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Sunday, 17 November, 2024
होमदेशदिल्ली में 12 साल में 6,342 से घटकर 3,910 ही रह गईं बसें, लगातार घटते बेड़े ने यात्रियों की परेशानी बढ़ाई

दिल्ली में 12 साल में 6,342 से घटकर 3,910 ही रह गईं बसें, लगातार घटते बेड़े ने यात्रियों की परेशानी बढ़ाई

2025 तक, डीटीसी के बेड़े की 83 प्रतिशत बसों को उनकी ऑपरेशनल लाइफ पूरी होने के बाद चरणबद्ध तरीके से हटा दिया जाएगा. हालांकि, परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत को निगम के पुनर्जीवित होने की उम्मीद है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में हर दिन की आवाजाही के लिए बसों पर निर्भर लोगों के लिए आगे की राह आसान नजर नहीं आ रही. सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के मौजूदा बेड़े में शामिल 83 फीसदी बसों को 2025 तक उनकी 15 साल की परिचालन सीमावधि पूरी होने के बाद चरणबद्ध तरीके से हटा दिया जाएगा.

डीटीसी ने पिछले 11 सालों में पहली बार अपने बेड़े का विस्तार करके मई में 150 नई इलेक्ट्रिक बसों को शामिल किया है. इसके साथ उसके पास अब कुल 3,910 बसें हो गई हैं.

नई बसों को छोड़कर बाकी 3,760 बसों में से 3,246 (यानी 83 प्रतिशत) सितंबर 2025 तक चरणबद्ध तरीके से हटा दी जाएगी. सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, इन आंकड़ों पर 6 जून को डीटीसी की पिछली बोर्ड बैठक में चर्चा की गई.

तो फिर सितंबर 2025 के बाद डीटीसी के बेड़े में क्या बचेगा? एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘लगभग 2,314 बसें या इसके आसपास.’

आंकड़ों के बारे में विस्तार से बताते हुए अधिकारी ने कहा, ‘मौजूदा अनुमानों के मुताबिक, 2025 के अंत तक 514 लो-फ्लोर बसें बची होंगी, हाल ही में बेड़े में शामिल 150 इलेक्ट्रिक बसें रहेंगी जो कुछ महीनों में चालू होने वाली हैं, और अन्य 1,500 इलेक्ट्रिक बसें जिनके लिए हाल ही में वर्क ऑर्डर जारी किया गया है.’

अधिकारी ने कहा, ‘डीटीसी को आने वाले समय में केंद्र सरकार की योजना के तहत करीब 1,500 और बसें मिलनी हैं, लेकिन ये बसें कब सड़कों पर उतरेंगी, इसकी समय सीमा अभी तय नहीं है.

450 से अधिक बस रूट के साथ कुल 6.41 लाख किलोमीटर की दूरी तय करते हुए डीटीसी बसें हर दिन औसतन लगभग 33 लाख यात्रियों को सेवाएं प्रदान करती हैं.

दिल्ली को कितनी बसों की जरूरत

दिल्ली हाई कोर्ट में आम आदमी पार्टी सरकार की तरफ से 2018 में दायर एक हलफनामे—जिसकी प्रति दिप्रिंट ने देखी है—के मुताबिक, दैनिक बस यात्रियों की मौजूदा संख्या को देखते हुए राजधानी को कम से कम 11,000 बसों की आवश्यकता है, जिनमें कम से कम 5,500 डीटीसी के स्वामित्व वाली होनी चाहिए.

दूसरे शब्दों में कहें तो सितंबर 2025 में मात्र 2,314 बसों के साथ डीटीसी के पास बसों का बेड़ा अपने अपेक्षित आकार का केवल 42 फीसदी ही होने की संभावना है.

अधिकारी ने कहा, ‘…पिछले अनुभव के आधार पर परिवहन निकाय के लिए बसों का बेड़ा बढ़ाना मुश्किल लगता है, जिसे अपने बेड़े में नई बसों को शामिल करने में 11 साल लग गए हैं.’

3,910 बसों के साथ, डीटीसी वर्तमान में अपने आदर्श बेड़े के 71 प्रतिशत आकार के साथ काम कर रहा है.

डीटीसी की स्थिति में सुधार उन कुछ क्षेत्रों में एक है जिसे लेकर 2015 में सत्ता में आने के बाद से आप सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

हालांकि, आप सरकार का कहना है कि डीटीसी को पुनर्जीवित करना उसकी प्राथमिकताओं में से एक है और अगले कुछ वर्षों में इसके बेड़े में और बसें शामिल की जाएंगी.

दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने दिप्रिंट को बताया, ‘2015 में सत्ता में आने के बाद से डीटीसी को पुनर्जीवित करना आप सरकार की प्राथमिकता रही है. डीटीसी को अब अपने बेड़े में 300 इलेक्ट्रिक बसें मिल रही हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा टाटा मोटर्स को 1,500 और इलेक्ट्रिक बसों के लिए वर्क ऑर्डर जारी किया गया है. उन बसों की डिलीवरी भी जनवरी 2023 तक शुरू हो जानी चाहिए. और आने वाले समय में सरकार कुछ और बसें खरीदने की योजना बना रही है.’

निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि लो-फ्लोर सीएनजी बसों की ऑपरेशनल लाइफ 12 वर्ष या 7,50,000 किलोमीटर, जो भी बाद में हो, होती थी. लेकिन सितंबर 2021 में, डीटीसी की अनिश्चित स्थिति को देखते हुए दिल्ली सरकार ने अवधि को बढ़ाकर 15 साल कर दिया.


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‘पुरानी बसें’, रखरखाव पर भारी-भरकम खर्च

बेड़े में कमी के साथ डीटीसी रूट की संख्या भी घट गई है. नतीजतन, दिल्ली का बड़ा हिस्सा, जो आकार और जनसंख्या दोनों में विस्तार कर रहा है, डीटीसी कवरेज से छूट रहा है.

सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, डीटीसी बस रूट 2010-11 में 556 थे जो 2018-19 में घटकर 450 हो गया है और इसमें लगातार गिरावट आती जा रही है.

नई 150 इलेक्ट्रिक बसों को छोड़ दें तो बाकी 3,760 बसों को आधिकारिक तौर पर 2021 में ‘ओवरएज’ घोषित किया जा चुका है, जिसमें 3,072 बसें 10-12 साल पुरानी और करीब 656 तो 12 साल से ज्यादा पुरानी पाई गई हैं.

नतीजा यह हुआ है कि रखरखाव की लागत 2010-11 में 412.33 करोड़ रुपये से 98 प्रतिशत से अधिक बढ़कर 2019-20 में 817.27 करोड़ हो गई है, जो डीटीसी के लिए साल-दर-साल नुकसान बढ़ाती जा रही है.

5 जुलाई को दिल्ली विधानसभा में पेश नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट में डीटीसी की कुल संपत्ति लाल रंग से अंकित की गई थी.

रिपोर्ट के मुताबिक, घाटे में चल रहे दिल्ली सरकार के सात स्टेट पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेज (एसपीएसई) को 2019-20 में 5,294.16 करोड़ रुपये का जो कुल नुकसान हुआ, उनमें से 99.7 प्रतिशत हिस्सा अकेले डीटीसी का था.

रिपोर्ट में बताया गया है, ‘31 मार्च 2020 तक, दिल्ली पावर कंपनी लिमिटेड और दिल्ली परिवहन निगम की कुल संपत्ति (-)37,124.89 करोड़ रुपये थी, जो इन एसपीएसई के संचित नुकसान से पूरी तरह से समाप्त हो गई थी.’

इस संदर्भ में, ध्यान देने वाली बात यह भी है कि नकदी की कमी झेल रहे डीटीसी के किराए को आखिरी बार 2009 में संशोधित किया गया था. अब चार साल से परिवहन मंत्री की अध्यक्षता में डीटीसी बोर्ड किराया संशोधन पर विचार कर रहा है, लेकिन अभी कोई निर्णय नहीं हो पाया है.

दिल्ली स्थित स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में परिवहन योजना विभाग के पूर्व प्रोफेसर पी.के. सरकार कहते हैं, ‘किराया राजस्व का मुख्य स्रोत है. इसलिए, (खुद) को पुनर्जीवित करने के लिए, डीटीसी को तमाम राजनीतिक निहितार्थ दरकिनार करते हुए किराया बढ़ाने पर विचार करना होगा, और अपने कुछ खर्चों में भी सुधार लाना होगा.’

उन्होंने कहा, ‘यद्यपि डीटीसी पर लगभग 50 रुपये प्रति किलोमीटर की लागत आती है, पिछले 12 वर्षों में इसका राजस्व 42 रुपये प्रति किमी से घटकर 12 रुपये प्रति किमी रह गया है. इसे वार्षिक रखरखाव अनुबंधों के साथ और अधिक लचीला होना चाहिए. इतने लंबे अंतराल तक बेड़े में कोई भी बस शामिल न करने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता. क्योंकि इसका मतलब है कि किसी बॉडी को मरने के लिए छोड़ दिया गया हो.’

डीटीसी बसों की संख्या में आ रही गिरावट

सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि 2010-11 में डीटीसी के बेड़े में 6,342 बसें शामिल थीं. 2021-22 में यह संख्या घटकर 3,760 रह गई. इस साल 150 इलेक्ट्रिक बसें शामिल होने के बाद ही बेड़े का आकार बढ़कर 3,910 हुआ है.

रिकॉर्ड के मुताबिक, नई बसों की पिछली खरीद 2008 में की गई थी. उस आदेश के तहत बस बेड़े का अंतिम हिस्सा 2011 में शामिल किया गया. 2011 और 2022 के बीच डीटीसी बेड़े में कोई बस नहीं आई.

ब्लूलाइन निजी बसों को 2010 में पूरी तरह से हटा दिया गया था. और नारंगी क्लस्टर बसें दिल्ली की सड़कों पर आ गईं जिन्हें सरकार निजी स्वामित्व वाली लेकिन सार्वजनिक-निजी-साझेदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत लाई थी.

तबसे, नई बसों को केवल निगम की ऑरेंज क्लस्टर सेवा में शामिल किया गया है, जिसमें अब लगभग 3,240 बसें हैं.

कुल मिलाकर, डीटीसी (3,910) और निजी क्लस्टर (3,240) दोनों को मिलाकर दिल्ली की सड़कों पर चल रही सार्वजनिक बसों की कुल संख्या 11,000 के अपेक्षित आंकड़े के मुकाबले मात्र 7,150 है.

जैसा कि ट्रेंड नजर आता है, डीटीसी बसों की संख्या शायद ही कोई नई बस शामिल होने के अभाव के साथ गिर रही है और हर साल पुरानी बसों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है. दूसरी ओर, क्लस्टर सेवा बेड़े के आकार में हर साल वृद्धि देखी जा रही है.

सरकारी अनुमानों के मुताबिक, क्लस्टर बसें, जो डीटीसी की तुलना में आकार में छोटी हैं, प्रतिदिन लगभग 18 लाख यात्रियों को आवागमन की सुविधा प्रदान करती हैं.

दिल्ली सरकार के लिए डीटीसी एक चुनौती क्यों है?

दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसा नहीं है कि सरकार ने निविदाएं जारी नहीं की हैं. लेकिन उनमें से अधिकांश का कोई नतीजा नहीं निकल पाया.’

सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, 2013 और 2019 के बीच, दिल्ली सरकार ने बसों की थोक खरीद के लिए छह विशिष्ट निविदाएं जारी कीं, लेकिन कोई भी अमल में नहीं आ पाई.

वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक, दिल्ली सरकार केवल सीएनजी चालित लो-फ्लोर बसों की खरीद कर सकती है, जिसमें दिव्यांग लोगों की सुविधा के लिए रैंप जैसी सुविधाएं हों.

अधिकारी ने कहा, ‘इसलिए, ऐसी बसों को अक्सर विशिष्ट निर्देशों के साथ निर्मित कराना पड़ता है. वही मॉडल अन्य राज्यों में नहीं खरीदे जाते. इसलिए, ऐसी बसें उपलब्ध कराने के लिए हमेशा 2-3 से अधिक निर्माता उपलब्ध नहीं होते हैं.’

हालांकि, एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि डीटीसी के बेड़े में गिरावट का सिर्फ यही कारण नहीं है. उन्होंने कहा, ‘कई निविदाएं बोलीदाताओं को खोजने में विफल रहीं क्योंकि निर्माताओं की नजर में वार्षिक रखरखाव अनुबंध की शर्तें अनुचित मानी गईं.’

वो तो 2020 में जाकर 1,000 वातानुकूलित लो-फ्लोर सीएनजी बसों के लिए एक निविदा को अंतिम रूप दिया गया, जिसमें दो बोलीदाताओं को 70:30 के अनुपात में अनुबंध मिला.

लेकिन प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाने वाले भाजपा विधायक की शिकायत पर तत्कालीन उपराज्यपाल अनिल बैजल की तरफ से सौदे की जांच कराने के बाद अंतत: प्रक्रिया को रोक दिया.

2020 में दिल्ली सरकार ने 300 इलेक्ट्रिक बसों के लिए एक और टेंडर भी जारी किया, जिनमें 150 पहले से ही ऑपरेशनल हैं.

गहलोत ने कहा, ‘कई वर्षों तक तकनीकी कारणों से नई बसें शामिल नहीं हो सकीं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर भाजपा ने निराधार आरोप नहीं लगाए होते तो डीटीसी के लिए 1,000 और बसें खरीदने की सरकार की योजना के अनुकूल परिणाम नजर आते और बसें अब तक आ चुकी होतीं. हालांकि, एक सरकार के रूप में, हम अभी भी डीटीसी को पुनर्जीवित करने को लेकर आशावान हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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