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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशन बिजली, न शिक्षा: आंध्र प्रदेश के इस गांव के आदिवासी कर रहे हैं दूसरी जगह बसाए जाने की मांग

न बिजली, न शिक्षा: आंध्र प्रदेश के इस गांव के आदिवासी कर रहे हैं दूसरी जगह बसाए जाने की मांग

आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव जीलूगुलोवा के आदिवासी मांग कर रहे हैं कि उन्हें किसी दूसरी जगह बसाया जाए, जहां उन्हें बिजली की सुविधा मिल सके और उनके बच्चे शिक्षा पा सकें.

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हैदराबाद/जीलूगुलोवा: आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव जीलूगुलोवा पहुंचने का एक मात्रा साधन हैनीचे सड़क तक तीन किलोमीटर का पैदल सफर. पूर्वी घाट में स्थित इस आदिवासी गांव में कोई सड़क संपर्क, स्कूल, या प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र नहीं है.

ऊपर से यहां के निवासियों को बिजली भी मयस्सर नहीं है. कुछ लोग सोलर प्लेट्स का इस्तेमाल करते हैं, जो उन्हें सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने दी हैं जिनसे वो अपने बेसिक मोबाइल फोन चार्ज कर सकते हैं, या अपनी काम-चलाऊ झोंपड़ियों में एक बल्ब जला सकते हैं. गांव वासियों के अनुसार भारी बारिश होते ही झोंपड़ियों में पानी भर जाता है.

बुनियादी सुविधाओं का अभाव ही वो कारण है जिसकी वजह से जीलूगुलोवा के वासियों ने- जिनमें नौ परिवार हैं जिनके कुल 50 सदस्य हैं- कहीं दूसरी जगह बसाए जाने की मांग की है. कुल 50 गांव वालों में 10 बच्चे और 20 महिलाएं हैं.

स्थानीय लोग, जिनका ताल्लुक़ कोंध जनजाति से है, अपनी जीविका के लिए काजू की खेती पर निर्भर करते हैं. वो हल्दी की भी खेती करते हैं.

Residents of Jeelugulova village | Rishika Sadam | ThePrint
स्थानीय निवासी. तस्वीर- रिशिका सदम

2018 तक जीलूगुलोवा के निवासियों के पास आधार कार्ड तक नहीं था, और उन सभी का कहना है कि उनके पास अभी तक वोटर पहचान पत्र नहीं है, जिसके लिए उन्होंने 2020 में आवेदन किया था. 26 वर्षीय कोरा महेश ने दिप्रिंट से कहा, हमने अपने जीवन में कभी वोट नहीं किया है’.

उसने आगे कहा, हम बरसों से मंडल राजस्व कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं, और अधिकारी हमें कहीं और बसाने, या हमारे लिए सड़क बनवाने का वादा करते हैं, लेकिन वो कभी हुआ नहीं. हमने प्रदर्शन किया, अनुरोध किया, लेकिन अभी तक कुछ भी काम नहीं आया’.

कोरा महेश ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान पेश आई कठिनाइयों की वजह से ही, जीलूगुलोवा के आदिवासी अब मांग कर रहे हैं कि उन्हें कहीं और बसाया जाए.

2020 में अचानक लगे लॉकडाउन ने किस तरह गांववासियों का जीना बेहद मुश्किल कर दिया, उसे याद करते हुए कोरा महेश ने कहा, हम पूरे दिन पैदल चलकर पहाड़ी से नीचे उतरकर गए तो देखा कि सब कुछ बंद था. लोग अपने घरों में बंद थे और किराने का सामान लेना भी बेहद मुश्किल था. और फिर कोविड फैल गया. हम सामाजिक संगठनों के सहारे थे जिन्होंने हमारा ख़याल रखा और हमें खाना भिजवाया. उसके बाद ही हमने तय किया कि किसी और से बात करने के लिए हमें फोन की ज़रूरत है.   

डोली स्ट्रेचर्स, बच्चों के लिए स्कूल नहीं

जब भी चिकित्सा से जुड़ा कोई संकट आता है, गांव के लोगों को मजबूरन मरीज़ को लादकर नीचे सड़क तक लाना पड़ता है, जिसके बाद नज़दीकी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र तक एक और सफर तय करना पड़ता है.

जब दिप्रिंट ने रविकामथम मंदल में कोथाकोटा के प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र का दौरा किया तो उसमें ताला पड़ा हुआ था.

यही कारण है कि आयु कुछ भी हो, जीलूगुलोवा के हर एक निवासी को ये हुनर ज़रूर सिखाया जाता है, कि डोली को कैसे बांधा जाता है– जो एक कामचलाऊ स्ट्रेचर होता है जिसे लकड़ी के टुकड़ों को रस्सी से बांधकर बनाया जाता है. 

39 वर्षीय बालाराजू ने दिप्रिंट से कहा, चुनौती ये होती है कि इन डोलियों को उठाए हुए नीचे सड़क तक कैसे ले जाया जाए. बीमार पड़ने पर हम आमतौर से प्राकृतिक/पौधों की औषधियों पर निर्भर करते हैं. बहुत अधिक इमरजेंसी होने पर ही हम नीचे उतर कर जाते हैं. वरना, हर बार इसी काम को करना पड़ता है. अपना बेसिक राशन लाने के लिए भी हमें 3 किलोमीटर नीचे चलकर जाना पड़ता है.  

बीते सालों में ऐसे बहुत से मौक़े सामने आए हैं जब आंध्र प्रदेश के बिना-सड़क के ऐसे कई गांवों में, गर्भवती महिलाओं को प्रसव पीड़ी शुरू हो जाने के बाद इन डोलियों में नज़दीकी अस्पताल ले जाया गया है.

पचपन वर्षीय चिलाकम्मा इन पहाड़ियों में कम से कम सात महिलाओं की बच्चा पैदा करने में सहायता कर चुकी हैं. उन्होंने कहा, हमारे पास और क्या रास्ता हैअगर डोली में लिटाकर पहाड़ियों से नीचे ले जाया जाए, तो मां और बच्चे दोनों के लिए ख़तरा बना रहता है’.

Chilakamma with other villagers from Jeelugulova | Rishika Sadam | ThePrint
स्थानीय महिलाएं. तस्वीर- रिशिका सदम

जीलूगुलोवा के बच्चों के लिए भी हालात कोई अलग नहीं हैं, जो सब 10 साल से कम के हैं और कभी स्कूल नहीं गए हैं. इस डोली गांव में रहने वाले पांच किशोरों ने कभी अंदर से कोई क्लासरूम नहीं देखा है.  

बालाराजू ने कहा, हमारे बच्चे हर बार पहाड़ियों से नीचे उतरकर स्कूल नहीं जा सकते. अगर सड़क संपर्क होता तो वो पैदल चलकर स्कूल गए होते. बरसों तक अधिकारियों से विनती करने के बाद, अब महीने में एक बाद बच्चों को उनके स्वास्थ्य वग़ैरह की जांच के लिए, नीचे आंगनवाड़ी ले जाया जाता है.

रिकॉर्ड्स में भ्रामक तस्वीर

2011 (पिछली जनगणना के वर्ष) तक जीलूगुलोवा को विशाखापटनम के रविकामथम मंडल का हिस्सा समझा जाता था, लेकिन उसी साल उसे रविकामथम मंडल में आने वाली बस्तियों की सूची से हटा दिया गया. ग़ैर- अनुसूचित रविकामथम मंडल को, अप्रैल में आंध्र प्रदेश में हुए ज़िलों के पुनर्गठन के बाद, अनाकापल्ले ज़िले का हिस्सा माना जाता है.  

मंडल राजस्व अधिकारी कनक राव ने दिप्रिंट से कहा, ऐसा माना गया कि जीलूगुलोवा में ऐसी कोई बस्ती नहीं है, और उसे सूची से हटा दिया गया.  

आंध्र प्रदेश में आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाली एक संस्था, गिरिजाना संगठन के सदस्य गोविंद राव ने कहा, विडंबना ये है कि ऐसे कोई रिकॉर्ड नहीं हैं जिनसे पता चल सके कि जीलूगुलावा किस मंडल में आता है. उसे रविकामथम मंडल से हटा दिया गया था, हालांकि वो सोमालम्मा पहाड़ियों में स्थित है, जिसके लिए खनन की अनुमति रविकामथम मंडल ऑफिस से ही जारी की जाती है 

उन्होंने आगे कहा कि जीलूगुलोवा के निवासियों को उन जनजातियों की सूची में रखा गया था, जिन्हें अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) नियम, 2008, के अंतर्गत दूसरी जगह पुनर्वास की ज़रूरत है, लेकिन उसके बाद से उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आया है.

गोविंद राव ने दिप्रिंट से कहा, हमने उन्हें कुछ सोलर प्लेट्स मुहैया कराईं, और कुछ बल्ब फिट करा दिए. उन्हीं से वो लोग अपने बेसिक मोबाइल फोन्स चार्ज करते हैं,और उनकी बैटरी मुश्किल से कुछ घंटे चलती है. कोई इमरजेंसी होने पर वो हमें बुलाते हैं. काफी समन्वय करने के बाद, स्थानीय अधिकारियों की सहायता से हम उनके लिए आधार कार्ड्स बनवा सके. ये लोग कम से कम 35 साल से उस गांव में रह रहे हैं. कुछ लोग वहां से चले गए लेकिन बाक़ी परिवार अभी भी वहीं हैं’.      

सर्वेक्षण की प्रक्रिया जारी: ITDA

आंध्र प्रदेश में अपने नौ दफ्तरों के साथ समन्वित जनजाति विकास परियोजना (आईटीडीए), ऐसे गांवों की ख़बर रखती है जहां कोई सड़क संपर्क नहीं है. आईटीडीए के पदेरू डिवीज़न में, जिसके परियोजना अधिकारी गोपाल कृष्ण हैं, 11 मंडलों में ऐसे 972 आदिवासी गांव हैं जिनमें कोई सड़क नहीं है, लेकिन जीलूगुलोवा को उनमें शुमार नहीं किया जाता.

गोपाल कृष्ण ने दिप्रिंट से कहा, जीलूगुलोवा हमारे संज्ञान में रहा है और मैंने वहां एक आंगनवाड़ी, स्कूल और सड़क संपर्क का अनुमानित ख़र्च भी मांगा था. एक प्रस्ताव ये भी है कि जीलूगुलोवा को 5वीं अनुसूचि में शामिल कर लिया जाए, और 93 ग्राम पंचायतों से भी प्रस्ताव हैं’.

संविधान की 5वीं अनुसूचि का संबंध उन क्षेत्रों के प्रशासन और नियंत्रण से है, जहां अनुसूचित जनजातियां बहुमत में हैं.  

कार्यकर्त्ता गोविंद राव ने कहा, जीलूगुलोवा उन 972 गांवों की सूची में नहीं आता, चूंकि उनके विपरीत वो एक ग़ैर-अनुसूचित क्षेत्र में स्थित है. ग़ैर-अनुसूचित क्षेत्रों में ऐसे गांवों की संख्या सैकड़ों में है, जिनका कोई सड़क संपर्क नहीं है, और जिनका अधिकारियों के पास कोई हिसाब नहीं है. वो इन गांवों के वजूद को ही स्वीकार नहीं करते; अधिकारियों को कोई अंदाज़ा नहीं है कि ये गांव कहां हैं, और इनमें कौन रहते हैं.

70-year-old Korra Gasanna from Jeelugulova | Rishika Sadam | ThePrint
जीलुगुलोवा से 70 वर्षीय कोर्रा गसन्ना | रिशिता सदम. दिप्रिंट

ये पूछने पर कि जीलूगुलोवा आदिवासियों के लिए क्या करने की उम्मीद रखती है, आईटीडीए के पदेरू परियोजना अधिकारी गोपाल कृष्ण ने कहा, स्कूलों के लिए अभी तक मंज़ूरियां नहीं आई हैं, और मुझे संभावित सड़क संपर्क पर अभी तक रिपोर्ट नहीं मिली है. उसके अलावा हम ये सर्वे करने की प्रक्रिया में हैं, कि ये बस्ती रविकामथम मंडल में आती है, या मदुगुला मंडल में आती है.

उन्होंने कहा, इन मंडलों को कनेक्टिविटी देने के लिए हमने दिसंबर में मिशन पदेरू कनेक्ट की शुरुआत की थी. उन्होंने आगे कहा कि इस पहल में सड़कें, इंटरनेट, पीने के पानी, और बिजली उपलब्ध कराने पर ज़ोर दिया गया है.  

उन्होंने कहा, हमें उम्मीद है कि अगले तीन वर्षों में हम उसे हासिल कर लेंगे.

जब दिप्रिंट ने रविकामथम, जी मदुगुला और वी मदुगुला मंडलों के राजस्व अधिकारियों से संपर्क किया, तो उसभी ने अपने जवाब में कहा कि जीलूगुलोवा उनके कार्यक्षेत्र में नहीं आता. अनाकापल्ले के ज़िला कलेक्टर रवि प्रकाश शेट्टी ने इस ख़बर के प्रकाशित होने तक, दिप्रिंट की कॉल्स या लिखित संदेशों का जवाब नहीं दिया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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