2011 बैच की आईएएस अधिकारी हेफसिबा आर कोरलापति कहती हैं, “मुख्य कारण जागरूकता और पीढ़ीगत बदलाव है. अब, महिलाएं ज्यादा करियर-ओरिएंटेड और महत्वाकांक्षी हैं, उन्हें अपने परिवार, समाज और सरकार से भी सपोर्ट मिलता है.”
उन्होंने कहा कि महिलाओं के पास अब ज्यादा मौके होते हैं और यूपीएससी के लिए किसी स्पेशल डिग्री की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने आगे कहा, “कोई ओपन से भी ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी कर सकता है और परीक्षा में सफल होने के लिए दृढ़ रह सकता है. लक्ष्य-निर्धारण, लगन और तैयारी मायने रखते हैं.”
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए फोन और ईमेल के जरिए यूपीएससी अध्यक्ष मनोज सोनी से संपर्क किया था, उनका जवाब आने के बाद इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
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बेहतर सुरक्षा
महिलाओं को घर से बाहर निकलकर पढ़ाई करने से रोकने के लिए सुरक्षा एक प्रमुख कारक हुआ करती थी. माता-पिता बेटियों को अलग-अलग राज्यों या यहां तक कि अलग-अलग जिलों में भेजने में सहज नहीं थे, लेकिन अब, अधिक महिलाएं पढ़ाई के लिए बाहर जा रही हैं.
बिहार के गोपालगंज से यूपीएससी की तैयारी करने वाली 26-वर्षीय सीमा कुमारी कहती हैं, “मुझे याद है जब मैं स्कूल में थी और मेरी चाची सरकारी नौकरी की तैयारी करना चाहती थीं, तो दादाजी ने सुरक्षा कारणों से तैयारी से इनकार कर दिया था. बेटी को दूसरे शहर भेजना हमारे परिवार के लिए बहुत बड़ी बात थी, लेकिन जब मैं बड़ी हुई और यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने की इच्छा जताई, तो मेरे पापा ने मुझे पटना के एक कोचिंग सेंटर में भेज दिया.”
सीमा के परिवार में लड़कियों को “सरकारी नौकरी के सपने देखने की भी इज़ाज़त नहीं थी”. इसके लिए कई कारक जिम्मेदार थे, जिनमें सुरक्षा, पैसा और घर से दूरी शामिल थी.
अब, सोच बदलने और डिजिटल कम्युनिकेशन के साथ माता-पिता शिक्षा या करियर की तलाश में बेटियों को घर से दूर भेजने में चिंतित नहीं होते. इसमें सरकारी नौकरी के साथ मिलने वाली सुरक्षा और वित्तीय स्वतंत्रता भी शामिल है.
कुमारी कहती हैं, “मेरे पिता खुद एक सरकारी कर्मचारी हैं, वो सरकारी नौकरी की वैल्यू जानते हैं. वे चाहते हैं कि मेरे पास एक सुरक्षित नौकरी हो और मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो जाऊं ताकि शादी के बाद मुझे अपने ससुराल वालों पर निर्भर न रहना पड़े.”
उन्होंने कहा, “यह (सिविल सेवा) भारत में सबसे अच्छी सरकारी नौकरी है. आप समाज और देश में वास्तविक बदलाव ला सकते हैं और हमें हर मोर्चे पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व की ज़रूरत है.”
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फैमिली सपोर्ट प्रमुख फैक्टर
24-साल की लक्ष्मी गुलिया की एक साल पहले शादी हुई थी. शादी से पहले ही उन्होंने अपने ससुराल वालों को बता दिया था कि वे एक आईएएस अधिकारी बनना चाहती हैं.
इस सपने को शादी-शुदा ज़िंदगी के साथ पूरा करना आसान नहीं था, लेकिन इससे उनकी गति धीमी नहीं हुई. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मैं सुबह 5 बजे उठती हूं और कोचिंग के लिए करोल बाग जाती हूं. हर रोज़ आठ घंटे पढ़ाई करती हूं. घर का काम भी देखती हूं, लेकिन मेरा परिवार बहुत सपोर्टिव है वो मुझे पढ़ाई के लिए मोटिवेट करते हैं.”
25-वर्षीय पौरवी जैन के लिए यह चार साल की कठिन तैयारी रही है. वो इस साल अपना पहला यूपीएससी इंटरव्यू देंगी.
पौरवी कहते हैं, “मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से बेहतर शिक्षा पाने और स्वतंत्र होने के लिए यह मेरे परिवार का सपोर्ट और प्रेरणा रही है. सामान्य तौर पर मुझे लगता है कि समाज के रवैये में बदलाव आया है, जिससे महिलाओं को मौके मिलने लगे हैं.”
ये फैक्टर हो सकते हैं कि उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) के अनुसार, भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों में महिला छात्राओं के नामांकन का प्रतिशत, 10 साल में यानी 2010-2011 के 45 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 49 प्रतिशत (नवीनतम डेटा उपलब्ध) हो गया है.
‘सरकार महिला एप्लीकेंट्स को कर रही है प्रोत्साहित’
एक अन्य कारक जो अधिक महिलाओं को यूपीएससी परीक्षा देने के लिए प्रेरित कर रहा है, वह है उन्हें प्रोत्साहित करने का सरकार का दृष्टिकोण.
यूपीएससी परीक्षा अधिसूचना के हर एक पृष्ठ में नीचे एक पंक्ति लिखी होती है, “सरकार एक ऐसा वर्कफोर्स बनाने की कोशिश कर रही है जो लिंग संतुलन को दर्शाता हो. महिला उम्मीदवारों को आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. फॉर्म भरने के लिए उन्हें कोई फीस भी नहीं देनी होगी.”
उक्त आईएएस अधिकारी कोरलापति कहती हैं, “हालांकि, सामान्य वर्ग के लिए शुल्क नाममात्र है, लेकिन महिलाओं को परीक्षा के लिए आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए यह सरकार की एक स्पष्ट और साहसिक पहल है.”
डिजिटल लाभ
यह सर्वविदित है कि यूपीएससी परीक्षा पास करने के लिए एप्लीकेंट्स को कई विषयों की जानकारी होनी चाहिए. पहले, इसका मतलब था कि अभ्यर्थी अखबारों और जनरल नॉलेज की किताबों को खंगालते थे, घंटों लाइब्रेरी में बिताते थे.
यह भी महिला एप्लीकेंट्स के लिए एक बाधा थी क्योंकि परिवार उन्हें घंटों तक घर से बाहर रहने देने के लिए तैयार नहीं थे. इंटरनेट, विशेष रूप से यूट्यूब जैसे वीडियो पोर्टल्स के साथ अब, पढ़ाई के लिए कंटेंट आसानी से उपलब्ध है, जिससे कई उम्मीदवारों को अपने घरों से तैयारी करने में मदद मिल रही है.
2015 बैच की आईएएस अधिकारी इरा सिंघल कहती हैं, “ऑनलाइन जानकारी और कंटेंट तैयारी में मददगार हैं. आपको स्टडी मटेरियल के लिए बाहर जाने की ज़रूरत नहीं है, आप इसे ऑनलाइन देख सकते हैं. महिलाओं को परिवार वाले सपोर्ट कर रहे हैं, वो शादी के बाद, तलाक के बाद भी सेवाओं में आ रही हैं.”
वे आगे कहती हैं, “समय के साथ समाज बदल रहा है और अब परिवार बेटियों के करियर को लेकर बहुत उत्सुक हैं. जागरूकता बढ़ी है और मीडिया ने इसमें अहम भूमिका निभाई है. वे प्रेरणादायक कहानियों को मुख्यधारा में लाए. अब महिलाओं के पास भी रोल मॉडल्स हैं.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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