नई दिल्ली: कम से कम छह महीने तक, दिल्ली के एक सुनियोजित गिरोह ने पैसे के बदले 100 से अधिक फर्जी जाति प्रमाण पत्र जारी किए और अवैध तरीके से से 35-40 लाख रुपये कमाए.
दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा को इस साल की शुरुआत में राष्ट्रीय राजधानी में काम कर रहे एक सिंडिकेट के बारे में सूचना मिली थी, जिसके बाद अपराध शाखा की जांच टीम ने अपराधियों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए फर्जी लोगों को तैनात करना शुरू कर दिया.
अब तक इन फर्जी प्रमाण पत्रों को जारी करने के आरोप में एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट (तहसीलदार) सहित चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है. पुलिस के अनुसार, ये प्रमाण पत्र दिल्ली सरकार के पोर्टल पर उपलब्ध हैं.
सूत्रों के अनुसार, आरोपी कथित तौर पर प्रमाणीकरण प्रक्रिया के लिए आरक्षित श्रेणियों के किसी व्यक्ति को शामिल करते थे और फिर गैर-आरक्षित श्रेणी के व्यक्ति को फर्जी जाति प्रमाण पत्र जारी करते थे.
कैसे काम करता था रैकेट
क्राइम ब्रांच के डीसीपी राकेश पावरिया ने कहा, “13 मार्च को, इंस्पेक्टर सुनील कालखंडे ने गुप्त सूचना मिलने पर एक फर्जी आवेदक को एक ऐसे व्यक्ति के पास भेजा, जिसके बारे में संदेह था कि वह ओबीसी प्रमाण पत्र बनवाने के लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति है. उसे दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग द्वारा 3500 रुपये में प्रमाण पत्र जारी किया गया था. इसे विभाग की वेबसाइट पर भी अपलोड किया गया था.”
एक सप्ताह बाद, एक और फर्जी ग्राहक भेजा गया और उसने 3000 रुपये में प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया. डीसीपी के अनुसार, यह प्रमाण पत्र भी उसी वेबसाइट पर उपलब्ध है.
चूंकि ये दोनों भुगतान ऑनलाइन किए गए थे, इसलिए पुलिस टीमों ने बैंक खाते के विवरण का पता लगाना शुरू कर दिया. 9 मई को, पुलिस टीम ने दिल्ली के संगम विहार से सौरभ गुप्ता को गिरफ्तार किया.
डीसीपी ने कहा, “फोन की जांच करने पर, हमें उसके और फर्जी लोगों के बीच चैट मिली. डीसीपी ने बताया कि हमें उसके मोबाइल फोन के डेटा में कई दस्तावेजों के स्नैपशॉट और पीडीएफ फाइलें भी मिलीं.”
इसके बाद क्राइम ब्रांच ने 10 मई को आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 468 (जालसाजी) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत एफआईआर दर्ज की. गुप्ता को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया और उससे पूछताछ की गई. उसके द्वारा बताए गए विवरण के आधार पर क्राइम ब्रांच ने कार्यकारी मजिस्ट्रेट सहित तीन और लोगों को गिरफ्तार किया.
पुलिस के अनुसार, गुप्ता ने खुलासा किया कि वह आरोपी चेतन यादव के संपर्क में आया था, जो पहले दिल्ली सरकार की 1076 हेल्पलाइन पर सेवा प्रदाता के रूप में काम करता था. एक अन्य आरोपी वारिस अली गिरफ्तार मजिस्ट्रेट नरेंद्र पाल सिंह के ड्राइवर के रूप में काम करता था.
डीसीपी ने बताया कि उन्होंने राजस्व विभाग से विभिन्न प्रकार के प्रमाण पत्र जारी करके पैसे कमाने की योजना बनाई थी. गुप्ता वेबसाइट पर उम्मीदवार की ओर से प्रमाण पत्र जारी करने के लिए आवेदन करता था और उनके फर्जी दस्तावेज जैसे निवास प्रमाण पत्र, किसी अन्य सदस्य के परिवार या रिश्तेदार का जाति प्रमाण पत्र और पहचान दस्तावेज अपलोड करता था. फिर वह आवेदक का विवरण यादव को साझा करता था और ऐसे प्रत्येक मामले के लिए पैसे भी ट्रांसफर करता था.
“यादव आवेदक और आवेदन संख्या का विवरण वारिस अली को भेजता था और अपना हिस्सा काटकर पैसे भी ट्रांसफर करता था. अली कार्यकारी मजिस्ट्रेट के डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग करके मामले को मंजूरी देता था और मजिस्ट्रेट को पैसे देने के बाद प्रमाण पत्र वेबसाइट पर अपलोड करता था.”
गुप्ता सब्जी विक्रेता है, जबकि अली पहले केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में डेटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में काम करता था. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “अब हम उन सभी लोगों पर नज़र रख रहे हैं जिन्होंने ये प्रमाण पत्र हासिल किए थे और उनसे पूछताछ करेंगे. वे इसका इस्तेमाल दाखिले के लिए कर रहे थे. आगे की जांच जारी है.”
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