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Friday, 22 November, 2024
होमदेशविन्सम डायमण्ड्स केस- UK की एक कोर्ट ने क्यों जारी किया भारतीय व्यापारी के ‘दुनिया भर के खाते फ्रीज करने का आदेश’

विन्सम डायमण्ड्स केस- UK की एक कोर्ट ने क्यों जारी किया भारतीय व्यापारी के ‘दुनिया भर के खाते फ्रीज करने का आदेश’

वकील का कहना है कि लंदन की कोर्ट ने एकपक्षीय सुनवाई के बाद, भगोड़े हीरा व्यापारी जतिन मेहता और उसके परिवार के खिलाफ ये आदेश जारी किया, जिनकी कथित तौर पर बैंकों के एक समूह को धोखा देने की जांच चल रही थी.

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नई दिल्ली: सोने और हीरों के गहने, शेल कंपनियों का एक जाल, और राउण्ड ट्रिपिंग- हीरा व्यापारी जतिन मेहता से जुड़ा विन्सम डायमण्ड केस, जिसमें कथित रूप से बैंकों के एक समूह को 7,000 करोड़ रुपए का चूना लगाया गया था, और जो 2014 में पहली बार उजागर हुआ था, अब फिर से चर्चा में है.

लेकिन इस बार कहानी यूके पहुंच गई है, जहां लंदन की एक कोर्ट ने मई में भगोड़े व्यापारी और उसके परिवार के खिलाफ, ‘दुनिया भर में फ्रीज़िंग आदेश’ जारी कर दिया.

मेहता परिवार और उनकी कंपनियों- गुजरात-स्थित विन्सम डायमण्ड्स और फॉरएवर प्रेशियस- जिन्होंने कर्ज़ अदायगी नहीं की थी- के खिलाफ 2014 में जांच शुरू हुई थी, जब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कंपनियों, उनके निदेशकों, और कुछ लोक सेवकों के खिलाफ मुक़दमे दर्ज किए थे.

इससे पहले कि मेहता के खिलाफ कोई कार्रवाई की जाती, उसने 2016 में अपने परिवार समेत भारत छोड़ दिया. ऐसा समझा जाता है कि भगोड़ा व्यापारी सेंट किट्स और नेविस चला गया- एक ऐसा कैरिबियाई द्वीप जिसकी भारत के साथ कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है.

हालांकि मेहता परिवार के खिलाफ़ भारत में मुक़दमे चल रहे हैं, जिनमें एक दिवाला कार्यवाही भी शामिल है, लेकिन लंदन में हाईकोर्ट ने मेहता, उसकी पत्नी सोनिया, और दो बेटों विशाल और सूरज के खिलाफ, दुनिया भर में फ्रीज़िंग आदेश जारी कर दिया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए मेहता के वकील स्वदीप सिंह होरा ने कहा, कि आदेश जारी करने का फैसला ‘एक-पक्षीय सुनवाई’ के बाद लिया गया, जिसमें मेहता लोगों की नुमाइंदगी नहीं थी.

फ्रीज़िंग ऑर्डर किसी कोर्ट द्वारा जारी एक ‘निषेधाज्ञा’ होती है, जो एक पक्ष दूसरे पक्ष के खिलाफ लेता है, ताकि प्रतिवादी को अपनी संपत्तियां बेंचने से रोका जा सके. इन संपत्तियों में ज़मीन, जायदाद, बैंक खाते, और क्रिप्टोकरेंसी तक शामिल होती है. इसके अलावा, इस आदेश के दायरे में प्रतिवादी की दुनिया भर में कहीं भी मौजूद संपत्ति आ सकती है.

ऐसा करने के पीछे उद्देश्य ये होता है कि यदि वादी मुक़दमा जीत जाए, तो वो दूसरे पक्ष की संपत्ति का कब्ज़ा ले सकता है.

इस आदेश को जारी कराने का आवेदन शिकायतकर्ताओं की और से दायर किया गया था, जिसकी अगुवाई स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक द्वारा नियुक्त कई इंग्लिश कंपनियों के लिक्विडेटर्स कर रहे थे.

होरा ने बताया, ‘(वर्ल्डवाइड फ्रीज़िंग ऑर्डर) की बरतरफी के लिए एक याचिका दायर कर दी गई है, और उस पर अक्तूबर में बहस की जाएगी. ये आदेश उस सुनवाई पर जारी किया गया, जिसमें मेहता की नुमाइंदगी करने वाले वकील कोर्ट में हाज़िर नहीं थे, जैसा कि इस तरह के एक-पक्षीय आदेश का तरीक़ा होता है. अब अक्तूबर में दोनों पक्षों की सुनवाई की जाएगी’.

होरा ने दिप्रिंट को बताया कि ये सुनवाई 5, 6, 7 अक्तूबर 2022 के लिए तय कर दी गई है.

मेहता लोग दावों की सुनवाई करने के इंग्लिश अदालत के अधिकार-क्षेत्र को भी चुनौती दे रहे हैं. होरा ने कहा, ‘दावेदारों ने मान लिया है इंग्लिश कोर्ट इसे अपने अधिकार-क्षेत्र में ले लेगी, चूंकि प्रतिवादी उसके अधिकार-क्षेत्र में मौजूद हैं’. उन्होंने कहा कि मेहता परिवार कई आधार पर इसपर आपत्ति जता रहा है.


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‘एक भगोड़ा आर्थिक अपराधी’

जांचकर्त्ताओं के अनुसार, सूरत के एक व्यापारी जतिन मेहता ने, जो बरसों से गहने बनाने के व्यापार में लगा है, सोना ख़रीदने के लिए बैंकों से ख़रीदार का क्रेडिट लिया, और फिर उसे हीरों के गहनों में लगा दिया और इसके बाद उन गहनों को दुबई के 13 ग्राहकों को निर्यात कर दिया.

भारतीय बैंकों ने स्टैण्डर्ड चार्टर्ड लंदन और स्टैण्डर्ड चार्टर्ड दक्षिण अफ्रीका जैसे अंतर्राष्ट्रीय बुलियन बैंकों के पक्ष में, विन्सम कंपनी समूहों को सोना सप्लाई करने के लिए, स्टैण्डबाई लैटर्स ऑफ क्रेडिट (एसबीएलसी) जारी कर दिए, जो एक आश्वासन थे कि अगर विन्सम समूह भुगतान नहीं कर पाता, तो भारत में मौजूद बैंक शाखाएं बक़ाया राशि अदा करेंगी.

2012 में, विन्सम ने घोषित कर दिया कि वो कर्ज़ों का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि वो घाटे में चल रही है. कंपनी ने कहा कि खाड़ी क्षेत्र में समूह के ग्राहक- यूएई ज्वैलर्स- घाटे में हैं और उसे भुगतान नहीं कर सकते.

2014 में सीबीआई ने मेहता के खिलाफ एक केस दर्ज कर लिया.

उसके बाद, इससे पहले कि बैंक कथित डिफॉल्ट पर कोई कार्रवाई कर पाते, मेहता ने अपनी कंपनियों से इस्तीफा दे दिया और 2016 में देश छोड़कर निकल गया.

जब उसकी कंपनियों ने एसबीएलसीज़ का निबाह नहीं किया, तो भारतीय बैंकों को मजबूरन विदेशी बैंकों को भुगतान करना पड़ा, जिससे उन्हें कथित तौर पर 1,530 करोड़ रुपए का घाटा हुआ.

जहां पहली शिकायत पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने दर्ज कराई, वहीं दूसरी शिकायत दर्ज कराने वाला कैनरा बैंक था. 5 अप्रैल 2017 को सीबीआई ने विन्सम डायमण्ड्स एंड ज्वैलरी लिमिटेड, तथा फॉरएवर प्रेशियस ज्वैलरी एंड डायमण्ड्स लिमिटेड के खिलाफ, कथित रूप से सरकारी बैंकों को धोखा देने के मामले में छह मुक़दमे दर्ज कराए.

सीबीआई अधिकारियों के अनुसार, मेहता ने अपनी कंपनियों के ज़रिए बैंकों के एक समूह से, जिसकी अगुवाई स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक कर रहा था, 6,800 करोड़ रुपए का कर्ज़ लिया, जिसमें सबसे अधिक राशि 1,800 करोड़ रुपए पीएनबी ने दी.

सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया मामले में, आरोप लगाया गया कि बैंक को विन्सम से 699.54 करोड़ रुपए, और ऑरएवर से 255.24 करोड़ रुपए का घाटा हुआ. इसके अलावा कंसॉर्शियम के दूसरे बैंकों, जैसे आईडीबीआई और विजय बैंक को विन्सम और ऑरएवर के मामले में क्रमश: 133.12 करोड़ और 55.68 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया है कि सीबीआई ने ये भी आरोप लगाया है, कि विन्सम ने कम से कम 75 करोड़ डॉलर की राशि हॉन्ग कॉन्ग, बहामास, और यूएई की छह इकाईयों को ट्रांसफर की, जिन्हें जतिन मेहता ‘नक़ली कंपनियों’ के एक जाल के ज़रिए, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नियंत्रित करता था.

जून 2020 में ईडी ने भी इस मामले में दो केस दर्ज किए, और उनमें से एक में आरोप पत्र भी दायर कर दिया. इसके अलावा जून 2018 में सीबीआई ने भी, सेंट्रल बैंक मामले में मेहता और कुछ लोक सेवकों समेत 21 अभियुक्तों के खिलाफ एक चार्जशीट दायर दी, जबकि पीएनबी की शिकायत पर अभी तक कोई चार्जशीट दायर नहीं की गई है.

जून 2019 में, ईडी ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) से गुहार लगाई कि विन्सम डायमण्ड्स एंड ज्वैलरी लि. का तब तक परिसमापन न किया जाए, जब तक वो धन-शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) के अंतर्गत, हीरा फर्म के खिलाफ जांच पूरी न कर ले.

ईडी चाहती थी कि परिसमापन पर विराम लगा दिया जाए, चूंकि वो पैसे के उस रास्ते को स्थापित करने की प्रक्रिया में है, जिससे आगे चलकर कर्ज़ की कथित धोखाधड़ी हुई.

पिछले साल प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मेहता को एक ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी’ भी घोषित कर दिया था.

‘इंग्लिश कोर्ट को पूरी कहानी नहीं बताई गई’

अपने कर्ज़ की वसूली के लिए बैंकों ने ऋण वसूली न्यायाधिकरण का दरवाज़ा भी खटखटाया. उसके बाद, परिसमापन प्रक्रिया शुरू हुई और प्रभावित बैंकों ने अपने दावे दायर किए.

भारत में इस परिसमापन प्रक्रिया के बावजूद, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने लंदन की कोर्ट के समक्ष इसी तरह की कार्यवाही शुरू कर दी. मेहता के वकील के अनुसार, उनका तर्क ये था कि स्टैंडर्ड चार्टर्ड इंडिया, स्टैंडर्ड चार्टर्ड लंदन की एक शाखा है इसलिए वो नुक़सान लंदन शाखा को हुआ है.

स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने ये भी आवेदन किया, कि मेहता की बहुत सारी भंग कर दी गईं इंग्लिश कंपनियों को बहाल किया जाए, जिन्हें कथित रूप से अपराध की आय के धन शोधन के लिए इस्तेमाल किया गया था. बैंक ने ऐसी कंपनियों की बहाली की मांग उठाई, ताकि वो उनके ऊपर लिक्विडेटर्स बिठा सकें और उनसे वसूली कर सकें.

केस को समझाते हुए होरा ने कहा, इंग्लिश कोर्ट के इसे अपने अधिकार-क्षेत्र में लेने पर, मेहता परिवार की आपत्ति ‘कई कारणों से है जिनमें एक ये भी है, कि स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक उन मामलों को इंग्लैण्ड में फिर से उठाने की कोशिश कर रहा है जो भारत में चल चुके हैं, और ऐसी परिस्थितियों में कर रहा है जहां भारत में समानांतर दिवाला कार्यवाहियां चल रही हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इस बिंदु को एक-पक्षीय सुनवाई में अच्छे से पेश नहीं किया गया, जहां विश्वव्यापी फ्रीज़िंग ऑर्डर जारी किया गया, इसके बावजूद कि एक-पक्षीय आवेदन देने वाले इंग्लिश दावेदारों को मटीरियल मामलों का पूर्ण और स्पष्ट खुलासा करना होता है. मेहता लोग कई मामलों में इस पर बहस करेंगे. इंग्लिश कोर्ट को सही कहानी नहीं बताई गई, और जारी किए गए इस आदेश को ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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