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Saturday, 21 December, 2024
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‘कन्याओं द्वारा, कन्याओं के लिए शिक्षा’- अयोध्या का ग्रुप स्कूल, कॉलेजों में बने रहने में कैसे कर रहा लड़कियों की मदद

‘अपना तालीम घर’ नाम से ये शिक्षा केंद्र अवध पीपुल्स फोरम ने स्थापित किए हैं, जो बालिकाओं की शिक्षा के लिए काम कर रहे युवकों का एक समूह है.

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अयोध्या: पिछले साल जब पहली बार कोविड लॉकडाउन हुआ और कक्षाओं के ऑनलाइन होने की बात शुरू हुई तो अयोध्या की 17 वर्षीय छात्रा रानी सोनकर जिसने उसी समय एक कॉलेज में दाखिला लिया था बहुत खुश हुई थी. डिजिटल रूप में कॉलेज के फिर से खुलने पर क्लासेज़ छूट न जाएं इस बेचैनी में उसने किसी घर में पार्ट टाइम काम ले लिया और अपने लिए 6,000 रुपए का एक एंड्रॉयड फोन खरीद लिया.

फिर वो इंतज़ार करने लगी, इंतज़ार और बस इंतज़ार. डेढ़ साल हो गया और रानी आज भी इंतज़ार कर रही है जिसे आदर्श रूप से इस सेशन में अपने बीए कोर्स का दूसरा साल शुरू कर देना चाहिए था.

उसके कॉलेज- कांता प्रसाद सुंदर लाल साकेत महाविद्यालय, जो एक सरकारी संस्थान है- में कभी ऑनलाइन क्लासेज़ हुई ही नहीं. और इस बीच अयोध्या के दिलकुशा मोहल्ले में 200 वर्ग फीट के एक कमरे में अपनी मां और बड़ी बहन के साथ रहने वाली रानी के जीवन ने एक ऐसा मोड़ ले लिया जो उसकी उम्मीदों से बिल्कुल अलग था.

उसने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं सुबह 7 बजे उठने लगी. मैं खाना बनाती बरतन धोती कपड़े धोती और फिर अपनी मां के साथ काम पर जाती थी. मैं देखती थी कि आलीशान घरों में कैसे मांएं किस तरह ऑनलाइन क्लासेज़ में अपने बच्चों की मदद करती थीं. मैं खुद को पीछे छूटा हुआ और कमज़ोर महसूस करने लगी. मुझे डर था कि जब तक कॉलेज फिर से खुलेगा मैं सीखने की अपनी सारी क्षमता भूल जाउंगी’.

लेकिन एक महीना पहले कुछ हुआ जिसने रानी की शंकाओं को कुछ हद तक शांत कर दिया. रानी को उसी कॉलेज में एमए के दूसरे वर्ष में पढ़ रही एक छात्रा जागृति का फोन आया जिसने उसे एक स्थानीय शिक्षा केंद्र में शामिल होने को कहा जिसे शुरू करने में वो सहायता कर रही थी.

‘अपना तालीम घर’ कहा जाने वाला ये स्टडी सेंटर उन तीन केंद्रों में से एक है जिन्हें अयोध्या के तीन अलग अलग इलाकों में अवध पीपुल्स फोरम ने स्थापित किया है, जो ऐसी बालिकाओं की शिक्षा के लिए काम कर रहे युवाओं का समूह है, जो अन्यथा नियमित क्लासेज़ या डिजिटल पहुंच के अभाव में शिक्षा प्रणाली से बाहर हो रहीं थीं.

ये काफी हद तक एक अनौपचारिक सेट अप है जहां एनजीओ से जुड़े वॉलंटियर्स –जो उन्हीं इलाकों से लिए जाते हैं जहां के छात्र होते हैं- कन्याओं के पाठ्यक्रम में उनकी सहायता करते हैं. ये केंद्र छात्राओं को वैकल्पिक साहित्य भी उपलब्ध कराते हैं- आंबेडकर के बारे में किताबें, क्लासिक साहित्य, मासिक धर्म स्वच्छता और सामाजिक मुद्दों के बारे में लेख- जो एपीएफ को दान किया गया है.

विचार ये है कि उन्हें शिक्षा के लूप में बनाए रखा जा सके. परिवारों को अपनी बेटियों को केंद्रों में भेजने को राज़ी करने के लिए, प्रोत्साहन के तौर पर यहां सिलाई का प्रशिक्षण भी दिया जाता है.

ये एक ऐसी पहल है जिसके लिए केंद्र की लड़कियां बहुत आभार प्रकट करती हैं.

मुरावन टोला के केंद्र में पढ़ने वाली 19 वर्षीय खुशबू निषाद ने कहा, ‘मोबाइल्स या तो पिता के पास होते हैं या भाईयों के. इसलिए अगर हमारे सरकारी स्कूलों की ऑनलाइन क्लासेज़ शुरू हो गई होतीं, तो भी हम उनमें शरीक न हो पाते क्योंकि मोबाइल फोन्स पुरुषों के पास होते हैं’.


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खुशबू ने पिछले साल अपनी 12वीं कक्षा पास कर ली थी, लेकिन अभी तक कॉलेज में दाखिला नहीं ले पाई है.

उसने दिप्रिंट से कहा, ‘ये सेंटर हमें एकजुट करता है. हम यहां कम से कम किताबों की बात कर सकते हैं. महामारी ने हम जैसी लड़कियों की तकदीर ही बदल दी है. मेरी पांच सहेलियों की शादी हो गई. बहुत सी लड़कियां रोजी-रोटी कमाने में अपने परिवारों की सहायता कर रही हैं’.

छत पर पढ़ाई

दिलकुशा में जहां रानी रहती है, अधिकतर सब्ज़ी विक्रेता, घरेलू नौकर, ई-रिक्शा चालक और कचरा उठाने वाले लोग रहते हैं.

रानी की मां 42 वर्षीय रीता देवी ने कहा, ‘हम दिहाड़ी मज़दूर हैं. जब सरकार ने लॉकडाउन का ऐलान किया तो हमें लगा कि हम भूखों मर जाएंगे. वीकएंड लॉकडाउन की वजह से रोजगार अभी भी नियमित नहीं है. कभी हमारी थाली में भोजन होता है तो किसी किसी दिन हमें जूझना पड़ता है’.

रीता देवी ने कहा कि उन्हें रानी के दूसरे साल की 6,000 रुपए दाखिला फीस भरनी है. उन्होंने आगे कहा, ‘ये तो तब है जब इस साल कोई क्लासेज़ नहीं हुई हैं’.

मोहल्ले में खोला गया स्टडी सेंटर रानी के अलावा 14 अन्य लड़कियों की ज़रूरतें पूरी कर रहा है.

अयोध्या में ‘अपना तालीम घर’ केंद्र में पढ़ती छात्राएं | ज्योति यादव/ दिप्रिंट

ये संख्या मुरावन टोला में अधिक है जो सैकड़ों आधे बने घरों और भीड़भाड़ वाली गलियों की एक दलित बस्ती है, और दिलकुशा से 6 किलोमीटर दूर है. चूंकि यहां कोई घर इतना बड़ा नहीं समझा गया जहां केंद्र चलाया जा सकता, जिसमें दर्जनों की संख्या में कन्याएं आकर पढ़ सकतीं, इसलिए स्थानीय निवासी 21 वर्षीय अंजलि निषाद ने अपने घर की छत इस काम के लिए पेश कर दी.

24 जुलाई को जब दिप्रिंट की टीम उस जगह पहुंची, तो लगभग 20 लड़कियां उस काम चलाऊ केंद्र पर खुले आसमान के नीचे पढ़ाई करने के लिए आई हुईं थीं. उनकी आयु 12 से 22 वर्ष के बीच थी.

फिलहाल, तीन केंद्र- जिनमें तीसरा बचनीगंज में है जो मुख्य रूप से दहाड़ी मज़दूरों की कॉलोनी है- जिन्हें अवध पीपुल्स फोरम द्वारा चलाया जाता है, क़रीब 100 लड़कियों की ज़रूरतें पूरी कर रहे हैं.

बालिकाओं के लिए

इस पहल की शुरूआत की बात करते हुए सोशल ग्रुप के एक सदस्य आफाक़ ने कहा कि वो सुनिश्चित करना चाहते थे कि छात्राएं शिक्षा प्रणाली में टिकी रहें.

उन्होंने कहा, ‘हम पिछले चार सालों से बालिकाओं की शिक्षा के लिए काम कर रहे थे, और हमने बहुजन बस्तियों में स्कूल स्थापित किए थे. देश के महामारी की चपेट में आने के साथ ही स्कूल बंद कर दिए गए. चूंकि लड़कियों का ताल्लुक़ दिहाड़ी मज़दूरों के परिवारों से था, जिन्होंने कोविड की दूसरी लहर में अपने रोज़गार खो दिए थे, इसलिए काफी संभावना थी कि उन्हें स्कूल से निकालकर उनकी शादी कर दी जाती’.

उन्होंने कहा, ‘यही वो समय था जब हमने अपना तालीम घर शुरू किया, जो कन्याओं के लिए था और कन्याओं द्वारा था. हमने कुछ टीम लीडर्स का चयन किया जिन्होंने फिर ऐसी असुरक्षित लड़कियों को सूचीबद्ध किया और उन्हें कम्यूनिटी क्लास में आने के लिए राज़ी किया’.

ग्रुप के एक अन्य सदस्य आशीष कुमार ने कहा, कि जब अवध पीपुल्स फोरम ने स्टडी सेंटर्स शुरू किए तो सबसे बड़ी चुनौती परिवारों को इसके लिए राज़ी करने की थी. ‘परिवारों को राज़ी करने के लिए हमने एक सिलाई कोर्स पेश किया ताकि लड़कियां केंद्रों तक आ सकें. इसलिए, हमारे यहां एक घंटा पढ़ाई के लिए होता है, और एक घंटा सिलाई सीखने के लिए’.

इस पहल के साथ जुड़ी एक टीम लीडर जागृति ने कहा कि ऐसे प्रोत्साहन की ज़रूरत इसलिए है क्योंकि उनके परिवार ‘उतने पढ़े लिखे नहीं हैं’.

केंद्रों पर छात्रों को भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए सिलाई प्रशिक्षण भी दिया जाता है | ज्योति यादव/दिप्रिंट

जागृति ने आगे कहा, ‘हमारे पास प्रेरित होने के लिए कोई आदर्श नहीं है. किसी लड़की ने कुछ हासिल नहीं किया है. इसलिए शिक्षा पहली प्राथमिकता नहीं है. मैंने ऐसी 32 लड़कियों की सूची बनाई थी जो या तो पढ़ाई छोड़ने वाली थीं, या फिर उनके पास मोबाइल्स की सुविधा उपलब्ध नहीं थी. लेकिन अभी तक केवल 15 लड़कियां ही यहां आ पाई हैं’.

हालांकि स्टडी सेंटर्स पढ़ाई करने में लड़कियों की सहायता कर रहे हैं, लेकिन ये वास्तविकता कि बहुत सी छात्राएं कई महीनों तक अपने स्कूल-कॉलेजों में ऑनलाइन क्लासेज़ में शामिल नहीं हो पाई हैं, शिक्षा के लक्ष्यों की एक गंभीर तस्वीर पेश करती है.

इसके संभावित परिणामों के बारे में टिप्पणी के लिए संपर्क करने पर, ज़िला बेसिक शिक्षा अधिकारी संतोष पाण्डेय ने कहा कि प्रशासन इन चिंताओं को दूर करने के लिए काम कर रहा है.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम ज़िले में प्रेरण साथी नियुक्त कर रहे हैं, जहां पढ़े-लिखे युवक इन छात्रों से संपर्क करेंगे. आने वाले महीने में हर एक छात्र को ऑनलाइन क्लासेज़ से जोड़ दिया जाएगा. हमने अध्यापकों से ऐसे वंचित छात्रों की शिनाख़्त करने को कहा है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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