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Friday, 22 November, 2024
होमदेशअपराधथम नहीं रहा है बीएचयू में छात्राओं का शोषण, संकाय प्रमुख 'हाज़िरी' के बहाने करता था प्रताड़ित

थम नहीं रहा है बीएचयू में छात्राओं का शोषण, संकाय प्रमुख ‘हाज़िरी’ के बहाने करता था प्रताड़ित

पिछले कुछ सालों से बीएचयू लगातार सुर्खियों में रहा है. शिक्षक और प्रशासन द्वारा छात्र-छात्राओं के साथ बुरा बर्ताव और शोषण के आरोपों के कारण बीएचयू की लगातार किरकिरी हो रही है.

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वाराणसी/बीएचयू : पिछले कुछ वर्ष से काशी हिंदू विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय के परिणाम या शोध कार्य की वजह से नहीं बल्कि शिक्षक और प्रशासन द्वारा छात्र-छात्राओं के उत्पीड़न, लड़ाई झगड़ा के कारण चर्चा में है. पिछले दिनों एक और यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया है जिसमें शोध की छात्रा ने एजुकेशन विभाग के प्रमुख और डीन पर उत्पीड़न का आरोप लगाया है. बीएचयू की शिक्षा संकाय की एक शोध छात्रा ने अपने विभागाध्यक्ष और डीन पर अटेंडेंस लगवाने के बहाने उनका यौन एवं मानसिक शोषण किए जाने का आरोप लगाया है.

‘जब हम चैंबर में सिग्नेचर करने के लिए जाते थे तो इनका देखना, घूरना, स्माइल करना वो बहुत ही आक्वर्ड (असहज) कर देता था. एक दिन की बात है मैं सिग्नेचर करने के लिए गई, मुझे ऊपर से नीचे तक देखे, उसके बाद स्माइल किए जा रहे हैं, किए जा रहे हैं. हम पूछ लिए, क्या है बोलिए. फिर वो पूछ रहे हैं कि क्या नाम है? किसके अंडर काम… हालांकि उनको सब पता है. फिर बोल रहे हैं अटेंडेंस लगाना है… अच्छा आइए लगा लीजिए. अपने सामने रजिस्टर रखकर, लीजिए लगा लीजिए. थोड़ा अनकम्फ़र्टेबल करके… लीजिए लगा लीजिए.’

काशी हिंदू विश्वविद्यालय की शिक्षा संकाय की एक शोध छात्रा विभाग अध्यक्ष और डीन डॉ. आरपी शुक्ला के ऊपर आरोप लगाते हुए छात्रा अपनी आपबीती बताती है कि, ‘जिन शोधार्थियों के शोध निर्देशक/निर्देशिका रिटायर हो चुके/चुकी हैं, उनके स्कालर्स के अटेंडेंस का रजिस्टर उन्होंने (संकाय प्रमुख) अपने ऑफिस में रखवाया था.’ मालूम हो कि आरोप लगाने वाली छात्रा के निदेशक रिटायर हो चुके हैं और वो बीएचयू कैंपस से बाहर रहते हैं.

छात्रा बताती है कि, ‘अप्रैल महीने की बात है, जब मैं सिग्नेचर करने के लिए जाती तो वो (डॉ. आरपी शुक्ला) मुझे अश्लील तरह से देखते, लगातार घूरते रहते.  ये एक दिन की बात नहीं है, लगातार, रोज-रोज होने लगा. एक दिन मैं खुद ही बोली, हां सर, बताइये कोई बात है? इसके बाद वो झेंपकर इधर-उधर की बातें करने लगे, वो मुझसे बहाने-बहाने से गैर-जरूरी बातें और हंसी-ठिठोली करने की कोशिश करते लेकिन जब मैंने किसी प्रकार से उन्हें बढ़ावा नहीं दिया तो मुझे दूसरे तरीकों से परेशान करने लगे.’


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अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए छात्रा कहती हैं कि, ‘कई बार जब मैं अपने शोध निर्देशक से मिलने जाती थी और जब वापस आकर सिग्नेचर करने जाती तो, मुझे डांटने लगते और रजिस्टर में मेरे नाम के सामने एब्सेंट लगाने लगे. ये सब केवल मेरे साथ किया जाता. सवाल करने पर मुझसे कहा गया कि, जब मैं लेट से पहुंच रही हूं तो शोध निदेशक का लेटर लेकर जाऊं. उसके बाद से मैं ऑफिस में लेटर जमा करने लगी. लेकिन ये सारे नियम सिर्फ मेरे लिए थे, बाकी स्कॉलर के लिए नहीं थे. इतना ही नहीं मुझे छुट्टी लेने के लिए भी परेशान किया जाने लगा, मुझसे कहा कि मैं एकेडमिक लीव के लिए सात दिन पहले और पर्सनल लीव के लिए तीन दिन पहले सूचित करूं.

इस तरह से मैं लगातार परेशान रहने लगी. धीरे-धीरे मेरी तबीयत खराब रहने लगी. मुझे डॉक्टर ने एक वीक का बेड रेस्ट दे दिया. इसके बाद जब मैं वापस आई तो मुझे कहा गया कि मैं रेगुलर नहीं थी. जब मैनें अपना सारा रिकॉर्ड दिखाया तो कहा गया कि, वो गलती से हो गया. जब लगातार-लगातार मेरा मेंटल हरासमेंट होने लगा तो मैंने जुलाई महीने में विश्वविद्यालय के कुलपति, महिला प्रकोष्ठ और संकाय के महिला प्रकोष्ठ में लिखित (मेल भी) शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद 11 जुलाई को मीटिंग बुलाई गई.

इस मीटिंग में वीसी, संकाय प्रमुख डॉ. आरपी शुक्ला, महिला प्रकोष्ठ की चेयरपर्सन डॉ. रोयना सिंह आए हुए थे. उस मीटिंग में संकाय प्रमुख ने मुझसे माफी मांगी, और उन्होंने कहा कि, ‘मुझे तो ऐसा नहीं लगता कि मैनें ऐसा कुछ किया है, लेकिन अगर इसे ऐसा लगता है तो मैं माफी मांगता हूं. मैं इसका (पीड़िता का) वेल विशर हूं.’ उनके माफी मांगने के बाद महिला प्रकोष्ठ की चेयरपर्सन रोयना सिंह ने कहा कि अब तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी, अगर कोई दिक्कत हुई तो एक कॉल करना क्विक एक्शन लिया जाएगा.

इस मीटिंग के अगले दिन कैंपस संकाय प्रमुख के इशारों पर उनकी दो शोध छात्राओं ने संकाय में संकाय प्रमुख को क्लीन चिट प्रदान करने वाला हस्ताक्षर अभियान चलवाया. जिसमें गैरकानूनी ढंग से मेरा नाम और पहचान उजागर करते हुए मुझ पर तरह-तरह के इल्ज़ाम लगाए गए. इसके बाद मैं वापस से विश्वविद्यालय के कुलपति, महिला प्रकोष्ठ और संकाय के महिला प्रकोष्ठ को मेल की और लिखित शिकायत दी. लेकिन अभी तक (खबर लिखे जाने तक) कोई एक्शन नहीं लिया गया है.

इसके बारे में जब संकाय प्रमुख डॉ. आरपी शुक्ला से बात की गई तो पहले उन्होंने ज्यादा बात करने से साफ-साफ मना कर दिया. उन्होने कहा कि, ‘मैं सिर्फ एक लाइन में कहना चाहता हूं कि ये मेरे खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र रचा जा रहा है. ये सब मुझे बदनाम करने के लिए किया जा रहा है.’

छात्रा का कहना है कि, जब मैं सबसे पहले परेशान होना शुरू हुई तो अपने संकाय की एक महिला प्रोफेसर डॉ. मधु कुशवाहा से मौखिक शिकायत की थी. जिसके बारे में महिला प्रोफेसर डॉ. मधु कुशवाहा का कहना है कि नहीं, मुझसे ऐसी कोई भी शिकायत नहीं की गई है.


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इन सबके बारे में विश्वविद्यालय महिला प्रकोष्ठ की चेयरपर्सन रोयना सिंह का कहना है कि, ‘अभी भी जांच चल रही है तो अभी मैं उसके बारे में नहीं बोल सकती हूं.’ छात्रा की तारीफ करते हुए कहती हैं कि, ‘वो अच्छी लड़की है, भले ही उसके मेल का जवाब नहीं गया हो लेकिन पर्सनली हम लगातार उससे बात कर रहे हैं. मैंने दो बार दो घंटे उसकी काउंसिलिंग भी की.’ आगे कहती हैं कि, ‘हम लोग जांच कर रहे हैं.’

मालूम हो कि पिछले कुछ सालों से बीएचयू लगातार सुर्खियों में रहा है. शिक्षक और प्रशासन द्वारा छात्र-छात्राओं के साथ बुरा बर्ताव और शोषण के आरोपों के कारण बीएचयू की लगातार किरकिरी हो रही है. इससे पहले 2018 में दीक्षांत समारोह के अगले दिन आयुर्वेद संकाय की एक शोध छात्रा ने बीएचयू के एक प्रोफेसर पर लंका थाने में यौन शोषण और गालीगलौज का केस दर्ज कराया था. 2018 में ही बीएचयू की कुछ छात्राओं ने एक प्रोफेसर पर अश्लील बातें करने का आरोप लगाया था.

(रिजवाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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