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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशऊंटनी का दूध पहुंचाना हो या बोन मैरो ट्रांसप्लांट की व्यवस्था, लॉकडाउन में ये 5 आईपीएस बिना शोर मचाए लोगों की मदद करते रहे

ऊंटनी का दूध पहुंचाना हो या बोन मैरो ट्रांसप्लांट की व्यवस्था, लॉकडाउन में ये 5 आईपीएस बिना शोर मचाए लोगों की मदद करते रहे

कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए लोगों तक खाना-पानी पहुंचाने और हजारों प्रवासियों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए कई सेलिब्रिटी सामने आए लेकिन ये 5 IPS न केवल अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा से निभा रहे हैं, बल्कि अपने काम के दायरे से आगे जाकर सेवा भाव से लोगों की मदद भी कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: अमिताभ बच्चन, सोनू सूद, तेजेंद्र सिंह, विकास खन्ना और मनीष मूंदड़ा जैसी हस्तियों के नाम आजकल ‘मजबूरों के मसीहा’ के तौर पर बच्चे-बच्चे की जुबान पर हैं. कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए लोगों तक खाना-पानी पहुंचाने और हजारों प्रवासियों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए इन लोगों ने जो मदद की, उसकी सोशल मीडिया पर खूब चर्चा है. लेकिन आज हम आपको रू-ब-रू कराते हैं कुछ आईपीएस अधिकारियों से जो न केवल अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा से निभा रहे हैं, बल्कि इससे इतर महामारी के इस दौर में अपने काम के दायरे से आगे जाकर सेवा भाव से लोगों की मदद भी कर रहे हैं.

इस लॉकडाउन के दौरान भारत ने दो बड़े तुफानों का सामना किया ‘अम्फन’ और ‘निसर्ग’.नेशनल डिसास्टर रिस्पांस फोर्स  (एनडीआरएफ) के लिए ये बहुत बड़ा चैलेंज था फील्ड में अपने लोगों को कोविड-19 संक्रमण से बचाना और इस तुफान में फंसे आखिरी इंसान तक पहुंचना.

एनडीआरएफ के डीजी एसएन प्रधान ने दिप्रिंट को बताया, ‘ बरसात और बाढ़ की तैयारियों में हम जुट गए थे क्योंकि जून के पहले सप्ताह से मानसून शुरू होने की घोषणा मौसम विभाग ने की थी. हमारी करीब 60-75 फीसदी तैयारी थी मॉनसून और बाढ़ को लेकर, लेकिन अचानक अम्फन और निसर्ग की घोषणा ने हमें बड़ा चैलेंज दिया.’

‘आमरा थागो- हम हैं’

प्रधान बताते हैं कि मैं पर्सनली एक एक जवान से बात करता हूं क्योंकि मुझे पता है इस दौर में जब संकट चारों तरफ से हो तो हमें एकजुट रहने की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा, ‘कोविड के मद्देनजर हमने इस बार स्पेशल प्रिवेंशन किट, आयुर्वेद, योग और आईसीएमआर की दवाओं की गाइडलाइन के हिसाब से जवान को तैयार किया था.’

वे कहते हैं, ‘जब देश मुसीबत में हो और सैकड़ों एनडीआरएफ के जवान मैदान में तो मैं कैसे सो सकता था. चूंकि देश के कई हिस्सों में प्रभाव था इसलिए मैं दिल्ली से ही सबकुछ हैंडल कर रहा हूं. जवानों के खाने से लेकर दवा तक का ध्यान रखना.’ ‘पश्चिम बंगाल में हमारे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था वहां मैक्सिमम इलाके कोरोना संक्रमण की वजह से  रेड ज़ोन में थे. जवानों को कोविड से बचाना और लोगों को भी बचाना बड़ा चैलेंज था. अम्फन से लेकर निसर्ग तक पश्चिम बंगाल से लेकर ओडिशा मुंबई तक 12-15 लाख लोगों को एनडीआरएफ के जवानों ने मुस्तैदी से मुसीबत से बाहर निकाला. और उन्होंने अम्फन के शिकार हुए पश्चिम बंगाल के लोगों को यहां तक कहा आमरा थागो- हम हैं- तुम घबरोओ नहीं.’

फिलहाल एनडीआरएफ के 200 जवान जो इस तूफान में लोगों की मदद करने पहुंचे थे उसमें से 50 कोविड पॉजिटिव हैं और उनका इलाज चल रहा है. प्रधान कहते हैं, ‘बिना दिन और पल गंवाए मैं हर दिन उन अपने पचास जवान को रोज वीडियो कॉल कर बातचीत करता हूं. और वह सभी रिकवर कर रहे हैं.’ वहीं निसर्ग में एक जवान की राहत कार्य के दौरान पैर की पांचों उंगलियां कट गईं है..उसका भी इलाज ब्रीच कैंडी अस्पताल में चल रहा है और मैं बहुत खुश हूं कि डॉक्टरों ने कहा है कि घाव भरने के बाद वो जवान भी दौड़ने की स्थिति में होगा.


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5.5 लाख ओडिशा के और इससे दुगुने अन्य राज्यों के मजदूरों को पैदल नहीं चलने दिया

इस महामारी के दौरान एक बात जो और सामने आई वह यह थी कि पुलिस के आला अधिकारी अपने काम और जिम्मेदारियों से इतर लोगों की मदद को सड़कों पर उतरे और वह अपने राज्यों की सीमाओं को लांघ कर दूसरे राज्यों के लोगों तक भी मदद पहुंचाई.

ओडिशा काडर के आईपीएस अरुण बोथरा ने इस दौरान राजस्थान से मुंबई तक एक ऑटिस्टिक बच्चे के लिए ऊंटनी का दूध पहुंचवाने की मुहिम चलाई वहीं अनगिनत लोगों को दवा से लेकर राशन पहुंचाने तक का काम किया. एक मिर्गी के मरीज की दवा विदेश में मिलने की बात भी खूब चर्चा में रही. काम रुका नहीं है आज भी उन्हें हजारों ऐसे मैसेज मिल रहे हैं जिसमें दवा से लेकर कई ऐसे कामों की गुहार होती है जिसे वह खुशी-खुशी कर रहे हैं. इस दौरान उनसे लोग जुड़ते रहे और कारवां बनता गया. अधिक से अधिक देशवासियों तक मदद पहुंचाने के लिए उनके साथ वॉलेंटियर करने के लिए युवा जुड़े और उन्होंने ‘इंडिया केयर’ ट्विटर हैंडल बना दिया. इसमें भी कई आईएएस और आईपीएस जुड़ चुके हैं और चुपचाप लोगों की मदद में जुटे हैं. लेकिन सोशल मीडिया पर अपना ध्यान लगातार बनाए रखा है.

अरुण बताते हैं,’ सोशल मीडिया ने हमें उन लोगों तक पहुंचाया जिन्हें ये शिकायत थी कि बड़े अधिकारी हमारी बात नहीं सुनते. लेकिन इस माध्यम पर जैसे ही मैसेज आता है हमारा एक्शन शुरू होता है और हमें उस बंदे से फीडबैक भी तुरंत मिल जाता है कि काम हुआ या नहीं.’

सोशल मीडिया ने बहुत काम आसान बना दिया है और हमारी जरा सी कोशिश से देश के किसी भी कोने का काम आसानी से होता है या फिर उनतक संदेश जरूर पहुंच जाता है. अरुण आज भी लोगों की मदद में जुटे हैं और उन्हें ट्विटर के माध्यम से लोग संपर्क कर मदद की गुहार लगाते हैं और मदद पहुंचती भी है.

अरुण ने वैसे हजारों हजार लोगों की मदद की लेकिन एक काम जो वह आज भी कर रहे हैं वह है कि ओडिशा से जुड़ने वाले राज्यों की सीमाओं से आने वाले लोगों को सड़क पर पैदल नहीं चलने देने के सीएम नवीन पटनायक के ऑर्डर का पालन. अरुण कहते हैं, ‘ ओडिशा में मजदूर पैदल नहीं चलेगा ऐसा ऑर्डर सीएम के पास से आया और हमारी पूरी टीम इस पलायन के दौरान ही नहीं बल्कि आज भी हमारी बसें बॉर्डर पर लगी हैं. इसके लिए मजदूरों से पैसे नहीं लिए जा रहे हैं.

दिन-रात हर फोन का जवाब दिया-मदद पहुंचाई

ओडिशा काडर के आईजी अमिताभ ठाकुर ने दिप्रिंट को बताया कि 26 मार्च को हमारा कंट्रोल रूम बना था.’ हम इस दौरान उन लोगों पर नजर बनाए हुए थे कि राज्य में किसी के घर राशन-पानी या फिर दवा की परेशानी न हो. हमारा काम इस बात पर भी नज़र रखना था कि मजदूर या अन्य राज्यों में जो लोग फंसे हैं वह परेशान न, जल्द से जल्द उनतक मदद पहुंचे, उनके पास राशन- दवा और खाना पर्याप्त हो.’

‘शुरुआत में हमारे पास जो परेशानियां सामने आ रही थीं वो थी ‘दवा’ की, किसी के बच्चे दूसरे राज्य में हैं ‘बूढ़े मां बाप’ यहां हैं दवा नहीं है उनके पास..तो हमारा कंट्रोल रूम उसे मैनेज करता था.’ उन्होंने बताया.

ठाकुर बताते हैं,’ हमारे पास ओडिशा के लोगों के अलावा बाहर राज्यों के लोगों को लेकर भी कई समस्याएं थी जिनमें छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार और यूपी के लोग बहुतायत में थे. उनके खाने-पीने और दवा से लेकर हमने मजदूरों को पैदल न चलने देने का प्रण किया था. इसमें हमारे साथी अरुण बोथरा ने अहम भूमिका निभाई और मजदूर ओडिशा राज्य में पैदल नहीं चला, हर बॉर्डर पर गाड़ियां तैनात की गईं.’

लेकिन परेशानियां शुरू हुईं तीसरे लॉकडाउन के बाद जब जिन्हें कोविड-19 नहीं था उन मरीजों का दूसरे राज्यों में फंसना, उन्हें सेफ घर वापस लाना. मुंबई कैंसर के मरीज फंस गए थे उन्हें लाना. श्रद्धालू फंस गए उन्हें लाना. ऐसे लोगों के लिए आईजी ठाकुर ने एंबूलेंस से लेकर ट्रेन चलने तक टिकट के इंतजाम किए और मरीज कोविड संक्रमण से बचे इसका भी ट्रेन में पूरा ध्यान रखा.


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लेबर पेन से तड़प रही पांच गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी

ऐसे ही एक आईपीएस हैं छत्तीसगढ़ बिलासपुर के आईजी दिपांशू काबरा. दीपांशू काबरा ने जब मजदूरों को दर-बदर हालत में पैदल अपने गांव की तरफ निकलते देखा तो अपने सीमित साधनों में उन्होंने खुद मोर्चा संभाला.

एक तरफ जब देश के कई हिस्सों से प्रवासी मजदूर महिलाओं के सड़क पर बच्चे को जन्म देने से लेकर और इलाज न मिलने पर गर्भवती महिलाओं की मौत तक की खबरें आ रही थीं दीपाशूं बताते हैं, ‘छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में मितानी दीदी(आशा वर्कर) की मदद से प्रवासी मजदूर गर्भवती महिलाओं को बॉर्डर पर रोका उन्हें आगे जाने नहीं दिया और कम से कम पांच महिलाओं ने स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया है.’

हालांकि, काबरा यह भी कहते हैं कि पुलिस हमेशा से समाज सेवा के काम करती रही है, पुलिस लोगों की उन कामों में भी मदद करती रही है जो सीधे उनसे जुड़े नहीं है जैसे घरेलू समस्या, जमीन-जायदाद से जुड़ा मामला आदि. लेकिन कोविड-19 की इस महामारी ने लोगों को नज़र आया की पुलिस आपके घर में सब्जी से लेकर दवा तक और आपके घर में कोई बीमार है तो उसे अस्पताल पहुंचाने तक का काम करती है.

वह बताते हैं कि जब मजदूरों का पलायन शुरू हुआ तो हर घंटे में एक हजार से लेकर 1500 लोगों का झुंड निकलता था. उनमें कई बीमार होते थे उनकी मदद करना, उनके खाने-पीने की मदद तो की ही जा रही थी लेकिन चैलेंज तब शुरू हुए जब पुलिस के लोग संक्रमित होने लगे.

‘पुलिस बल को सुरक्षित रखने और लोगों को भी हमने हर बॉर्डर पर माइक और सैनिटाइज़र की व्यवस्था की और मैं खुद वहां मौजूद होता था कि जवानों का मनोबल बना रहे.’

दीपांशू काबरा ने बताया, हमारे राज्य से लेकर झारखंड, बिहार के बॉर्डर तक हमने गाड़ियों का इंतजाम किया. चूंकि छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र से बिहार ओडीशा और झारखंड जाने वालों का ट्रांजिट एरिया था तो हमें ज्यादा सावधानियां बरतनी पड़ रही थीं. ‘ उन्होंने बताया कि कई लोग दूसरे राज्यों में फंस गए थे उनलोगों ने फोन पर बताया कि घर खाली है. वहां फंसे लोगों के मकानों और सामानों तक की सुरक्षा के लिए हमने कदम उठाए. लेकिन अभी कोविड-19 संक्रमण का चैलेंज खत्म नहीं हुआ है अब संक्रमण बढ़ने से और बढ़ गया है. ‘

वृद्धा आश्रम, अनाथालयों से लेकर बोन मैरो ट्रांसप्लांट तक

अब उस राज्य के एक ऐसे अधिकारी की बात जो लॉकडाउन में लोगों के घरों में दवा पहुंचाने, राशन पहुंचाने और डॉक्टर को मरीजों से फोन पर इलाज करवाया ही बल्कि वृद्धा आश्रमों, अनाथालयों, आश्रय गृहों में रह रहे बुजुर्गों, विधवाओं, बच्चियों की सुध ली.

बिहार में सशस्त्र सीमा बल के आईजी संजय कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘आम लोगों तक तो सभी पहुंच रहे थे लेकिन मैंने  मुज्जफ्फरपुर से लेकर पटना तक, गया से लेकर नेपाल सीमा तक जहां जहां पता था वृद्धाश्रम है, अनाथालय है वहां इन लोगों तक पहुंचने की कोशिश में जुटा रहा.’

वह बताते हैं, ‘क्योंकि बाकी लोग किसी न किसी माध्यम से अपनी आवाज पहुंचा पर रहे थे लेकिन इनके पास कोई साधन नहीं था. मुझे याद नहीं कितने बुजुर्ग और बेटियां भूख से तड़प रही थीं जब हम उनतक पहुंचे. उनके आंसूं ने हमें विचलित किया.’

संजय कुमार बताते हैं कि धनबाद और गिरीडीह में कुछ जगह ऐसी हैं जहां अंदर के गांवों में लोगो के पास दवा नहीं थी हमने ट्रेन के ड्राइवर के द्वारा दवाएं पहुंचवाईं. कई चुनैतियों को पार करने और जरूरत मंदों तक राशन पहुंचाने, मजदूरों को उनके घर पहुंचाने से लेकर जब  सोनू सूद को बिहार में मजदूरों के प्रवेश की अनुमति नहीं मिली तो उन्हें मजदूरों को भेजने की परमीशन दिलाने तक में उनका अहम योगदान रहा.

संजय कहते हैं, ‘ गरीबों के लिए सरकार ने, देश वालों ने , कॉर्पोरेट ने खूब काम किया लेकिन एक वर्ग को वो भूले वह थी ‘मीडियम क्लास’. मैं ऐसी सोसाइटी में पहुंचा लोगों से बात की और लोगों से कहा कि परेशानी हो तो ‘शरमाना नहीं’ है और करीब 500 लोगों तक मध्यमवर्गीय परिवारों को भी मदद पहुंचाई. यहां तक की कई बुजुर्गों ने के लिए एटीएम से पैसे भी निकाले.

संजय बताते हैं, ‘लॉकडाउन के दौरान सीवान से एक बच्चे के बोन मैरो ट्रांसप्लांट का अरजेंट कॉल आया उसके परिवार के पास न तो पैसा था और न ही उसे ई पास ही मिल पा रहा था.संजय ने न केवल दिल्ली तक बात की बल्कि पास का इंतजाम भी कराया. वे कहते हैं ‘बच्चा बच गया है और यही सबसे सुकून की बात है.’

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