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Monday, 23 December, 2024
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चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध कर सकता है

सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार द्वारा लाई गई बेनामी राजनीतिक चंदे वाली इलेक्ट्रोरल बांड योजना की वैधता को लेकर दायर याचिका पर कर रहा है सुनवाई.

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नई दिल्ली: चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के विवादित इलेक्ट्रोरल बांड्स पर अपने विरोध को फिर से दोहरा सकता है. दिप्रिंट को जानकारी मिली है.

इलोक्टरल बांड की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, जो कि राजनीतिक फंडिंग जरिया हैं पर सुप्रीम कोर्ट पिछले हफ्ते चुनाव आयोग से जवाब दाखिल करने को कहा था, जैसा कि इस योजना पर उसने अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था.


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अदालत ने शुरू में आयोग को जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है, एक पखवाड़े की समयसीमा में तब बदलाव कर दिया गया था जब एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के याचिकाकर्ता की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि चूंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव 8 फरवरी को होना है एक महीने का समय काफी ज्यादा होगा.

दिप्रिंट से बात करते हुए, चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पोल वॉचडॉग के अनुसार ‘जहां तक ​​इलेक्टोरल बांड की बात है तो एक सुसंगत रुख बना हुआ है.’

अधिकारी ने आगे कहा, ‘हमने 2017 से इस योजना का विरोध किया है. हमारे पास उस रुख को बदलने का कोई कारण नहीं है.’

चुनावी बांड मोदी सरकार द्वारा लाए गए वित्तीय स्रोत हैं, जिनसे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने में मदद का दावा हैं. संभावित दाता बांडों को 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये एसबीआई की शाखाओं से 1 करोड़ रुपये में खरीद सकते हैं और अपनी पसंद की पार्टी को दे सकते हैं. बांड में न तो दाता के नाम का जिक्र होता है और न ही पाने वाले का.

2017 में, जब इस योजना को पहली बार अधिसूचित किया गया था तब चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय से लंबी बातचीत में चुनावी बांड पेश करने को एक ‘प्रतिगामी कदम’ बताया था.

चुनाव आयोग जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 का हवाला दे रहा था, जो भारत में चुनावों के लिए मार्गदर्शन का काम करता है. यह धारा पार्टियों को 20,000 रुपये से अधिक की राशि देने वाले दानकर्ताओं के नामों की घोषणा करने को कहती है.


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लेकिन चुनावी बांड – जो कि जनप्रतिनिधित्व कानून और उसमें अन्य संशोधन के माध्यम से सामने आया है- इस नियम से छूट दी गई है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में जब इस योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया मांगी, तो पोल पैनल ने अपना रुख दोहराया.

बाद में उसी वर्ष, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के खुलासे के बाद चुनावी बॉन्ड योजना खबरों में लौट आई थी जिसमें बताया गया था कि चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय पर इस योजना को शुरू करने का सरकार की तरफ से भारी दबाव था.

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