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Tuesday, 26 August, 2025
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एल्गर परिषद मामला: न्यायमूर्ति सुंदरेश ने गाडलिंग की जमानत याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

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नयी दिल्ली, 26 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग की जमानत याचिका पर सुनवाई से मंगलवार को खुद को अलग कर लिया।

सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर मामले की स्थिति से पता चलता है कि यह मामला न्यायमूर्ति सुंदरेश के समक्ष सूचीबद्ध नहीं होगा।

यह सुनवाई न्यायमूर्ति सुंदरेश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष होनी थी, जिसमें न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह भी शामिल थे।

वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने आठ अगस्त को, अपने मुवक्किल गाडलिंग की 6.5 साल की कैद का हवाला देते हुए प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई के समक्ष शीघ्र सुनवाई के लिए मामले का उल्लेख किया।

ग्रोवर ने कहा,‘‘ उच्चतम न्यायालय में ज़मानत याचिका पर सुनवाई 11 बार स्थगित हो चुकी है।’’

न्यायमूर्ति सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने 27 मार्च को इस मामले में गाडलिंग और कार्यकर्ता ज्योति जगताप की ज़मानत पर सुनवाई टाल दी थी।

न्यायालय ने कार्यकर्ता महेश राउत को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की याचिका पर सुनवाई भी टाल दी थी ।

राउत को मुंबई उच्च न्यायालय ने ज़मानत दे दी थी।

गाडलिंग पर माओवादियों को सहायता प्रदान करने और विभिन्न सह-आरोपियों के साथ कथित तौर पर साजिश रचने का आरोप है।

उन पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम और आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था और अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि गाडलिंग ने भूमिगत माओवादी विद्रोहियों को सरकारी गतिविधियों और कुछ क्षेत्रों के मानचित्रों के बारे में गुप्त जानकारी प्रदान की थी।

उन्होंने कथित तौर पर माओवादियों से सुरजागढ़ खदानों के संचालन का विरोध करने को कहा तथा कई स्थानीय लोगों को आंदोलन में शामिल होने के लिए उकसाया।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि जगताप कबीर कला मंच (केकेएम) समूह का सक्रिय सदस्य था जिसने 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गर परिषद सम्मेलन में अपने मंचीय नाटक के दौरान न केवल आक्रामक बल्कि अत्यधिक भड़काऊ नारे लगाए थे।

एनआईए के अनुसार केकेएम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का एक मुखौटा संगठन है।

‘एल्गर परिषद 2017’ सम्मेलन शनिवारवाड़ा में आयोजित किया गया था, जो पुणे शहर के मध्य में स्थित 18वीं शताब्दी का महल-किला है।

भाषा शोभना नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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