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Sunday, 22 December, 2024
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‘फर्जी पते, धोखाधड़ी का इरादा’: क्यों चीनी निदेशकों वाली फर्मों पर शिकंजा कस रहा है भारत

रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज ने विदेशी निदेशकों या शेयरधारकों वाली कंपनियों के खिलाफ अकेले मुंबई में 39 प्राथमिकियां दर्ज कराई हैं. हालांकि अधिकारी इसके बारे चुप्पी साधे रहते हैं लेकिन इन शिकायतों में एक जैसा पैटर्न दिखता है.

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मुंबई: एक दशक से भी अधिक समय से, हार्बिन इलेक्ट्रिक इंडिया नामक एक मुंबई में पंजीकृत बुनियादी ढांचे के क्षेत्र वाली कंपनी बिना किसी हो-हल्ले के अस्तित्व में थी. लेकिन यह अब मुश्किल में पड़ गई है और ऐसी ही मुश्किल चीनी निदेशकों (डायरेक्टर्स) या शेयरधारकों वाली दर्जनों अन्य फर्म के साथ भी है.

इस साल की शुरुआत से, रजिस्ट्रार ऑफ़ कंपनी (आरओसी) – जो केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स – एमसीए) की एक शाखा है – ऐसी कई कंपनियों के खिलाफ नियमों के इसी तरह के कथित उल्लंघनों के लिए प्राथमिकी दर्ज कर रही है.

ऐसा ही एक मामला हार्बिन इलेक्ट्रिक इंडिया कंपनी प्राइवेट लिमिटेड का है, जिसे 15 नवंबर 2011 को मुंबई में एक चीनी कंपनी की सहायक कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया था. इसमें मूल कंपनी की ओर से एक चीनी निदेशक (डायरेक्टर) और दूसरा भारतीय निदेशक था.

अब, 10 से अधिक वर्षों के बाद, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) के मुंबई कार्यालय ने इसके निदेशकों के साथ-साथ उन चार्टर्ड एकाउंटेंट के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की है, जिन्होंने इस कंपनी की स्थापना में मदद की थी.

इस मामले में आरोप है कि आरोपी ने एक भारतीय निदेशक की मदद से एक चीनी शेयरधारक के साथ मिलकर एक कंपनी स्थापित करके आरओसी को धोखा दिया है.

यह भी आरोप लगाया गया है कि इसके भारतीय कार्यालय की उपस्थिति दर्शाने के लिए झूठे दस्तावेज प्रस्तुत किए गए थे, हालांकि इसका कोई अस्तित्व ही नहीं है.

दर्ज एफआईआर (प्राथमिकी) में शिकायतकर्ता सहायक रजिस्ट्रार अनिल भागुरे ने कहा है कि इस कंपनी के पंजीकरण के समय उसका पता मुंबई के विले पार्ले में दिखाया गया था. दर्ज की गई प्राथमिकी, जिसे दिप्रिंट द्वारा भी देखा गया है, में भगुरे ने कहा, ‘लेकिन, जब हम इस फर्म के पंजीकृत कार्यालय (रजिस्टर्ड ऑफिस) में गए, तो हमने पाया कि कंपनी दिए गए पते पर मौजूद ही नहीं है… कंपनी के अस्तित्व में नहीं होने के बावजूद वह पंजीकृत थी. इसलिए, उन्होंने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के साथ धोखा किया है.’

वहीँ, स्वयं भगुरे ने दिप्रिंट को बताया कि वह इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, जबकि हार्बिन इलेक्ट्रिक को भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं मिला.

हालांकि, हार्बिन इलेक्ट्रिक का मामला कोई अलग-थलग केस नहीं है. विदेशी निदेशकों या शेयरधारकों – विशेष रूप से, यदि वे चीनी नागरिक हैं – वाली कई कंपनियां वर्तमान में कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की जांच के दायरे में हैं.

देश भर के क्षेत्रीय आरओसी कार्यालयों ने ऐसी कंपनियों के खिलाफ कई पुलिस शिकायतें दर्ज करा रखीं हैं.

ऐसी कंपनियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों में कई सारे सामान्य सूत्र हैं, जिसमें यह भी शामिल है कि उन्होंने आरओसी के सामने झूठी जानकारी प्रस्तुत की, कि वे विदेशी स्वामित्व वाली थीं, या फिर कि उन्होंने आरओसी को बताए बिना बाद में विदेशी नागरिकों को शेयर हस्तांतरित कर दिए.

अकेले मुंबई में, आरओसी ने 39 ऐसी प्राथमिकियां दर्ज की हैं, जिनमें से दिप्रिंट ने 15 को देखा है. इसी तरह की जांच हैदराबाद, अहमदाबाद और गुरुग्राम सहित अन्य शहरों में भी चल रही है.

दिप्रिंट द्वारा संपर्क किये जाने पर कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय में सचिव राजेश वर्मा और महानिदेशक मनमोहन जुनेजा दोनों ने इस मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

एमसीए के एक अधिकारी ने उनका नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह मामला ‘संवेदनशील’ है, और इसलिए, इसके बारे में बोलने में अनिच्छा दिखाई जा रही है.

मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (इकोनॉमिक ऑफेंस विंग – ईओडब्ल्यू) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि जांच अभी बहुत शुरुआती चरण में है और इस पर टिप्पणी करना ‘जल्दबाजी’ होगी.

उन्होंने बताया, ‘अब तक मुंबई में 39 प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं और हमने आरओसी से इन कंपनियों के बारे में और जानकारी मांगी है.’

हालांकि, जब दिप्रिंट ने उन प्राथमिकियों का विश्लेषण किया जिन तक इसकी पहुंच हो पाई थी तो ऐसा लगा कि सभी मामलों में एक जैसा पैटर्न है.

ख़ुफ़िया जानकारी, ‘आपराधिक साजिश’, दिए गए पते पर कार्यालय मौजूद नहीं

दिप्रिंट ने जिन दर्ज की गई प्राथमिकियों की पड़ताल की उनमें कई सारी समानताएं थीं. पहले तो, उनमें से ज्यादातर में – 15 में से 13 में – में चीनी निदेशक या शेयरधारक के नाम थे.

दूसरे, आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की आपराधिक साजिश के लिए दंड, आपराधिक विश्वासघात, धोखाधड़ी एवं बेईमानी, तथा धोखाधड़ी के सामान्य इरादे से संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है.

इन प्राथमिकियों में कंपनी अधिनियम, 2013 की वे धाराएं भी शामिल की गई हैं, जो धोखाधड़ी और गलतबयानी (झूठे बयान देने) के लिए सजा से संबंधित हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या इन कंपनियों का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग (काले धन को सफ़ेद करने) के लिए किया गया था, आर्थिक अपराध शाखा के पुलिस अधिकारी ने कहा कि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी.

प्राथमिकियों का तीसरा पहलू यह है कि इनमें शिकायतकर्ता, आमतौर पर एक सहायक रजिस्ट्रार, ने शिकायत के आधार के रूप में अपने कार्यालय द्वारा प्राप्त ‘ख़ुफ़िया और गोपनीय जानकारी’ का हवाला दिया है.

अंत में, सभी शिकायतें इस बात से शुरू होती हैं कि कैसे एक चार्टर्ड एकाउंटेंट या कंपनी सेक्रेटरी (कंपनी सचिव) ने कुछ साल पहले किसी दिए गए पते पर कोई फर्म पंजीकृत की थी. कभी-कभी, फर्म को पहले भारतीय निदेशकों के साथ पंजीकृत किया गया था, लेकिन आगे चलकर किसी न किसी मोड़ पर इनका स्वामित्व चीनी नागरिकों को हस्तांतरित कर दिया गया था.

उदाहरण के लिए, डिप्टी रजिस्ट्रार अल्पेश मनिया ने पाइपगार्ड ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक फर्म के बारे में शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें उन्होंने दो चार्टर्ड एकाउंटेंट का नाम लिया है. मनिया ने आरोप लगाया कि, उनके कार्यालय द्वारा प्राप्त ‘गोपनीय सूचना’ के अनुसार, ये चार्टर्ड एकाउंटेंट विदेशी नागरिकों को भारत में कंपनियां स्थापित करने में मदद करते हैं.

उन्होंने इस प्राथमिकी में कहा है, ‘वे पहले भारतीय निदेशकों के साथ कंपनियों को पंजीकृत करते हैं, जिसके बाद वे विदेशी नागरिकों के नाम पर उनके शेयर ट्रांसफर कर देते हैं और फिर कंपनी को पूरी तरह से उन्हें (विदेशी नागरिकों को) हस्तांतरित (ट्रांसफर) कर देते हैं.’

उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ इसी तरह इन दो चार्टर्ड एकाउंटेंट ने 2016 में दो भारतीय निदेशकों – जिनमें से प्रत्येक के पास 30 सितंबर 2016 तक 5,000 शेयर थे – के साथ पाइपगार्ड ट्रेडिंग को स्थापित करने में मदद की. हालांकि, सितंबर 2017 की फाइलिंग (आरओसी को दी गयी सूचना) में दो ऐसे व्यक्तियों के नाम पर 5,000 शेयर आवंटित दिखाए गए हैं, जिनके बारे में शिकायतकर्ता को इन दो चार्टर्ड एकाउंटेंट के रिश्तेदार होने का संदेह है.

प्राथमिकी में आगे कहा गया है कि सितंबर 2019 की फाइलिंग में दिखाया गया है कि दो मूल भारतीय निदेशकों में से एक, और उसके साथ ही एक तीसरे व्यक्ति ने भी, दो चीनी नागरिकों को 5,000 शेयर हस्तांतरित किए हैं.

प्राथमिकी में कहा गया है कि शेयरों को हस्तांतरित करने वाले इस तीसरे व्यक्ति को कंपनी की पहले की सभी कागजी कार्रवाई में शेयरधारक के रूप में कभी दिखाया ही नहीं गया था.

प्राथमिकी में कहा गया है, ‘इससे पता चलता है कि दाखिल किए जा रहे वार्षिक रिटर्न गलत और धोखाधड़ी वाले हैं.’ साथ ही. इसमें यह भी कहा गया है कि इन दो चीनी निदेशकों के पास भारत में एक ऐसी श्रेणी का वीजा था जिसके तहत उन्हें इस देश में काम पर नहीं रखा जा सकता था या फिर वे यहां व्यवसाय शुरू नहीं कर सकते थे.

मनिया ने भी दिप्रिंट के फोन कॉल का कोई जवाब नहीं दिया. पाइपगार्ड ट्रेडिंग के पंजीकृत ईमेल पते पर भेजा गया एक ईमेल भी अनुत्तरित रहा.

पाइपगार्ड ट्रेडिंग की ही तरह दिप्रिंट द्वारा विश्लेषण की गई सभी प्राथमिकियों में शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि पंजीकृत पते पर कंपनियों के कार्यालय मौजूद ही नहीं हैं.

कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाली एक पेशेवर लेखा परीक्षा संस्था (प्रोफेशनल एकाउंटिंग बॉडी) इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के जनसंपर्क विभाग के एक प्रवक्ता ने विभिन्न चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) के नाम के साथ दर्ज शिकायतों के बारे में पूछे जाने पर कहा कि इस मामले को अनुशासनात्मक निदेशालय (डीसीप्लीनरी डायरेक्टरेट) द्वारा देखा जा रहा है. .

आईसीएआई के प्रवक्ता ने एक ई-मेल में कहा, ‘उक्त शिकायतों [चीनी नागरिकों से जुड़े मामलों में शामिल सीए के खिलाफ] को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स (प्रोसीजर ऑफ़ इंवेस्टीगेशंस ऑफ़ प्रोफेशनल एंड अदर मिसकंडक्ट एंड कंडक्ट ऑफ़ केसेस ) रूल्स, 2007 के संदर्भ में प्रोसेस (संसाधित) किया जा रहा है. इसलिए, कोई भी अपराध, जैसा कि आरोप लगाया गया है, विस्तृत जांच/पूछताछ करने के बाद ही पता लगाया/निर्धारित किया जा सकता है. इसलिए, उस पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी.‘

दिप्रिंट ने इंस्टिट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया को भी ई-मेल के जरिए सवाल भेजे थे, लेकिन अभी तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला है. उनकी प्रतिक्रिया मिलने के बाद इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.


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विदेशी नागरिकों के साथ पंजीकृत कंपनियां

कुछ अन्य मामलों में, जैसे कि हार्बिन इलेक्ट्रिक, कंपनी को कई साल पहले निदेशकों के रूप में विदेशी नागरिकों के साथ पंजीकृत किया गया था, और आरओसी के अधिकारियों ने तब उन्हें पंजीकरण की सुविधा भी प्रदान की थी.

उदाहरण के तौर पर, 8 अप्रैल 2022 को, डिप्टी रजिस्ट्रार रूपा सुतार ने रेस पावर प्राइवेट लिमिटेड के अधिकारियों से जुड़ी एक शिकायत दर्ज की, जिसमें कहा गया था कि एक कंपनी सचिव ने सितंबर 2019 में सिचुआन, चीन के निवासी दो निदेशकों और शेयरधारकों के साथ इस फर्म को पंजीकृत कराया था .

प्राथमिकी में यह भी कहा गया है कि कंपनी अपने पंजीकृत पते पर मौजूद नहीं थी, जिसका अर्थ है कि कंपनी सचिव ने पंजीकरण के समय आरओसी को धोखाधड़ी वाली जानकारी दी थी.

सुतार ने प्राथमिकी में कहा है, ‘यह स्पष्ट हो गया है कि यह कंपनी चीन स्थित और चीनी नागरिकों वाले एक फर्म के लिए पंजीकृत थी.’ हालांकि, उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती क्योंकि वह इस बारे में मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं.

अन्य छिटपुट मामलों में चीन के अलावा अन्य देशों के विदेशी नागरिक भी संदेह के घेरे में हैं. उदाहरण के लिए, इन्हीं शिकायतों में से एक में अलीबाबा डॉट कॉम इंडिया ईकॉमर्स प्राइवेट लिमिटेड शामिल है, जिसे 2010 में दो भारतीय निदेशकों और शेयरधारकों के साथ स्थापित किया गया था.

प्राथमिकी के अनुसार, 31 मार्च 2011 तक कंपनी की फाइलिंग से संकेत मिलता है कि अलीबाबा डॉट कॉम सिंगापुर ईकॉमर्स प्राइवेट लिमिटेड के पास इसके 9,900 शेयर थे और सिंगापुर ईकॉमर्स प्राइवेट लिमिटेड के पास 100 शेयर थे.

शिकायतकर्ता, डिप्टी रजिस्ट्रार अनिल यादव, प्राथमिकी में कहते हैं, ‘हालांकि, शेयरों के वास्तविक हस्तांतरण को दिखाने के लिए कोई दस्तावेज दर्ज नहीं कराये गए थे.’

यादव ने दिप्रिंट की फोन कॉल का कोई जवाब नहीं दिया और संदेह के दायरे में आई कंपनी को भेजे गए ईमेल का भी कोई जवाब नहीं मिला.

एक अन्य मामले में, भगुरे ने इंफॉर्मा मार्केट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के बारे में एक शिकायत दर्ज की है जिसमें तीन ऐसे लोगों का नाम लिया जिन्होंने कथित तौर पर साल 2005 में भारतीय निदेशकों के साथ इस कंपनी को पंजीकृत करवाया और फिर इसका स्वामित्व साइप्रस स्थित स्टॉर्म क्लिफ लिमिटेड को हस्तांतरित कर दिया. इन्फोर्मा मार्केट्स को भेजी गई एक ईमेल भी अनुत्तरित रही.

नौकरी.कॉम से मिली नौकरी, पुलिस केस के बाद दिया इस्तीफा

कई सारी प्राथमिकियों में चार्टर्ड एकाउंटेंट, कंपनी सचिव, विदेशी नागरिक – जो भारतीय फर्मों में निदेशक और शेयरधारक बन गए हैं – के साथ ही इन कंपनियों में भारतीय निदेशकों के नाम भी दर्ज हैं.

आरोपी के रूप में नामजद किये गए भारतीय निदेशकों में से एक ने दिप्रिंट को बताया कि वह छह ऐसी कंपनियों का हिस्सा थे, जहां चीनी नागरिक मेजोरिटी ओनर (बड़े मालिकाना हक़ वाले) थे. हालांकि, पुलिस द्वारा दर्ज मामलों के बाद, उन्होंने अपना पद छोड़ने का फैसला किया और इस सप्ताह उन सभी कंपनियों से इस्तीफा दे दिया.

इस पूर्व निदेशक, जो आमतौर पर एकाउंटिंग का काम करते हैं, ने उनका नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘मैं 2019 में उनके साथ जुड़ा. मैं जिस कंपनी के साथ काम कर रहा था उसका मुंबई स्थित कार्यालय बंद हो गया था और मैं नौकरी की तलाश में था. मैंने नौकरी.कॉम पर अपनी एक प्रोफ़ाइल बनाई और फिर एक चार्टर्ड एकाउंटेंट ने मुझसे यह कहते हुए संपर्क किया कि कुछ ऐसी कंपनियां हैं, जहां विदेशी नागरिकों को अनुपालन से जुड़े कारणों से भारतीय नागरिकों की आवश्यकता है. मैंने इसे स्वीकार कर लिया.’

उन्होंने कहा कि वे जिन कंपनियों के साथ जुड़े थे उनसे मासिक वेतन की उम्मीद में ही वह उनके साथ आये थे. इन छह में से कम-से-कम तीन की तो कोई गतिविधियां ही नहीं थीं, क्योंकि वे लॉकडाउन से ठीक पहले बनीं थी और उनका व्यवसाय नहीं चल सका. इस वजह से उन्हें उनसे कोई वेतन नहीं मिला.

इस बात पर जोर देते हुए कि ये कंपनियां वाकई में मौजूद थीं और सिर्फ कागज पर ही नहीं बनाई गई थीं, उन्होंने कहा, ‘अन्य कंपनियों का 2019-20 में कुछ हद तक संचालन हुआ था और मुझे हर महीने लगभग 3,500 रुपये मिल रहे थे.’ उन्होंने कहा कि विदेशी शेयरधारकों और निदेशकों ने लॉकडाउन के दौरान कभी-कभार ही उनके साथ संवाद किया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद से ही उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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