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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेश‘सरकार ने पर्यावरणीय मानदंडों को बदलने के लिए कानून के दायरे से बाहर काम किया’- रिपोर्ट

‘सरकार ने पर्यावरणीय मानदंडों को बदलने के लिए कानून के दायरे से बाहर काम किया’- रिपोर्ट

एक थिंकटैंक के मुताबिक, पर्यावरण संरक्षण कानूनों को नियंत्रित करने के लिए 123 'रेग्युलेटरी इंस्ट्रूमेंट' को इस्तेमाल किया गया है. ओएम और अधिसूचनाओं के माध्यम से किए गए एक-तिहाई संशोधनों में कानून में ढील या छूट दी गई थी. 

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नई दिल्ली: मार्च 2020 और मार्च 2022 के बीच पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (ईपीए) में किए गए संशोधनों के विश्लेषण से पता चला है कि कानून में लगभग आधे बदलाव ‘छूट’ देने के तौर पर किए गए थे. इससे पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून की ‘स्पष्टता, पूर्वानुमान और स्थिरता’ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.  

ईपीए की स्थापना 1986 में ‘पर्यावरण में सुधार करने और उसकी सुरक्षा’ के साथ-साथ ‘पर्यावरण प्रदूषण को रोकने, नियंत्रित करने और कम करने’ के उद्देश्य से की गई थी.

‘विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ कानूनी शोध करने वाला एक स्वतंत्र थिंकटैंक है. इसने अपने विश्लेषण में पाया कि EPA  में 39 यानी एक-तिहाई कानूनी संशोधन के लिए 123 ‘रेग्युलेटरी इंस्ट्रुमेंट’ का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें से 48 प्रतिशत में छूट दी गई थी.

विश्लेषण में इस्तेमाल ‘रेग्युलेटरी इंस्ट्रुमेंट’ पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आदेशों, कार्यालय ज्ञापनों (ओएम), परिपत्रों, पत्रों और अधिसूचनाओं को संदर्भित करता है.

थिंकटैंक ने इस विश्लेषण को ‘(De)रेग्युलेटिंग दि एनवायरमेंट?’ शीर्षक के साथ 6 दिसंबर को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया था.

थिंकटैंक ने बताया कि ज्यादातर संशोधन 2006 के पर्यावरण संरक्षण नियमों और पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना में बदलाव के जरिए किए गए थे. 

ये नियम इस कानून को लागू करने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं, जबकि EIA बड़ी विकासात्मक परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया का एक आवश्यक घटक है. दरअसल ईआईए अधिसूचना प्रभाव मूल्यांकन के लिए नियामक ढांचा निर्धारित करती है.

विधि के अनुसार, कानून में किए गए कुछ बदलाव ‘ईपीए के तहत सौंपी गई शक्तियों से अधिक’ हैं. क्योंकि वे या तो सार्वजनिक परामर्श के बिना या फिर कानून के दायरे से बाहर रखते हुए बनाए गए थे.


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कानून के दायरे से बाहर बदलाव

अपने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए संस्थान ने पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी विभिन्न राजपत्र अधिसूचनाओं, कार्यालय ज्ञापनों, परिपत्रों, पत्रों और आदेशों के जरिए विधि का विश्लेषण किया था.

केंद्र सरकार द्वारा प्रकाशित 74 गजट अधिसूचनाओं में से 16 ने 2006 की ईआईए अधिसूचना में बदलाव करने से पहले एक सार्वजनिक नोटिस जारी करने की जरूरत को खत्म कर दिया था. ऐसा पर्यावरण संरक्षण नियमों के तहत ‘सार्वजनिक हित’ प्रावधान के नाम पर किया गया.

विधि रिपोर्ट कहती है, ‘ईपी नियमों के नियम 5(4) में इस्तेमाल शब्द ‘सार्वजनिक हित’ की व्याख्या ईपी अधिनियम के दायरे और अधिकारिक आदेश से परे नहीं की जा सकती है,’  ईआईए 2006 अधिसूचना में लाए गए कुछ संशोधन में इस अपवाद का इस्तेमाल किया गया, जो संभावित पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन किए बिना प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर लगाए गए पर्यावरण संरक्षण उपायों को कम कर देता है. यह ईपी अधिनियम के अधिदेश के खिलाफ है. इस तरह के संशोधन न केवल ईपी अधिनियम के अधिकार से बाहर हैं बल्कि प्रकृति में प्रतिगामी भी हैं.

विधि रिपोर्ट आमतौर पर आंतरिक सरकारी पत्राचार के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले दस्तावेज यानी कार्यालय ज्ञापनों के जरिए वैधानिक प्रक्रियाओं में किए गए संशोधनों पर भी सवाल उठाती है.

रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले साल सरकार ने एक अधिसूचना के माध्यम से सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में टेनरियों के लिए एफ्लुएंट(बहिस्राव) मानकों को कम कर दिया था. सरकार ने एक अधिसूचना के जरिए मार्च 2020 में पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में ढील देने के लिए दवा परियोजनाओं को फिर से वर्गीकृत किया था. अन्य छूटों के साथ-साथ कुछ आवास परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी का विस्तार भी इसी तरह से किया गया था.

अप्रैल में दिप्रिंट ने पर्यावरण मंजूरी मानदंडों को आकार देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचनाओं और कार्यालय ज्ञापनों का इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्ट की थी.

स्वतंत्र विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार 2020 के विवादास्पद ईआईए अधिसूचना के समान बदलाव ला रही है, जिसे कड़ी सार्वजनिक प्रतिक्रिया मिलने के बाद हटा दिया गया था. यहां ईआईए के मसौदे में भारी बदलाव करने की मांग की गई थी, मसलन कुछ परियोजनाओं के लिए पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ (ex-post facto) पर्यावरणीय मंजूरी देना.

विधि रिपोर्ट में कहा गया, ‘यह काफी परेशान करने वाली बात है कि ओएम के जरिए वैधानिक प्रावधानों में बदलाव किए जा रहे हैं. क्योंकि ओएम तो सरकार के वो आंतरिक दस्तावेज होते हैं जो फैसलों के अंतर और विभागीय संचार के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. इनका सार्वजनिक रूप से सभी के लिए उपलब्ध होना जरूरी नहीं है, इसलिए उन्हें महत्वपूर्ण पर्यावरणीय निर्णय जारी करने के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. इसके बजाय, इस तरह के किसी भी निर्णय को भारत के आधिकारिक राजपत्र में एक अधिसूचना के रूप में व्यापक रूप से प्रकाशित किया जाना चाहिए.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य | संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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