(मानिक गुप्ता)
(फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, 23 अक्टूबर (भाषा) दशहरा पर्व के लिए पश्चिमी दिल्ली के तितारपुर में पुतले बनाने वालों को इस बार बेहतर कमाई होने की उम्मीद है। इलाके में फुटपाथ पर हर रंग के और दूर से ही चमक रहे रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतलों के सिर और धड़ रखे हुए दिखाई दे रहे हैं।
इनमें से कुछ पुतलों के ऑर्डर पहले से ही दिए जा चुके हैं जबकि कुछ आखिरी मिनट में आने वाले खरीददारों का इंतजार कर रहे हैं।
कोविड-19 महामारी के बाद यह पहली बार है जब पुतलों की मांग इतनी अधिक है, और इस कारण इन पुतलों को बनाने वाले कलाकार बेहद खुश हैं।
तितारपुर में करीब दो किलोमीटर का फुटपाथ का इलाका पुतलों से अटा हुआ है। दक्षिण एशिया में पुतलों के सबसे बड़े बाजारों में से एक माने जाने वाले तितारपुर में रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ की बांस की प्रतिकृतियां बनाने के लिए देश के सभी हिस्सों से कारीगर यहां प्रत्येक वर्ष इकट्ठा होते हैं। इन कलाकारों द्वारा बनाए जाने वाले पुतलों की मांग देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा विदेशों में भी है।
दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और राजस्थान सहित देश के विभिन्न राज्यों से इन पुतलों की मांग आई है। इसके अलावा, इस सीजन में बाजार में विदेशों से भी आने वाले ऑर्डर में उल्लेखनीय उछाल देखा गया है।
पुतले बनाने वाले जॉनी ने कहा, ‘‘ हमने कुछ पुतले ऑस्ट्रेलिया में भी निर्यात किए हैं। इस ऑर्डर की बुकिंग दो महीने पहले की गई थी। ’’
जॉनी, दिल्ली में एक पूर्णकालिक फूल विक्रेता के रूप में काम करते हैं और त्योहारी सीजन के दौरान पुतले बनाने का काम भी करते हैं। इस काम को करने वाले जॉनी अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं।
जॉनी(40) को उम्मीद है कि वह इस सीजन में डेढ़ से दो लाख रुपये तक कमा लेंगे।
तितारपुर सोमवार को यकीनन दिल्ली की सबसे व्यस्त इलाकों में से एक था, जहां रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ के दो फुट से लेकर 50 फुट तक ऊंचे पुतले बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। कई पुतले बिक चुके हैं जबकि कुछ पुतले अपने बिकने का इंतजार कर रहे हैं। एक पुतले की औसत लागत लगभग 400 रुपये प्रति फुट है।
पिछले दो-तीन महीनों से तितारपुर को अपना घर बनाने वाले दर्जनों कारीगरों का कहना है कि पुतलों के लिए बड़े पैमाने पर बुकिंग के साथ कारोबार पहले से काफी बेहतर हुआ है।
पुतला बनाने की श्रमसाध्य प्रक्रिया एक बांस के ढांचे को खड़ा करने से शुरू होती है, जिसे फिर कागज और कपड़े की परतों में लपेटकर एक साथ चिपका दिया जाता है। इसके बाद इसे सूखने के लिए धूप में छोड़ दिया जाता है और फिर अलग-अलग रंगों और चीजों से सजाया जाता है।
एक पुतले को अंतिम रूप दे रहे ‘रावणवाला रवि’ के नाम से मशहूर एक कारीगर ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘मांग अच्छी है। इस बार बाजार अच्छा है।’’
रवि पिछले तीन दशकों से अतिरिक्त पैसे के लिए पुतला कलाकार के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने इस वर्ष 60 से अधिक पुतलों को चित्रित किया है – पिछले वर्ष की तुलना में 20 अधिक।
कई कारीगर राजस्थान, हरियाणा और बिहार के दिहाड़ी मजदूर हैं जबकि कुछ पास में ही किराये के घरों में रहते हैं, अन्य सड़क के पीछे बने तंबू में रहते हैं।
भाषा रवि कांत नरेश
नरेश
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