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शुक्रवार, 2 मई, 2025
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कर्मचारी को पदोन्नति का अधिकार नहीं है लेकिन अयोग्य न होने पर विचार किया जाएगा : न्यायालय

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नयी दिल्ली, दो मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी कर्मचारी को पदोन्नति का अधिकार नहीं है, लेकिन जब तक उन्हें अयोग्य न ठहरा दिया जाए तब तक पदोन्नति के लिए उनके नाम पर विचार किए जाने का उन्हें अधिकार है।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ तमिलनाडु के एक पुलिस कांस्टेबल द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी, जो उप-निरीक्षक के पद पर पदोन्नति के लिये उसके नाम पर विचार नहीं किये जाने से व्यथित था।

उन्होंने कहा, “यह बात सर्वविदित है कि कर्मचारी को पदोन्नति पाने का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन पदोन्नति के लिए चयन किए जाने के उद्देश्य से उसके नाम पर विचार किए जाने का अधिकार है, जब तक कि उसे अयोग्य न ठहराया जाए; जिस अधिकार का उल्लंघन उपरोक्त मामले में अन्यायपूर्ण तरीके से किया गया है।”

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि चेक पोस्ट पर तैनाती के दौरान एक सहकर्मी की कथित रूप से पिटाई करने के कारण उन्हें विभागीय और आपराधिक दोनों तरह की कार्रवाई का सामना करना पड़ा था।

इसमें कहा गया है कि आपराधिक मामले में अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में उसे बरी कर दिया गया, सरकार ने 2009 में विभागीय कार्यवाही के आधार पर दी गई सजा को खारिज कर दिया।

पुलिस अधीक्षक ने हालांकि कहा कि पदोन्नति के लिए अपीलकर्ता के नाम पर विचार नहीं किया गया क्योंकि मई 2005 में उसे बिना संचयी प्रभाव के एक वर्ष के लिए अगली वेतन वृद्धि स्थगित करने के दंड के कारण नियमों के अनुसार पदोन्नति से वंचित कर दिया गया था।

पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता की सजा में हस्तक्षेप किया गया था तथा उसे नवंबर 2009 में रद्द कर दिया गया था।

पीठ ने अपने फैसले में कहा, “ऐसी परिस्थितियों में अपीलकर्ता को वर्ष 2019 में विचार से वंचित नहीं किया जा सकता था।”

इसमें कहा गया है, “उपर्युक्त परिस्थितियों में हमारा विचार है कि अपीलकर्ता के नाम पर पदोन्नति के लिए विचार किया जाना चाहिए, बशर्ते उसकी अधिक आयु के कारण उसे किसी प्रकार की अयोग्यता न झेलनी पड़े।”

पीठ ने कहा कि इस पर विचार किया जाएगा और यदि वह पात्र पाया गया तो उसे 2019 से पदोन्नत किया जाएगा तथा उसे परिणामी लाभ भी दिए जाएंगे, क्योंकि यह उसकी गलती नहीं थी कि प्राधिकारी ने उस सजा के आधार पर उसकी पदोन्नति पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसे पहले ही खारिज कर दिया गया था।

पीठ ने व्यक्ति की अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा अक्टूबर, 2023 को पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे सेवारत उम्मीदवार के रूप में पदोन्नति देने पर विचार करने की उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उन्हें मार्च 2002 में नियुक्त किया गया था और वे 2019 में विचार के लिए पात्र थे, जब 20 प्रतिशत विभागीय कोटा में सेवाकालीन पदोन्नति के लिए पात्र कांस्टेबलों पर विचार करने के लिए एक अधिसूचना जारी की गई थी।

भाषा प्रशांत रंजन

रंजन

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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