scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशनूंह हिंसा पर फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट: ‘मुस्लिमों पर पुलिस की ज्यादतियों’ की जांच की मांग

नूंह हिंसा पर फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट: ‘मुस्लिमों पर पुलिस की ज्यादतियों’ की जांच की मांग

पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स की रिपोर्ट 2023 की हिंसा के बाद राज्य द्वारा सत्ता के इस्तेमाल की पड़ताल करती है. इसमें दावा किया गया है कि गिरफ्तार किए गए लोगों में से कई लोगों को सांप्रदायिक दुर्व्यवहार, ‘यातना’ का सामना करना पड़ा.

Text Size:

नई दिल्ली: पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) ने पिछले साल हरियाणा के नूंह में वार्षिक बृज मंडल जलाभिषेक यात्रा के दौरान हुई हिंसा के बाद ‘पुलिस की ज्यादतियों’ की स्वतंत्र जांच की मांग की है. पीयूडीआर की 55 पन्नों की फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है “In the Wake of Nuh: A Report on State Repression”, सोमवार को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जारी की गई. रिपोर्ट में नूंह हिंसा से संबंधित मामलों में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 10 और 11 के तहत आरोप हटाने की भी मांग की गई है.

रिपोर्ट में 31 जुलाई, 2023 को हुई हिंसा के बाद नूंह के निवासियों के खिलाफ राज्य द्वारा सत्ता के इस्तेमाल की जांच की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि राज्य ने “मुस्लिम युवकों के एक समूह पर अत्याचार किया, दूसरे असंबद्ध लोगों के घरों और आजीविका को नष्ट कर दिया और समाज और राज्य के अधिकारियों में सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया”.

पीयूडीआर ने ज़मानत आदेशों, जेल की स्थितियों और छापेमारी और गिरफ्तारियों के संचालन का विश्लेषण किया है, जिसमें पुलिस बल के भीतर कथित सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों को उजागर किया गया है. इसमें कहा गया है कि 427 मुसलमानों और 14 हिंदुओं को गिरफ्तार किया गया, जबकि केवल एक हिंदू बिट्टू बजरंगी के खिलाफ आरोप दायर किए गए, जबकि अन्य के पास हथियार होने के सबूत थे. यहां तक ​​कि बजरंगी के खिलाफ मामला भी 15 दिन बाद दर्ज किया गया.

पीयूडीआर द्वारा समीक्षा किए गए 91 प्रतिशत ज़मानत आदेशों में अदालतों ने गिरफ्तारी का समर्थन करने वाले स्वतंत्र या पुष्टि करने वाले सबूतों की कमी देखी. एक मामले में, 75 प्रतिशत आर्थोपेडिक विकलांगता वाले एक व्यक्ति को 17 अलग-अलग मामलों में फंसाया गया था. अदालत ने एक ही दिन में सभी घटनाओं में उनकी संलिप्तता की व्यवहार्यता पर सवाल उठाते हुए उन्हें ज़मानत दे दी.

रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर और दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर मनोरंजन मोहंती ने कार्यक्रम में जारी किया, जिसमें मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और पत्रकार शामिल हुए.

लोकुर ने रिपोर्ट का स्वागत किया और पुलिस की जवाबदेही तय करने की ज़रूरत पर बल दिया. उन्होंने कहा, “पुलिस जानती है कि सबूत हैं या नहीं, लेकिन विचार यह है कि व्यक्ति को सज़ा दी जाए.”

2023 में, हिंदू समूहों विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और मातृ शक्ति दुर्गा वाहिनी द्वारा आयोजित जुलूस “ब्रज मंडल यात्रा” के दौरान हुई झड़पों में दो होमगार्ड सहित छह लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए थे.

PUDR के अनुसार, जून 2024 तक 60 एफआईआर दर्ज की गई थीं और 441 गिरफ्तारियां की गई थीं.

नूंह हरियाणा के मेवात क्षेत्र में एक मुस्लिम बहुल जिला है. यात्रा शिव मंदिर से फिरोज़पुर झिरका तक जाने वाली थी, लेकिन भीड़ ने नूंह के खोड़ा मोड़ पर जुलूस को रोक दिया, जिससे झड़पें हुईं.

हालांकि, इस साल की यात्रा भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुई.

दिप्रिंट ने पीयूडीआर रिपोर्ट पर टिप्पणी के लिए नूंह की सहायक पुलिस अधीक्षक सोनाक्षी सिंह से संपर्क किया, जिस पर उन्होंने कहा, “मैंने अभी तक इसे नहीं देखा है, इसलिए मैं अभी कोई टिप्पणी नहीं कर सकती.”


यह भी पढ़ें: मुस्लिमों को निशाना या फिर अतिक्रमण विरोधी अभियान?: हिंसा के बाद कार्रवाई के चलते नूंह सुर्खियों में है


सांप्रदायिक पक्षपात, बल प्रयोग, आर्थिक मुश्किलें

पीयूडीआर रिपोर्ट का दावा है कि गिरफ्तार किए गए लोगों में से कई लोगों को सांप्रदायिक दुर्व्यवहार और क्रूर हिंसा का सामना करना पड़ा, जिसमें “रोलर से यातना” भी शामिल है. साथ ही, इसमें कहा गया है कि पुलिस ने गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ सबूत न गढ़ने या उन्हें कम यातना न देने के बदले में असहाय रिश्तेदारों से रिश्वत की मांग की.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कैदियों ने जेल में भयानक भीड़भाड़ और अस्वास्थ्यकर रहने की स्थिति का वर्णन किया है. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के समक्ष एक कैदी द्वारा दायर रिट याचिका के अनुसार, कुछ कैदियों पर पुलिस और जेल अधिकारियों द्वारा क्रूरतापूर्वक हमला किया गया और सांप्रदायिक रूप से दुर्व्यवहार किया गया.

नूंह के गैर-सांप्रदायिक इतिहास पर टिप्पणी करने के अलावा, रिपोर्ट दमन की लागतों पर चर्चा करती है. घरों के विनाश, कमाने वालों की गिरफ्तारी और व्यापार और वाणिज्य में व्यवधान के कारण निवासियों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है.

हालांकि, अधिकांश आरोपियों को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है, लेकिन ज़मानत की बहुत अधिक राशि और दिन भर अदालत में पेश होने से उनके रोज़गार को फिर से शुरू करने की क्षमता प्रभावित हुई है.

न्यायमूर्ति लोकुर ने पूछा, “व्यक्ति इतना पैसा कहां से लाएगा?”

उन्होंने आगे कहा, “लेकिन मुझे डर है कि हम कानूनी सहायता को उतना महत्व नहीं दे रहे हैं जितना हमें देना चाहिए, इसका नतीजा यह हुआ है कि बहुत कम लोग जेल में रह गए हैं.”

पीयूडीआर रिपोर्ट में बड़ी संख्या में घरों को गिराए जाने का भी उल्लेख है. न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, “भले ही यह अवैध रूप से बनाया गया हो, भले ही यह अतिक्रमित भूमि पर बना हो, एक व्यक्ति कुछ कहना चाहेगा. आपको लगता है कि यह अवैध है, लेकिन, वह व्यक्ति आपको दिखा सकता है कि यह अवैध नहीं है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कौन है नूंह हिंसा का आरोपी बिट्टू बजरंगी? एक गौरक्षक, सब्जी विक्रेता, हिंदू महिलाओं का स्वयंभू ‘रक्षक’


 

share & View comments