नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मंगलवार को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तथा बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित उनके परिवार के सदस्यों से जुड़े ज़मीन के बदले नौकरी घोटाले के मामले में अपना अंतिम आरोप-पत्र दाखिल किया.
नई दिल्ली के राउज़ एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने के समक्ष दाखिल आरोप-पत्र में संघीय जांच एजेंसी ने यादवों के अलावा आठ और आरोपियों को सूचीबद्ध किया है.
अगली सुनवाई 13 अगस्त को तय की गई है, जब पूरक आरोप-पत्रों पर विचार करने के लिए बहस होने की संभावना है.
धन-शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत ईडी की जांच मई 2022 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दर्ज की गई एक एफआईआर से उपजी है. इसमें आरोप लगाया गया है कि 2004 से 2009 के बीच जब लालू प्रसाद केंद्रीय रेल मंत्री थे, तब भारतीय रेलवे के 11 क्षेत्रों में ग्रुप डी की नौकरियों, मुख्य रूप से रख-रखाव और सहायक कर्तव्यों में कई व्यक्तियों को स्थानापन्न के रूप में नियुक्त किया गया था और लालू के परिवार को ज़मीन के टुकड़े हस्तांतरित करने के बाद उनकी नौकरी पक्की कर दी गई थी. इसमें लालू, उनकी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, उनकी बेटियों मीसा भारती और हेमा यादव और 12 अन्य को आरोपी बनाया गया है.
न्यायाधीश गोगने ने 7 जुलाई को पिछली सुनवाई में ईडी को अदालत के समक्ष एजेंसी द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर “अंतिम आरोपपत्र” दाखिल करने का निर्देश दिया था.
जून में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने भी ज़मीन के बदले नौकरी मामले में धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज़ का उपयोग), भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 109 (अपराध के लिए उकसाना) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत 78 लोगों के खिलाफ अपना अंतिम आरोप पत्र दायर किया, जिसमें लालू, राबड़ी देवी, हेमा यादव, तेजस्वी यादव, पूर्व केंद्रीय मंत्री भोला यादव के करीबी सहयोगी, भारतीय रेलवे के 29 लोक सेवक और 37 उम्मीदवार शामिल थे.
सीबीआई के एक प्रवक्ता ने आरोपपत्र में कहा, “जांच के दौरान खुलासा हुआ कि तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री ने आपराधिक साजिश को आगे बढ़ाते हुए रेलवे के अधिकारियों, उनके परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों के साथ मिलकर भारतीय रेलवे के 11 जोनों में ग्रुप डी के स्थानापन्न के रूप में उम्मीदवारों की नियुक्ति की, जो कि मौजूदा दिशानिर्देशों का पूरी तरह उल्लंघन है. उम्मीदवार द्वारा स्वयं/परिवार के सदस्यों द्वारा भूमि हस्तांतरण के बदले और/या फर्जी शैक्षिक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके.”
प्रवक्ता ने आगे कहा, “विभिन्न रेलवे जोनों में स्थानापन्न के रूप में नियुक्त किए गए उम्मीदवार मुख्य रूप से उन जिलों से थे जो तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री और उनके परिवार के सदस्यों के निर्वाचन क्षेत्र थे.”
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‘अपराध की आय 600 करोड़ रुपये है’
अपनी मनी लॉन्ड्रिंग जांच के हिस्से के रूप में ईडी ने पिछले साल मार्च में यादव परिवार से जुड़े 24 स्थानों पर तलाशी ली थी और दावा किया था कि उन्हें अपराध की आय 600 करोड़ रुपये होने की पुष्टि करने वाले आपत्तिजनक दस्तावेज़ मिले हैं.
एजेंसी ने आरोप लगाया कि इस राशि में से 350 करोड़ रुपये अचल संपत्तियों के रूप में थे, जबकि 250 करोड़ रुपये का लेन-देन विभिन्न “बेनामीदारों” के माध्यम से किया गया था.
ईडी ने आगे दावा किया कि परिवार ने जो ज़मीन खरीदी थी, वह पटना में प्रमुख स्थानों पर थी, जिसका वर्तमान बाज़ार मूल्य 200 करोड़ रुपये से अधिक होगा.
एजेंसी ने यह भी आरोप लगाया कि दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी में 150 करोड़ रुपये की संपत्ति महज़ 4 लाख रुपये में खरीदी गई थी. ईडी ने दावा किया, कागज़ों पर, यह ए बी एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड और एके इंफोसिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड जैसी फर्मों के लिए पंजीकृत पता था, लेकिन वास्तव में, तेजस्वी द्वारा इसका उपयोग “विशेष रूप से” आवासीय संपत्ति के रूप में किया जा रहा था.
जांच एजेंसी ने पहले ही इन दोनों फर्मों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया है कि वो यादव परिवार और ए के इंफोसिस्टम्स के प्रमोटर अमित कत्याल को अपराध की आय हस्तांतरित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली शैल एंटेटी थीं.
ऐसे ही एक मामले को उजागर करते हुए, जनवरी में एजेंसी ने आरोप लगाया कि राबड़ी देवी की गौशाला में एक कर्मचारी, हृदयानंद चौधरी ने नौकरी के बदले में एक उम्मीदवार से ज़मीन हासिल करने के बाद उसे हेमा यादव को हस्तांतरित कर दिया.
ईडी ने दावा किया था कि लालू के कार्यकाल के दौरान कई रेलवे जोन में भर्ती किए गए आधे से अधिक उम्मीदवार उनके और उनके परिवार के सदस्यों के निर्वाचन क्षेत्रों से थे. इसमें आरोप लगाया गया है कि राबड़ी देवी ने एक उम्मीदवार के परिवार से मात्र 7.5 लाख रुपये में चार ज़मीनें खरीदीं और बाद में इसे राजद के एक पूर्व विधायक को 3.5 करोड़ रुपये में बेच दिया, जिसका एक बड़ा हिस्सा बाद में तेजस्वी के खाते में ट्रांसफर कर दिया गया.
यादव परिवार ने आरोपों से इनकार किया है और पिछले साल मार्च में छापेमारी के बाद तेजस्वी ने नरेंद्र मोदी सरकार और केंद्रीय एजेंसियों पर गौतम अडाणी जैसे व्यवसायियों के खिलाफ छापेमारी न करने और इसके बजाय उनके और उनके परिवार के खिलाफ निराधार आरोप लगाने का आरोप लगाया.
तेजस्वी ने कहा, “ईडी को जब्ती सूची सार्वजनिक करनी चाहिए या मैं इसे जारी करके उनकी पोल खोल दूंगा.”
मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि ईडी की कार्रवाई केंद्र सरकार द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली डराने-धमकाने की रणनीति है क्योंकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा बिहार में राजद से राजनीतिक रूप से लड़ने में सक्षम नहीं है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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