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Saturday, 18 May, 2024
होमदेशयूपी में बिजली विभाग के कर्मचारियों के पैसों को डिफॉल्टर कंपनी में लगाया गया, 2 अधिकारी गिरफ्तार

यूपी में बिजली विभाग के कर्मचारियों के पैसों को डिफॉल्टर कंपनी में लगाया गया, 2 अधिकारी गिरफ्तार

डिफॉल्टर कंपनी डीएचएफएल में लगाए गए 2600 करोड़ से अधिक रुपए, प्रियंका गांधी ने योगी सरकार को घेरा.

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लखनऊ: यूपी के बिजली विभाग में पीएफ (प्राॅविडेंट फंड) को लेकर बवाल मचा हुआ है. दरअसल मुंबई स्थित विवादास्पद कंपनी दीवान हाउसिंग फायनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) में यूपी विद्युत निगम लिमिटेड (यूपीपीसीएल) ने एक विवादास्पद निर्णय के तहत कथित रूप से अपने कर्मचारियों के 2,600 करोड़ रुपये के फंड का निवेश किया है. इस कथित सौदे की जानकार मिलते ही लखनऊ में बिजली विभाग के कर्मचारियों में हड़कंप मचा जिसके बाद शनिवार दोपहर कांग्रेस की यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर सरकार को घेरा.

देर शाम इस मामले में पुलिस ने इस मामले में यूपीपीसीएल के दो अफसरों निदेशक वित्त सुधांशु त्रिवेदी और महाप्रबंधक कॉमर्शियल पीके गुप्ता को गिरफ्तार कर जेल भेजा है. पुलिस ने बताया कि इस फर्जीवाड़े में और भी कई बड़े अफसर शामिल हो सकते हैं. मामले के संज्ञान में आते ही मुख्यमंत्री के निर्देश पर शनिवार देर शाम मुकदमा दर्ज किया गया और चंद घंटों में ही कार्रवाई करते हुए पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

प्रमुख सचिव ऊर्जा आलोक कुमार ने मीडिया को बताया कि निजी कंपनी के पास बची रकम को वापस लाने के लिए सभी जरूरी वैधानिक कदम उठाए जाएंगे.

कुमार ने बताया, ‘निवेश में अनियमितताओं पर ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव व महाप्रबंधक वित्त प्रवीण कुमार गुप्ता को 10 अक्टूबर को ही निलंबित कर दिया गया था. वह इनदिनों आगरा के दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में महाप्रबंधक (लेखा एवं सम्प्रेक्षा) के पद पर कार्यरत थे.’

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ईडी ने हाल ही में की थी डीएचएफएल से पूछताछ

डीएचएफएल के प्रमोटरों से हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने दाऊद इब्राहिम के एक पूर्व सहयोगी इकबाल मिर्ची की एक कंपनी के साथ संबंधों को लेकर पूछताछ की है.

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की है कि उत्तर प्रदेश पॉवर सेक्टर इम्प्लॉईस ट्रस्ट में 2631 करोड़ रुपये के घोटाले की सीबीआई से जांच कराई जाये. साथ ही घोटाले में प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन के आला अधिकारियों पर कठोर कार्यवाई की जाए.

राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव

राजीव सिंह ने बयान जारी कर मांग की है कि पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन ट्रस्ट में जमा धनराशि और उसके निवेश पर तत्काल एक श्वेतपत्र जारी करे. ताकि यह पता चल सके कि कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई की धनराशि कहां-कहां निवेश की गई है? उन्होंने कहा कि मार्च 2017 से दिसंबर 2018 के बीच डीएचएफएल में 2631 करोड़ रुपये जमा किये गए. मार्च 2017 से आज तक पॉवर सेक्टर इम्प्लॉईस ट्रस्ट की एक भी बैठक नहीं हुई. यह बहुत सुनियोजित और गंभीर घोटाला है.

इस मामले में अभियंता संघ ने कर्मचारियों के सामान्य भविष निधि (जीपीएफ) और अंशदायी भविष्य निधि (सीपीएफ) से संबंधित पैसे को निवेश करने के निर्णय पर सवाल उठाया है.

पत्र में कहा गया है कि यूपी सरकार को अब यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक विवादास्पद कंपनी में जमा की गई हजारों कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई वापस लाई जाए.संघर्ष समिति का कहना है कि अभी भी 1,600 करोड़ रुपये से अधिक की राशि डीएचएफएल में फंसी हुई है. सरकार यह पैसा वापस लाए. हम सरकार से एक आश्वासन भी चाहते हैं कि जीपीएफ या सीपीएफ ट्रस्ट में मौजूद पैसों को भविष्य में इस तरह की कंपनियों में निवेश नहीं किया जाएगा.

प्रियंका गांधी ने उठाए सवाल

कांग्रेस की यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने इस मुद्दे को उठाते हुए ट्वीट किया है – ‘उप्र भाजपा सरकार ने राज्य के पॉवर कार्पोरेशन के कर्मियों की भविष्य निधि का पैसा डीएचएफएल जैसी डिफाल्टर कम्पनी में फंसा दिया है.किसका हित साधने के लिए कर्मचारियों की 2000 करोड़ से भी ऊपर की गाढ़ी कमाई इस तरह की कम्पनी में लगा दी गई?कर्मचारियों के भविष्य के ये खिलवाड़ क्या जायज है?’

प्रियंका के इस ट्वीट के यूपी के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने बयान जारी करते हुए कहा, ‘डीएचएफएल में कर्मचारियों की भविष्य निधि के निवेश का मामला गंभीर है. इसमें जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी, यूपीपीसीएल के सभी कार्मिक मेरे परिवार के सदस्य हैं, किसी का कोई अहित न हो सरकार यह सुनिश्चित करेगी.’

वहीं द प्रिंट से बातचीत में राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव राजीव सिंह ने कहा, ‘वह इतना चाहते हैं कि कर्मचारियों का पैसा सही समय पर उन्हें मिल जाए और इस मामले की निष्पक्ष जांच हो.’

उन्होंने बताया कि यूपीपीसीएल के चेयरमैन को लिखे पत्र में कहा गया है कि (यूपी स्टेट पॉवर सेक्टर इंप्लाई ट्रस्ट) के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी ने सरप्लस कर्मचारी निधि को डीएचएफएल की सावधि जमा योजना में मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक जमा कर दिया.

इस बीच बंबई उच्च न्यायालय ने कई संदिग्ध कंपनियों और सौदों से उसके जुड़े होने की सूचना के मद्देनजर डीएचएफएल के भुगतान पर रोक लगा दी.

वहीं इसके अलावा पत्र में आगे कहा गया है कि ट्रस्ट के सचिव ने फिलहाल स्वीकार किया है कि 1,600 करोड़ रुपये अभी भी डीएचएफएल में फंसा हुआ है. संघर्ष समिति ने आरोप लगाया है कि कर्मचारी निधि को किसी निजी कंपनी के खाते में हस्तांतरित किया जाना, उन नियमों का सरासर उल्लंघन लगता है जो कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के बाद के लिए इस निधि को सुरक्षित करते हैं.

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