देहरादून, 30 मार्च (भाषा) विकास परियोजनाओं के लिए वृक्षों को काटे जाने के विरोध में ‘पर्यावरण बचाओ आंदोलन 2.0’ के तहत पर्यावरणविदों और बुद्धिजीवियों ने रविवार को यहां पेड़ों की सांकेतिक ‘‘शवयात्रा’’ निकाली ।
काफी तादाद में यहां शहर के बीचोंबीच स्थित परेड ग्राउंड में ‘लांग सफरिंग सिटीजंस ऑफ देहरादून’ के तहत लोग इकट्ठा हुए और उन्होंने विकास के नाम पर अब तक काटे जा चुके हजारों पेड़ों तथा भविष्य में काटे जाने वाले पेड़ों की सांकेतिक ‘‘शवयात्रा’’ में हिस्सा लेते हुए श्रद्धांजलि दी।
सफेद कपड़े पहने लोगों ने मुंह पर काली पट्टी बांधकर शांतिपूर्ण तरीके से सूखे पेड़ों की टहनियों की ‘‘अर्थी’’ लेकर राज्य सचिवालय की ओर कूच किया। हालांकि, पुलिस ने उन्हें बीच रास्ते में ही रोक लिया जिसके बाद वक्ताओं ने वहीं विरोध-प्रदर्शन किया।
ये टहनियां उन पेड़ों की थीं जिन्हें दो साल पहले सहस्रधारा रोड से उखाड़कर राजीव गांधी क्रिकेट स्टेडियम के पास स्थित इलाके में दोबारा रोपा गया था। ये सभी पेड़ कभी पनप ही नहीं पाए और सूख गए।
इस मौके पर जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल ने कहा कि दून घाटी में किसी भी परियोजना के लिए वन भूमि के हस्तांतरण पर पूरी तरह से रोक लगायी जानी चाहिए ताकि और पेड़ न कटें।
उन्होंने कहा कि ऋषिकेश-देहरादून मार्ग के प्रस्तावित चौड़ीकरण के लिए तीन हजार से ज्यादा पेड़ों को सिर्फ इसलिए काटा जाना है ताकि इन शहरों के बीच का सफर 15 मिनट कम हो जाए।
नौटियाल ने कहा, ‘‘उत्तराखंड में 51 साल पहले चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी। अब देश के इतिहास में पहली बार देहरादून में ऐसी सांकेतिक शवयात्रा निकली है। यह पूरे देश में पर्यावरण की अलख जलाएगी।’’
इस मौके पर ज्योत्सना, अजय शर्मा और करन आदि वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि राज्य बनने के बाद से बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटा गया है जिससे देहरादून की जलवायु पर बहुत असर पड़ा है।
उन्होंने कहा कि पहले लोग अच्छी जलवायु के लिए दिल्ली से देहरादून आते थे लेकिन अब यहां की स्थिति भी खराब होती जा रही है ।
एक साल पहले भी इस आंदोलन के जरिए गढ़ी कैंट मार्ग के चौड़ीकरण के लिए पेड़ काटे जाने का विरोध किया गया था जिसके परिणामस्वरूप सरकार को अपने कदम पीछे हटाने पड़े थे और घोषणा करनी पड़ी थी कि अब पेड़ नहीं काटे जाएंगे।
भाषा दीप्ति खारी
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