मुंबई: तमाम अड़चनों से उबरने और करीब दो साल की देरी के बाद मुंबई की सबसे लंबी भूमिगत मेट्रो लाइन—जो शहर के सबसे महंगे ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में से एक है—के आखिरकार दिसंबर 2023 में चालू हो जाने की उम्मीद है.
मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (एमएमआरसी) ने बुधवार को टनलिंग का 100 फीसदी काम पूरा कर लिया, जो अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं है. दूसरी तरफ, सुप्रीम कोर्ट ने भी आरे में मेट्रो कार शेड निर्माण को मंजूरी दे दी है, जो कि आधे दशक से अधिक समय से राज्य में एक राजनीतिक विवाद का मुद्दा बना हुआ था.
एमएमआरसी में प्रोजेक्ट डायरेक्टर एस.के. गुप्ता ने बताया, ‘अब तक, कुला मिलाकर परियोजना का 77 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. हमें हाल ही में डिपो बनाने के लिए मंजूरी मिली है और अब पहला चरण दिसंबर 2023 तक चालू हो जाएगा. दूसरा चरण छह महीने के अंतराल के बाद यानी जून 2024 में चालू हो जाएगा.
मेट्रो-3 लाइन 33.5 किलोमीटर लंबी है और इस पर कोलाबा-बांद्रा-सीप्ज के बीच मेट्रो चलेगी. यह शहर में मेट्रो नेटवर्क के तहत पहला भूमिगत कॉरिडोर भी है. इस लाइन पर 27 स्टेशनों में से 26 अंडरग्राउंड होंगे. यह मेट्रो लाइन इस लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि यह दक्षिण मुंबई के एक छोर से उत्तरी क्षेत्र के बीच बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) सहित व्यापारिक जिलों को जोड़ेगी. साथ ही छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट को भी कनेक्ट करेगी.
यह मेट्रो लाइन यात्रियों के लिए बेहद सुविधाजनक होगी क्योंकि रेलवे, महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) और अन्य निर्माणाधीन मेट्रो लाइनों के साथ आठ अलग-अलग स्थानों पर कनेक्टिविटी प्रदान करेगी.
गुप्ता ने कहा कि एमएमआरसी की अगली बड़ी चुनौती सप्लाई लाइन ट्रासंपोर्ट के साथ पूरी तरह से एकीकृत प्रणाली स्थापित करना है.
मेट्रो की प्रकृति के कारण सारे सिस्टम को एक साथ जोड़ना एक कठिन कार्य है. चूंकि यह लाइन अंडरग्राउंड है, शहर का भूविज्ञान—जो समुद्री मिट्टी और कठोर बेसाल्ट चट्टान से बना है—भी एक बड़ा फैक्टर है. यही नहीं मुंबई मेट्रो का एक हिस्सा मीठी नदी के नीचे से गुजरता है.
गुप्ता ने कहा कि भूमिगत चलने वाली ट्रेनों को सिग्नलिंग सिस्टम के साथ समन्वय करना होगा और सभी तकनीकों को हर दूसरे हिस्से के साथ बेहतर ढंग से जोड़ना होगा, जो एक चुनौती होगी.
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भूमिगत मेट्रो
मेट्रो-3 के लिए टनल बनाने का काम 2017 में शुरू हुआ था जब शहर में पहली टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) आई. तबसे एमएमआरसी को पूरी सुरंग बनाने में पांच साल लग गए. हालांकि, कोविड महामारी के कारण इस दिशा में जारी कार्यों में बाधा आई लेकिन लाइन बनाने में अधिकांश देरी विवादों के कारण हुई.
विवादास्पद कार शेड और आरे में इसके लिए निर्धारित जगह महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच एक राजनीतिक विवाद का विषय बनी रही.
आरे मेट्रो कार डिपो को पर्यावरणविदों और एक्टिविस्ट के कड़े विरोध का भी सामना करना पड़ा, जिन्होंने प्रस्तावित साइट पर कई विरोध प्रदर्शन किए, जिसमें बड़ी संख्या में सिविल सोसाइटी के लोग भी शामिल हुए.
लेकिन इस मामले को तब जाकर कुछ दिशा मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एमएमआरसी को परियोजना के तहत रैंप बनाने के लिए 84 और पेड़ काटने के संबंध में वृक्ष प्राधिकरण के समक्ष अपना आवेदन आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी. डिपो के लिए एजेंसी पहले ही आरे जंगल में 2,000 से अधिक पेड़ काट चुकी है.
अब, एजेंसी आरे जंगल के अंदर अपना निर्माण आगे बढ़ा सकती है, जो कि इस लाइन को शुरू करने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है.
गुप्ता ने कहा, ‘हमें डिपो पर बहुत काम पूरा करना है. हमारे पास एक निर्धारित समयसीमा ही है. इसलिए पहली लाइन चालू करने से पहले एक डिपो की जरूरत है.’
अब एमएमआरसी के लिए अगला प्रमुख कार्य अपना सिविल वर्क और सिस्टम वर्क पूरा करना है. सिविल कार्य, जिसमें स्टेशन निर्माण शामिल है, 88 प्रतिशत पूरा हो चुका है. वहीं, रोलिंग स्टॉक, प्लेटफॉर्म स्क्रीन दरवाजे, सिग्नल, एस्केलेटर और ट्रैक आदि सिस्टम वर्क भी 43 प्रतिशत पूरा हो चुका है.
गुप्ता ने कहा, लेकिन सारा काम एक साथ और एक ही गति से चल रहा है. उन्होंने बताया कि कई इलाके भीड़भाड़ वाले हैं, खासकर कलाबादेवी और गिरगांव, जहां स्टेशनों का निर्माण इमारतों के बहुत करीब किया जा रहा है और कुछ इलाके हेरिटेज की श्रेणी में आते हैं. उन्होंने इस बारे में भी बात की कि कैसे भूविज्ञान, यातायात संबंधी जरूरतें, आवश्यक जगह की कमी और अलग-अलग तरह के परिवेश आदि स्टेशन निर्माण कार्य में चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं.
गुप्ता ने कहा, ‘इन सभी फैक्टर्स को एक साथ जोड़ना होगा. बहुत समानता है लेकिन कई अंतर भी हैं.’
क्यों अहम है मेट्रो-3 लाइन
एमएमआरसी के ट्रैफिक अनुमानों के मुताबिक, अधिकांश ट्रैफिक बीकेसी—जो कई मेट्रो लाइनों से जुड़ा है—और कफ परेड के बीच होगा. इसलिए, इस बेल्ट में ट्रेनों की फ्रिक्वेंसी अधिक होगी. गुप्ता ने कहा कि एमएमआरसी को उम्मीद है कि प्रतिदिन 1.4 करोड़ लोग इस लाइन का इस्तेमाल करेंगे, लेकिन इसमें बदलाव भी हो सकता है. संशोधित अनुमान के साथ एमएमआरसी की कुल लागत 37,276 करोड़ रुपये हो गई है.
गुप्ता ने कहा कि इस लाइन के निर्माण में सुरंग खुदाई का काम सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था.
उदाहरण के तौर पर, दक्षिण मुंबई के कलाबादेवी, गिरगाम और ग्रांट रोड क्षेत्रों में भूविज्ञान बहुत जटिल है और यहां ऊपर बनी इमारतें भी काफी पुरानी और कमजोर थी. गुप्ता ने कहा कि क्षेत्र घनी आबादी वाला होने की वजह से ही निर्माण कार्य मुश्किल रहा है. उन्होंने कहा कि स्टेशनों के लिए जमीन हासिल करने और क्षेत्र के लोगों को समझाने में भी काफी मेहनत करनी पड़ी.
उन्होंने कहा कि बीकेसी क्षेत्र के आसपास स्टेशन एक जल निकाय के करीब है और कुछ हिस्सा इस जलाशय के नीचे से भी गुजरता है. इस तरह सभी स्टेशनों के आसपास अलग-अलग तरह की चुनौतियां रहीं.
गुप्ता ने कार शेड की अहमियत के बारे में भी बताया. उनके अनुसार, लाइन शुरू करने के लिए एक डिपो की जरूरत थी और इसके बिना लाइन को चालू करना मुश्किल होगा क्योंकि डिपो के पास लाइन का कंट्रोल सिस्टम होगा.
गुप्ता ने कहा, लेकिन यह दोनों काम हो जाने के बाद अब मेट्रो लाइन का काम अगले साल दिसंबर तक पूरा हो जाएगा.
अनुवाद: रावी द्विवेदी
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