नई दिल्ली: स्वदेशी जागरण मंच (SJM) ने हायर एजुकेशन के लिए विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या पर चिंता जताई है. SJM के सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा कि पिछले 30 सालों में यह संख्या दस गुना बढ़ गई है.
महाजन ने लिखा, “केंद्र सरकार के मुताबिक, 2016 से 2021 के बीच 26.44 लाख भारतीय छात्र विदेश पढ़ने गए. एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM) का अनुमान है कि साल 2020 में 4.5 लाख भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए और उन्होंने 13.5 अरब डॉलर खर्च किए. साल 2022 में ये खर्च 24 अरब डॉलर यानी; लगभग 2 लाख करोड़ रुपये था. रेडसीर स्ट्रैटेजी कंसल्टेंट्स की एक रिपोर्ट के अनुसार यह खर्च 2024 तक 80 अरब डॉलर या 7 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. जब अनुमानित 20 लाख भारतीय छात्र विदेश में पढ़ाई करेंगे.”
उन्होंने आगे लिखा, “युवा छात्र नौकरी पाने की उम्मीद में विदेशों में जाते हैं. लेकिन वे यह नहीं समझते हैं कि आज, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों के शैक्षणिक संस्थान उन्हें अपने अस्तित्व के लिए आसानी से प्रवेश दे रहे हैं. इतना ही नहीं, भारत और अन्य देशों के इच्छुक छात्रों से भारी फीस वसूलने के लिए कई शिक्षा ‘दुकानें’ खोली जा रही हैं, जिनका वास्तविक शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है.”
महाजन ने कहा कि यह देश के लिए खतरनाक स्थिति होगी जब 2024 तक विदेश पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या 20 लाख तक पहुंच जाएगी और उनके द्वारा खर्च की जाने वाली राशि 80 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगी.
उन्होंने कहा, “ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को युवाओं को वास्तविकता से अवगत कराने के लिए विशेष प्रयास करने की जरूरत है ताकि वे विदेश जाकर अपने माता-पिता की मेहनत की कमाई को बर्बाद न करें.”
छात्रों की बात करें तो यहां भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की छात्र शाखा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने कहा कि शैक्षिक परिसरों में फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास के प्रति सहानुभूति रखने वाले को स्वीकार नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा इस तरह की किसी भी प्रकार की गतिविधियां स्वीकार्य नहीं हैं.
एक प्रेस नोट में ABVP ने कहा कि पिछले हफ्ते इज़रायल पर हुए हमले पर कुछ राजनीतिक दलों और समूहों की चुप्पी “बौद्धिक दिवालियापन” का संकेत है.
ABVP के प्रेस नोट में कहा गया, “देश के विभिन्न संगठनों को भारत सरकार की वर्तमान विदेश नीति के अनुरूप अपना विचार व्यक्त करना चाहिए. धार्मिक कट्टरता और पूर्वाग्रहों के चलते हिंसा की इस चरम स्थिति पर आंख मूंदकर अपना ही राग अलापने वाले संगठनों से सतर्क रहने की जरूरत है. भारत के कुछ शैक्षणिक संस्थानों में हमास द्वारा इज़रायल पर किए गए आतंकवादी हमले पर एक अलग टिप्पणी करने का प्रयास किया जा रहा है और यह हमास की आतंकी विचारधारा का समर्थन करने जैसा है.”
डिजिटल मीडिया हाउस न्यूज़क्लिक पर दिल्ली पुलिस की छापेमारी और इसके संस्थापक और HR प्रमुख की गिरफ़्तारी और भारत और कनाडा के बीच राजनयिक विवाद भी उन मुद्दों में से थे जिन्हें हिंदू राइट प्रेस ने पिछले सप्ताह कवर किया और उसपर टिप्पणी की.
अभिव्यक्ति की आज़ादी के रूप में देशद्रोह?
न्यूज़क्लिक विवाद पर टिप्पणी करते हुए, RSS के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र ने कहा कि स्व-प्रमाणित मीडिया उदारवादियों को स्वतंत्र भाषण के नाम पर देशद्रोह का बचाव नहीं करना चाहिए क्योंकि “साम्यवाद और स्वतंत्र लोकतंत्र एक साथ काम नहीं कर सकते हैं.”
इसमें कहा गया, “खुद को एक ‘स्वतंत्र’ मीडिया संगठन घोषित करना एक फैशन बन गया है, भले ही कम्युनिस्ट-झुकाव वाले प्रकाशन और पत्रकार इसे चलाते हों. किसी को स्वतंत्र, प्रतिष्ठित या विशेषज्ञ के रूप में प्रमाणित करने का विशेषाधिकार भी उसी समूह में निहित है. वे अपनी कहानियों के अनुरूप न चलने वाली आवाजों को मुखपत्र या वैचारिक रूप से पक्षपाती या ‘गोदी’ मीडिया के रूप में ब्रांड करते हैं, इसलिए उनका बहिष्कार या उपेक्षा होना तय है.”
इसमें पिछले कुछ सालों में न्यूज़क्लिक की भारी सफलता पर भी सवाल उठाया गया. संपादकीय में पूछा गया, “अगर न्यूज़क्लिक का आईडिया, जिसे पुरकायस्थ ने 2009 में स्थापित किया था, इतना बढ़िया था तो लोगों ने पहले ही इसे नोटिस क्यों नहीं किया. 2018 के बाद से अचानक क्या बदल गया. यह जांच का विषय है. पीपीके न्यूज़क्लिक स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी के एक नए अवतार के साथ ही कंपनी का भाग्य अचानक कैसे बदल गया.”
एक अन्य लेख में, RSS के हिंदी मुखपत्र पांचजन्य ने न्यूज़क्लिक की रिपोर्टिंग के इरादों पर सवाल उठाते हुए कहा कि “वेबसाइट ने मेक इन इंडिया पहल का मज़ाक उड़ाया और भारतीय कोविड टीकों, पीएम केयर्स फंड, राफेल लड़ाकू विमान और भारतीय सशस्त्र बलों के के बारे में गलत “प्रचार” किया. साथ ही उसने अभद्रता की हदें पार करते हुए राम मंदिर के बारे में गलत प्रचार किया. इसने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के बारे में गलत प्रचार किया. इसने सेंट्रल विस्टा पर दुष्प्रचार फैलाया.”
इसमें आगे कहा गया, “भारत के कुछ अंग्रेजी अखबारों की तरह, द वाशिंगटन पोस्ट जैसे दर्जनों प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन चीनी प्रचार को खूब प्रकाशित करते हैं जिसके लिए उन्हें अच्छा भुगतान किया जाता है. सबसे खतरनाक बात यह है कि चीनी राज्य रेडियो स्टेशन, चाइना रेडियो इंटरनेशनल (CRI), ऑस्ट्रेलिया से तुर्की तक दुनिया भर के स्वतंत्र प्रसारकों के एयरवेव्स पर भुगतान की गई सामग्री प्रसारित करता है.”
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कनाडा अब ‘आतंकवाद का एक केंद्र’
विश्व हिंदू परिषद ने अपनी पत्रिका हिंदू विश्व के एक संपादकीय में लिखा है कि सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की मौत पर भारत और कनाडा के बीच राजनयिक विवाद के आलोक में, पाकिस्तान के बाद कनाडा “आतंकवाद के नए केंद्र” के रूप में उभरा है.
संपादकीय में लिखा गया, “कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इन सिखों की खालिस्तानी आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करते हैं. निज्जर को भारत में भगोड़ा और आतंकवादी घोषित किया गया था और उसके सिर पर 10 लाख रुपये का इनाम था. उनकी हत्या के तीन महीने बाद भी कनाडाई सरकार एक भी गिरफ्तारी नहीं कर पाई है, लेकिन वह हत्या के लिए भारत को दोषी ठहरा रही है.”
इसमें कहा गया है कि अलगाववादी समूह सिख फॉर जस्टिस के संस्थापक गुरपतवंत सिंह पन्नून ने एक वीडियो जारी कर कनाडा में हिंदुओं से देश छोड़ने के लिए कहा था.
इसमें आरोप लगाया गया कि कनाडा में रहने वाले इन्हीं आतंकवादियों ने कट्टरपंथी उपदेशक अमृतपाल सिंह को भी पैसे से मदद की, उसे प्रशिक्षित किया, उसे उकसाया और भारत में तबाही मचाने में मदद की.
संपादकीय में आरोप लगाया गया, “जब असम सरकार ने अमृतपाल को गिरफ्तार किया और जेल में डाल दिया, तो पन्नून ने असम के मुख्यमंत्री को धमकी दी. आज कनाडा खालिस्तानियों के लिए सुरक्षित जगह बन गया है. जब पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह ने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की तो वे सभी कनाडा भाग गए और अरब देशों के पैसे पर वहां रहने लगे. अब उनकी आतंकी गतिविधियों को कनाडा का संरक्षण मिल गया है. यह भारत के लिए बहुत खतरनाक है.”
‘हमास का हमला 26/11 जैसा’
पूर्व बीजेपी नेता बलबीर पुंज ने इजरायल पर हमास के हमले की तुलना मुंबई में हुए 26/11 आतंकी हमले से की.
पुंज ने पंजाब केसरी में लिखे एक लेख में कहा, “यह एक तरह का राक्षसी कार्य है जो हमास के जिहादियों ने इज़रायल में किया है. उन्होंने काफ़र अजा नामक इज़रायली गांव में दो से चार साल की उम्र के 40 मासूम बच्चों की गला काटकर हत्या कर दी. इसके समर्थन में, भारत में वामपंथी-जिहादी कबीले द्वारा एक कहानी बनाई जा रही है कि हमास का हमला ‘फिलिस्तीन पर इज़रायल के जबरन कब्जे और उत्पीड़न’ का जवाब है.”
उन्होंने कहा, “ये वही लोग हैं जो जिहाद और लव जिहाद के दुष्प्रचार के शिकार कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा को तो कहते हैं, लेकिन 27 फरवरी 2002 को जिहादियों द्वारा ट्रेन की बोगी में 59 कारसेवकों को जिंदा जला देने की घटना को दुर्घटना बताते हैं. दरअसल, यह देश में धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकार की आड़ में इस्लामिक कट्टरवाद को बढ़ावा देने की सोच से पैदा हुआ आत्मघाती विमर्श है.”
पुंज ने चेतावनी दी कि इजराइल और हमास के बीच चल रहा युद्ध भारत के लिए एक बड़ा संकेत है.
उन्होंने कहा, “हमास ने जिस तरह का भयावह आतंकी हमला इज़राल पर किया है, उसी तरह की आशंका भारत में भी प्रबल है. पिछले सालों में भारत को ऐसे कई हमलों का सामना करना पड़ा है. 1947 में कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण, 2001 में भारतीय संसद पर आतंकवादी हमला, 2008 में 26/11 के रूप में मुंबई में जिहादी कहर जैसे आतंकवादी हमले का सामना पहले ही करना पड़ा है.”
(संपादनः ऋषभ राज)
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