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Friday, 22 November, 2024
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आपको लगता है कि भारत में महंगाई ज्यादा है? कम से कम 100 देश हमसे खराब हालत में हैं

'ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स' के मुताबिक, लेबनान दुनिया में सबसे खराब मुद्रास्फीति दर का सामना कर रहा है, इसके बाद जिम्बाब्वे और सूडान का नंबर आता है.

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नई दिल्ली: जनवरी 2022 से भारत की मुद्रास्फीति दर 6 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है. वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में होने वाली स्थाई व अस्थाई वृद्धि को ‘मुद्रास्फीति’ कहा जाता है.

खाद्य तेलों से लेकर खाद्य पदार्थों और ईंधन तक, लगभग सभी उपभोक्ता वस्तुएं पहले की तुलना में महंगी हो गई हैं. लेकिन डेटा से पता चलता है कि एक औसत भारतीय मंहगाई की जिस दर से परेशान है, वह उसके आस-पास भी नहीं है जिसे 100 से ज्यादा देशों के लोग इस समय झेल रहे हैं.

दुनिया भर की सरकारों द्वारा जारी मुद्रास्फीति के आंकड़ों के आधार पर ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स डॉट कॉम– एक डेटा रिपोजिटरी वेबसाइट- ने अपनी रिपोर्ट तैयार की है. उनके द्वारा एकत्रित मुद्रास्फीति के आंकड़ों के अनुसार, भारत अपनी 7.04 प्रतिशत मुद्रास्फीति दर (मई 2022 में रिपोर्ट) के साथ, कुल 172 देशों में 108 वें स्थान पर रहा. इन सभी देशों के मुद्रास्फीति के नवीनतम आंकड़े उपलब्ध हैं.

29 जून तक के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 172 देशों में से 63 में मुद्रास्फीति की दर 10 प्रतिशत से अधिक थी. जबकि भारत सहित बाकी अन्य देशों में यह दर 10 प्रतिशत से कम थी.

क्रेडिट : दिप्रिंट टीम

लेबनान, जिम्बाब्वे और सूडान में मुद्रास्फीति दर उच्चतम

ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के अनुसार, चार देशों में मुद्रास्फीति की दर 100 प्रतिशत से ऊपर थी. सीधे शब्दों में कहें, तो इन देशों में लोग पिछले साल की तुलना में एक ही उत्पाद के लिए औसतन दोगुना पैसा खर्च कर रहे थे.

मौजूदा समय में लेबनान दुनिया में सबसे उच्च मुद्रास्फीति दर का सामना कर रहा है. इस छोटे पश्चिम एशियाई देश में औसतन उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में 200 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है – उपभोक्ता वस्तुओं के लिए पिछले साल मई में किए जा रहे औसतन भुगतान की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक भुगतान कर रहे हैं.

लेबनान की मुद्रास्फीति देश में चल रहे वित्तीय संकट की वजह से है जिसमें वह 2019 से फंसा हुआ है. कथित तौर पर सालों से वित्तीय नुकसान , कर्ज और कुप्रबंधन के कारण देश की मुद्रा में बहुआयामी गिरावट आई. पिछले साल नवंबर से देश की महंगाई दर 200 फीसदी से ऊपर रही. इस साल मई में यह कथित तौर पर 211 फीसदी थी.

लेबनान के बाद दो अफ्रीकी देश – जिंबाब्वे और सूडान – ने 192 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर की सूचना दी है.

जिम्बाब्वे में बेहद उच्च मुद्रास्फीति का एक लंबा इतिहास रहा है. नवंबर 2008 में देश की मुद्रास्फीति दर महीने-दर-महीने 79.6 बिलियन प्रतिशत पर पहुंच गई. देश को अधिक पैसे छापने के लिए भी जाना जाता है, लेकिन ये फिर भी अपनी बढ़ती कीमतों को काबू में करने में विफल रहा. 2019 में जिम्बाब्वे ने एक दशक के डॉलराइजेशन के बाद अपनी पुरानी मुद्रा वापस ला दी.

इस साल जून में देश की साल-दर-साल महंगाई दर 192 फीसदी बताई गई.

सूडान की मुद्रास्फीति की समस्या विदेशी मुद्रा की कमी से उपजी है. यह देश आयात पर काफी ज्यादा निर्भर है और इसे 2018 में विदेशी मुद्रा की भारी कमी का सामना करना पड़ा. इस वजह से सूडानी पाउंड का मूल्यह्रास हुआ. 2020 में देश की आर्थिक मुश्किलें और बढ़ गईं, जिसके बाद से महंगाई दर 100 फीसदी से नीचे नहीं गई.

सूडान के बाद वेनेजुएला आता है, जो कुछ साल पहले सूची में सबसे ऊपर हुआ करता था. इस साल मई में देश ने 167 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर दर्ज की.

वेनेजुएला दुनिया के सबसे अधिक तेल समृद्ध देशों में से एक है. इसके उच्च मुद्रास्फीति के पीछे यह भी एक कारक है. पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) के अनुसार, वेनेजुएला की निर्यात आय का 99 प्रतिशत से अधिक तेल से आता है. ओपेक 13 देशों का एक समूह है, जिसका उद्देश्य पेट्रोलियम की कुशल, आर्थिक और नियमित आपूर्ति के लिए तेल बाजारों का स्थिरीकरण सुनिश्चित करना है.

2014 में जब अलग-अलग कारणों से दुनियाभर में तेल की कीमतों पर असर पड़ा तो वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था में भी गिरावट आई. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2018 में वार्षिक मुद्रास्फीति दर औसतन 65,000 प्रतिशत से अधिक थी.

वेनेजुएला के बाद तुर्की का नंबर आता है, जहां मई में महंगाई दर 73.5 फीसदी पर पहुंच गई थी. तुर्की के लोकलुभावन नेता रेसेप तईप एर्दोगन के अर्थशास्त्र के प्रयोग ने मुद्रास्फीति की दर को बढ़ा दिया, देश की मुद्रा लीरा को तोड़ दिया और अपने ही देश के लोगों को नाराज कर दिया.

ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के अनुसार, दो दक्षिण अमेरिकी देशों- अर्जेंटीना और सूरीनाम- में भी मुद्रास्फीति की दर 50 प्रतिशत से ऊपर है.

श्रीलंका में आर्थिक संकट काफी गहरा है. इसके चलते देश भर में विरोध प्रदर्शन चल रहे है. इसकी नवीनतम मुद्रास्फीति दर 54.6 प्रतिशत बताई गई है.


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सबसे कम मुद्रास्फीति दर वाली शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में चीन और जापान

ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स डेटासेट के अनुसार, पांच देशों में मुद्रास्फीति की दर 2 प्रतिशत से कम रही. लेकिन ये छोटे देश हैं जिनकी सामूहिक आबादी लगभग 2.1 करोड़ है.

मई में चीन के एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र मकाऊ ने 1.1 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर की सूचना दी, जो दुनिया में सबसे कम है. इसके बाद हांगकांग (1.2प्रतिशत, हांगकांग भी चीन का एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र है), मालदीव (1.2) प्रतिशत), गैबॉन (1.2 प्रतिशत) और बोलीविया (1.4प्रतिशत) आते है.

चीन और जापान की शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं (उच्चतम सकल घरेलू उत्पाद) की मुद्रास्फीति की दर क्रमशः 2.5 और 2.1 सबसे कम रही.

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की पिछले महीने रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की कम मुद्रास्फीति दर में एक भूमिका निभाते हुए तथ्य यह है कि सीपीआई की गणना के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं में भोजन और कपड़ों को अधिक तरजीह देता है, और इसकी शून्य कोविड -19 नीति ने उपभोक्ता मांग को कम कर दिया है.

जापान में कम मुद्रास्फीति दर कम उपभोक्ता खर्च और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं पर खर्च में धीमी वृद्धि की विशेषता है.

अमेरिका (8.6 फीसदी), भारत और जर्मनी (7.9 फीसदी), जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की भी इस साल मई में मुद्रास्फीति की दर 7 फीसदी से अधिक रही है.

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के एक बयान के मुताबिक, भारत की उच्च मुद्रास्फीति दर ‘ग्लोबल प्राइस शॉक’ की वजह से है.

मौद्रिक नीति समिति – जो भारत में ब्याज दर मानदंड तय करने के लिए जिम्मेदार है – ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में बताया कि मुद्रास्फीति के लिए डोमेस्टिक आउटलुक अनिश्चित रह सकता है क्योंकि भारत की मुद्रास्फीति बाहरी कारकों से प्रेरित है.

8 जून को जारी 2022-23 के लिए मौद्रिक नीति वक्तव्य में कहा गया है, ‘दुनियाभर में तनावपूर्ण राजनीतिक स्थिति और इसके परिणामस्वरूप कमोडिटी की बढ़ी हुई कीमतें डोमेस्टिक इन्फ्लेशन आउटलुक को अनिश्चितता प्रदान करती हैं.’

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