(भास्कर मुखर्जी)
नयी दिल्ली, छह सितंबर (भाषा) यमुना नदी की बाढ़ से बेघर हुए 70 से अधिक परिवार अब दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर अक्षरधाम के पास अस्थायी तंबुओं (टेंट) में रह रहे हैं।
गीली जमीन पर सोना, मच्छरों से बचना और तंबुओं में जैसे-तैसे रहना उनकी मजबूरी बन गई है।
तंबू के बाहर बैठी गंगा देवी ने सवाल किया, ‘‘गरीब आखिर जाएं तो कहां जाएं। कभी तोड़फोड़, कभी बारिश और अब बाढ़। हम रोजाना दिल्ली का कचरा उठाकर 300 से 400 रुपये कमाते हैं। कोई कचरा बीनता है, कोई नाली साफ करता है, कोई फूल बेचता है, अब हम कहां जाएं?’’
राहत शिविर के यह तंबू एक्सप्रेसवे के किनारे लगाए गए हैं। इन तंबुओं में बाढ़ से प्रभावित लोगों ने शरण ली है।
एक तंबू के भीतर ईंटों पर रखा छोटा सा चूल्हा, कुछ स्टील की थालियां और काली पड़ चुकी कढ़ाई ही उनकी रसोई है। एक रस्सी पर गीले कपड़े लटके हैं।
कमलेश कुमार ने कहा, ‘‘बारिश रोज होती है, कपड़े सूखते नहीं। जो कुछ बचे-खुचे कपड़े हैं, वही पहन रहे हैं।’’
वह अपने बेटे को गोद में सुलाने की कोशिश कर रहे थे।
तीन बच्चों की मां मीना कुमारी ने कहा, ‘‘इतनी छोटी जगह में गुजारा करना रोज की जद्दोजहद है। रात को जब एक बच्चा करवट लेता है तो दूसरा जग जाता है। बाहर बैठकर खाना बनाते हैं, लेकिन बारिश हो जाए तो सब भीग जाता है। पानी ने हमारी झुग्गी और सपनों को तबह कर दिया, अब यह तंबू ही बचा है।’’
शाम होते ही बच्चे तंबुओं के पीछे दौड़ते-खेलते हैं, लेकिन परिजन लगातार चौकन्ने रहते हैं कि कहीं वे यमुना नदी या सड़क की ओर न चले जाएं।
हरीश ने कहा, ‘‘बच्चों के खेलने में भी डर बना रहता है। एक्सप्रेसवे के समानांतर ही राहत शिविर लगे हैं जहां तेज गति से गुजरते ट्रक और वाहन हर वक्त दिखाई देते हैं।’’
एक बुजुर्ग कपू मुखिया ने कहा, ‘‘हमेशा डर रहता है कि बच्चे खेलते-खेलते सड़क की ओर ना भाग जाएं। बड़ी गाड़ियां कौन रोकेगा? अगर फिसल गए तो? हमारी आंखें चैन से बंद नहीं होतीं।’’
शिक्षा भी प्रभावित हुई है और ज्यादातर बच्चे दिनभर राहत शिविर में इधर-उधर घूमते या छोटे-मोटे कामों में माता-पिता की मदद करते हैं।
शाम ढलते ही महिलाएं खूले में चूल्हों पर राहतकर्मियों से मिले राशन से दाल-चावल पकाती हैं।
फूल बेचने वाले राम कुमार ने कहा, ‘‘दिल्ली की उमस भरी रातों में सोना मुश्किल है। ऊपर से एक्सप्रेसवे का लगातार शोर बेचैनी बढ़ा देता है। कभी पानी टपकने लगता है, मच्छर काटते हैं, बाहर की हर आवाज हमें सतर्क कर देती है। तंबू को ताला भी नहीं लगा सकते। एक आंख खोलकर जी रहे हैं।’’
फिर भी शिविर में साझा जज्बा दिखता है। राशन खत्म होने पर परिवार एक-दूसरे से खाना बांटते हैं। एक फूल बेचने वाला तंबुओं के पास छोटे-छोटे हार बनाने लगा है ताकि राहगीरों को बेच सके।
सीता राम ने कहा, ‘‘काम रुक नहीं सकता। अगर रुक गए तो खाएंगे क्या?’’
अधिकारियों के मुताबिक, शनिवार को ओल्ड रेलवे ब्रिज पर यमुना का जलस्तर 206.47 मीटर दर्ज किया गया, जो पिछले कई दिनों से 207 मीटर के आसपास था।
यमुना के जलस्तर की निगरानी ओल्ड रेलवे ब्रिज से की जाती है, जो बाढ़ के खतरे का प्रमुख संकेतक है।
अधिकारियों ने बताया कि हालात पर नजर रखी जा रही है और सभी एजेंसियां सतर्क हैं।
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे, मयूर विहार, कश्मीरी गेट और यमुना किनारे के अन्य इलाकों में अस्थायी तंबू लगाकर निचले क्षेत्रों में रहने वालों को आश्रय दिया गया है।
दिल्ली के लिए चेतावनी स्तर 204.50 मीटर, खतरे का स्तर 205.33 मीटर और 206 मीटर पर निकासी की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
हथिनीकुंड बैराज से शनिवार सुबह नौ बजे 50,629 क्यूसेक और वजीराबाद बैराज से करीब 1,17,260 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। यह पानी 48 से 50 घंटे में दिल्ली पहुंचता है।
भाषा राखी संतोष
संतोष
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