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Friday, 22 November, 2024
होमदेशआंध्र HC के पूर्व जज ने SC जज के कथित दुराचार पर, अपनी फोन बातचीत की जांच पर सवाल उठाए

आंध्र HC के पूर्व जज ने SC जज के कथित दुराचार पर, अपनी फोन बातचीत की जांच पर सवाल उठाए

जस्टिस वी ईश्वरैया ने आंध्र हाईकोर्ट के आदेश को, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, और कहा है कि उनकी निजी बातचीत का विषय, एक ज्ञात जानकारी है, इसलिए उसे षडयंत्र नहीं कहा जा सकता.

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नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के एक पूर्व जज ने, हाई कोर्ट के एक आदेश के विरोध में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है, जिसमें एक सिटिंग सुप्रीम कोर्ट जज के खिलाफ दुराचार के आरोपों के बारे में, उनकी निजी टेलीफोन वार्ता की, जांच कराने को कहा गया है.

न्यायमूर्तियों एम सत्यनारायण मूर्ति और ललिता कन्नेगांति की दो जजों की बेंच ने, 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज, जस्टिस आरवी रवींद्रन की निगरानी में, एक जांच का आदेश दिया था, जब उसे पता चला था कि फोन वार्ता में, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, और सीनियर सुप्रीम कोर्ट जज के खिलाफ़, एक ‘साज़िश’ का पर्दाफाश हुआ था.

शीर्ष अदालत के सामने फरियादी जस्टिस वी ईश्वरैया ने, हाईकोर्ट के आदेश को अवैध क़रार दिया है, चूंकि वो उन्हें सुने बिना जारी किया गया.

एडवोकेट प्रशांत भूषण के ज़रिए दायर की गई याचिका में, फरियादी ने कहा कि विवादित आदेश, एक निलंबित ज़िला मुंसिफ मजिस्ट्रेट की ओर से, हाईकोर्ट को दिए गए एक आवेदन पर आधारित था, जो उस फोन वार्ता में दूसरा पक्ष था.

जस्टिस ईश्वरैया ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने, टेलीफोन पर हुई बातचीत की प्रतिलिपि, अपने आवेदन के साथ नत्थी कर दी थी, जिसे कोविड-19 गाइडलाइन्स के कार्यान्वयन से जुड़ी, एक असंबंधित जनहित याचिका में दायर किया गया था.

रिटायर्ड जज ने कहा कि उन्हें इस मामले में, नोटिस तक जारी नहीं किया गया.

‘प्रतिलिपि त्रुटिपूर्ण और भ्रामक है’

अपनी याचिका में, जस्टिस ईश्वरैया ने स्पष्ट किया, कि ज़िले के अधिकारी के साथ अपनी बातचीत में, उन्होंने सिर्फ एक सुप्रीम कोर्ट जज के खिलाफ, आरोपों की जानकारी होने का ज़िक्र किया था, और मजिस्ट्रेट से पूछा था कि क्या उसके पास कुछ और जानकारी है.


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जज का मानना था कि उनकी बातचीत के विषय, पहले ही एक कैबिनेट उप-समिति की जांच के विचाराधीन है, और एक एफआईआर भी दर्ज हो चुकी थी.

याचिका में कहा गया है, ‘फरियादी के लिए जज के दुराचार के बारे में, किसी भी व्यक्ति से अतिरिक्त सूचना लेने की कोशिश करना वैध था, जिसके पास ऐसी कोई जानकारी हो सकती थी’.

पूर्व जज ने कहा कि उनकी बातचीत को, न्यायपालिका को अस्थिर करने की, एक तरह की आपराधिक साज़िश क़रार देना, पूरी तरह से अनुचित है.

उन्होंने आगे कहा कि निलंबित मुंसिफ मजिस्ट्रेट की ओर से, हाईकोर्ट को दी गई प्रतिलिपि, बातचीत के कई पहलुओं में ‘त्रुटिपूर्ण’ और ‘भ्रामक’ है.

‘बातचीत का ऑडियो मेरी छवि ख़राब करने के लिए लीक किया गया’

जस्टिस ईश्वरैया ने कहा कि हाईकोर्ट का ये मानना ग़लत था, कि उनका एक ऐसे तथ्य के बारे में और जानकारी मांगना, जो पहले से ही सार्वजनिक था और पुलिस जांच का विषय था, संबंधित जज को बदनाम करने की साज़िश, या न्यायपालिका के खिलाफ षडयंत्र था.

उन्होंने कहा कि ऑडियो क्लिप को एक न्यूज़ चैनल को लीक किया गया, ताकि दुष्प्रचार से उनकी छवि को कलंकित किया जा सके, और एक सोचे समझे मक़सद से, उनके खिलाफ नफरत फैलाई जा सके.

जस्टिस ईश्वरैया ने शीर्ष अदालत से हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की गुज़ारिश की है, जो उनके अनुसार, अवैध और अनुचित है, और जिससे उनका उत्पीड़न हुआ है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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