नई दिल्ली: भारत में काम कर रही चीनी कंपनियां फिलहाल बुरे वक्त से गुजरती नजर आ रही हैं.
जून 2020 के बाद करीब 200 से अधिक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद मोदी सरकार ने करोड़ों के टर्नओवर वाली शाओमी, वीवो, ओप्पो और हुवावे जैसी दिग्गज कंपनियों से लेकर छोटी फिनटेक फर्मों तक, कई चीनी कंपनियों पर शिकंजा कस दिया है.
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग, और राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) सहित विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों के अलावा विभिन्न राज्यों की स्थानीय पुलिस ने इन फर्मों के खिलाफ आयकर चोरी और सीमा शुल्क से लेकर धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग तक के आरोपों की जांच शुरू कर दी है.
विभिन्न एजेंसियों के सूत्रों का दावा है कि यद्यपि ये कंपनियां भारत में अपनी मूल फर्मों से अलग कंपनी के तौर पर पंजीकृत थीं, लेकिन ‘चीन से सीधे निर्देश’ ले रही थीं और ‘पर्याप्त मात्रा में धन वापस पड़ोसी देश में भेज रही थीं.’
कुछ मामलों में आरोप हैं कि रॉयल्टी या लाइसेंस शुल्क के तौर पर मनी ‘लॉन्ड्रिंग’ की जा रही थी, अन्य में यह आरोप लगाया गया था कि आय कर बचाने के उद्देश्य से घाटा दिखाने के लिए सेल्स बुक में हेरफेर की गई, जबकि मुनाफा शेल कंपनियों को दिया गया.
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पूर्व निदेशक करनाल सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस तरह के कृत्यों से भारत में टैक्स बेस में कमी आती है. अब ये अपराध सामने आए हैं और इसलिए सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है.’
कुछ छोटी फिनटेक कंपनियों के मामले में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने उच्च ब्याज दरों पर अल्पकालिक कर्ज देकर हजारों लोगों को ‘धोखा’ दिया, और फिर मोबाइल फोन ऐप के माध्यम से उनके निजी डेटा का इस्तेमाल कर उनके पीछे पड़ गईं.
इस साल की शुरू में, कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) ने कथित चीनी लिंक वाली कंपनियों के खिलाफ 700 से अधिक मामले दर्ज किए थे. यह कदम केंद्रीय गृह मंत्रालय के उस अलर्ट के बाद उठाया गया, जिसमें दावा किया गया था कि कुछ भारतीय कंपनियों के बोर्ड में चीनी नागरिक हैं और वे मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य अवैध गतिविधियों का मोर्चा संभाले हो सकते हैं.
सालों से भारत में बड़े पैमाने पर निवेश कर रही निजी चीनी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई में गति ऐसे समय आई है जब लद्दाख में सीमा पर गतिरोध, कोविड पाबंदियों को लेकर भारतीय छात्रों को चीनी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए वापस लौटने की अनुमति न दिए जाने को लेकर दोनों देशों के बीच परस्पर संबंधों में खटास बनी हुई है, और दक्षिण एशिया में अपना वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश में पड़ोसी देश आक्रामक रूप से अपनी विस्तारवादी नीतियां आगे बढ़ा रहा है.
ऐसा नहीं है कि भारत सरकार की गतिविधियां बीजिंग की नजरों से छिपी हुई है. चीन के सरकारी अंग्रेजी दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने मई में एक संपादकीय प्रकाशित किया था जिसमें कहा गया था कि भारत को चीनी कंपनियों पर अपने ‘विनियामक हमले’ रोकने चाहिए.
चीन ने कुछ मौकों पर आधिकारिक चैनलों के माध्यम से नई दिल्ली से कहा भी है कि भारत में निवेश और ऑपरेट करने वाली चीनी कंपनियों को ‘निष्पक्ष’ और ‘गैर-भेदभावपूर्ण’ वातावरण मुहैया कराया जाए. जुलाई में दिल्ली में चीनी दूतावास के एक अधिकारी ने भारत की तरफ से चीनी उद्यमों में ‘लगातार जांच’ की आलोचना की थी. अधिकारी ने कहा कि चीन सरकार ‘चीनी उद्यमों के वैध अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह उनके साथ खड़ी है.’
इस बीच, विशेषज्ञों का मानना है कि जहां चीनी कंपनियों से कानूनों और नियम-कायदों का पालन कराना आवश्यक है, वहीं यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि निवेश हतोत्साहित न हो या फिर भारतीय उद्यमों के हितों को नुकसान न पहुंचे.
अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विशेषज्ञ बलजीत काल्हा ने कहा, ‘बड़ी दिग्गज कंपनियों की जांच करते समय एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई कोलैटरल न हो. उन्हें इन दिग्गजों से जुड़ी भारतीय कंपनियों के हितों की रक्षा करने की जरूरत है.’
शाओमी केस—’रॉयल्टी भुगतान का कोई मतलब नहीं था’
अप्रैल अंत में, ईडी ने चीन के शाओमी ग्रुप की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी शाओमी टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के बैंक खातों से 5,555 करोड़ रुपये से अधिक जब्त किए. इसके तुरंत बाद, इसने कंपनी के ग्लोबल वाइस प्रेसीडेंट मनु कुमार जैन को भी पूछताछ के लिए बुला लिया.
ईडी की तरफ से प्रेस को जारी एक बयान में कहा गया कि उसने ‘कंपनी की तरफ से अवैध रेमिटेंस’ के संबंध में विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के प्रावधानों के तहत जांच शुरू की है.
ईडी ने आरोप लगाया कि 2014 में भारत में ऑपरेट करना शुरू करने वाली इस कंपनी ने 2015 से ही शाओमी ग्रुप की एक अन्य ‘इकाई’ और अमेरिका स्थित दो अन्य ‘असंबंधित संस्थाओं’ को ‘रॉयल्टी भुगतान की आड़ में’ 5,551.27 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बाहर भेजी.
ईडी ने दावा किया कि ये सभी लेन-देन ‘इसकी मूल चीनी कंपनी समूह के निर्देशों पर’ और अंतत: ‘शाओमी ग्रुप की कंपनियों को लाभ पहुंचाने’ के उद्देश्य से किए गए थे.
एक जांच एजेंसी के सूत्र ने दावा किया कि इस ट्रांसफर के संबंध में कोई ‘स्वीकार्य स्पष्टीकरण’ या ‘वैध दस्तावेज’ नहीं था.
उन्होंने कहा, ‘कंपनी ने विदेशी संस्थाओं से कोई सेवा लिए बिना और बिना किसी प्राधिकरण के इस पैसे को विदेश भेज दिया, जो स्पष्ट तौर पर नियम-कायदों का उल्लंघन है. पैसा टैक्स हैवन में भेजा गया था.’ साथ ही आरोप लगाया कि ‘रॉयल्टी’ पैसा भेजने का सबसे आसान तरीका है.
सूत्र ने कहा कि देश की स्मार्टफोन मार्केट लीडर शाओमी इंडिया एक समझौते के तहत स्थानीय निर्माताओं से मोबाइल सेट और उत्पाद खरीदती है और फिर उन्हें बेचती है. कंपनी द्वारा इन अनुबंध निर्माताओं को कोई तकनीकी इनपुट या सॉफ्टवेयर से संबंधित सहायता नहीं दी जाती है.
सूत्र ने यह भी दावा किया कि कंपनी ने अच्छा-खासा मुनाफा कमाया, लेकिन टैक्स बचाने के लिए अपने बहीखातों में नुकसान दिखाया.
इस बीच, शाओमी इंडिया ने इस बात से इनकार किया है कि उसने कोई गलत काम किया है और अपनी संपत्ति की जब्ती को कर्नाटक हाई कोर्ट में चुनौती दी है. 5 जुलाई को कोर्ट ने फेमा के तहत एक ‘सक्षम प्राधिकारी’ को निर्देश दिया कि वो संपत्ति जब्त करने के ईडी के आदेश की पुष्टि या खारिज करने पर 60 दिनों के भीतर फैसला ले.
इस साल के शुरू, जनवरी में, डीआराई ने शाओमी इंडिया पर 653 करोड़ रुपये की सीमा शुल्क चोरी का आरोप भी लगाया था.
डीआरआई के एक सूत्र के मुताबिक, एक खुफिया इनपुट ने एजेंसी को सूचित किया था कि कंपनी ‘अंडरवैल्यूएशन’ के माध्यम से सीमा शुल्क बचा रही है. सूत्र ने बताया कि बाद की जांच में, डीआरआई ने पाया कि कंपनी ‘कांट्रैक्ट संबंधी दायित्व’ के तहत क्वालकॉम यूएस और बीजिंग श्याओमी मोबाइल सॉफ्टवेयर को ‘रॉयल्टी और लाइसेंस शुल्क भेज रही थी.’
सूत्रों ने बताया कि ये पैसा शाओमी इंडिया और उसके अनुबंध निर्माताओं की तरफ से आयात किए गए सामानों के ट्रांजैक्शन मूल्य में नहीं जोड़ा जा रहा था.
हालांकि, आरोपों पर जवाब देते हुए शाओमी इंडिया के प्रवक्ता ने दिप्रिंट को बताया कि शाओमी इंडिया की तरफ से किए गए सभी रॉयल्टी भुगतान वैध हैं और वैध कानूनी अनुबंधों के तहत किए गए हैं.
प्रवक्ता ने कहा, ‘कुल रॉयल्टी भुगतान का करीब 84 प्रतिशत हिस्सा एक सूचीबद्ध अमेरिकी कॉरपोरेशन क्वालकॉम को दिया गया, यह भुगतान स्टैंडर्ड एसेंशिएल पेटेंट (एसईपी) और अन्य बौद्धिक संपदा सहित विभिन्न लाइसेंस्ड टेक्नोलॉजी के लिए किया गया था. ये लाइसेंस प्राप्त प्रौद्योगिकी भारत में शाओमी उत्पादों के वैध कामकाज के लिहाज से अहम हैं.’
प्रवक्ता ने कहा, ‘सभी रॉयल्टी भुगतान सामान्य बैंकिंग चैनलों के माध्यम से टैक्स काटने के बाद किए गए थे…एक वैश्विक संगठन के तौर पर हम देश के कानूनों का सम्मान और पालन करते हैं.’
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वीवो केस—‘शेल कंपनियां, जाली रिकॉर्ड, चीन को भेजा 50% टर्नओवर’
शाओमी पर छापे का मामला अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ था कि ईडी ने 5 जुलाई को देश में वीवो मोबाइल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और इससे जुड़ी 23 कंपनियों के 48 स्थानों पर सर्च ऑपरेशन चलाया.
ईडी ने वीवो इंडिया पर 2017 से 2021 के बीच करीब दो दर्जन शेल कंपनियों का जाल बनाकर चीन को 62,477 करोड़ रुपये भेजने का आरोप लगाया. ईडी के मुताबिक यह रकम कंपनी के कुल टर्नओवर की करीब 50 फीसदी है.
ईडी के एक अधिकारी ने दावा किया कि ये रेमिटेंस भारत में टैक्स बचाने के लिए भारतीय निगमित कंपनियों में भारी नुकसान दिखाने के लिए किया गया था. अधिकारी ने यह आरोप भी लगाया कि जांच से पता चला है कि वीवो इंडिया के सभी बड़े फैसले चीन से निर्देशित थे.
सूत्र ने कहा, ‘वैसे तो वीवो इंडिया का कहना है कि उसका वीवो चाइना से कोई संबंध नहीं है और वह स्वतंत्र रूप से काम करती है, लेकिन जांच में पाया गया कि वीवो इंडिया के सभी बड़े फैसले चीनी कंपनी के निर्देश पर लिए जा रहे थे. हमने इसकी पुष्टि करने वाले इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य हासिल किए हैं.’
वीवो मोबाइल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को अगस्त 2014 में हांगकांग स्थित कंपनी मल्टी एकॉर्ड लिमिटेड की सहायक कंपनी के रूप में शामिल किया गया था, और दिल्ली में रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) द्वारा पंजीकृत किया गया था.
ईडी के इस अधिकारी के मुताबिक, पिछले चार सालों में कंपनी की ‘सेल्स बुक में हेरफेर’ के लिए यह दर्शाया जा रहा है कि भारत के दूरदराज के एक इलाके में करोड़ों फोन बेचे जा रहे हैं.
सूत्र ने दावा किया, ‘इसमें जितना धन शामिल होने का पता चला है, उससे कहीं अधिक है.’
वीवो इंडिया पिछले कुछ समय से सवालों के घेरे में है.
ईडी ने वीवो से जुड़ी एक कंपनी ग्रैंड प्रॉस्पेक्ट इंटरनेशनल कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड (जीपीआईसीपीएल)—और इसके निदेशक, शेयरधारक और प्रमाणित पेशेवरों के खिलाफ दिसंबर 2021 में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा की तरफ से दायर एक मामले के आधार पर इस साल फरवरी में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अपनी जांच शुरू की थी.
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की शिकायत दर्ज पर एफआईआर दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि जीपीआईसीपीएल और उसके शेयरधारकों ने ‘इन्कॉर्पोरेशन के समय फर्जी पहचान दस्तावेजों और जाली पते’ का उपयोग किया था.
ईडी के एक बयान के मुताबिक, जीपीआईसीपीएल को 3 दिसंबर 2014 को सोलन (हिमाचल प्रदेश) और गांधी नगर (जम्मू) के पते के साथ आरओसी शिमला में पंजीकृत किया गया था.
बयान के मुताबिक, ‘जांच से पता चला कि जीपीआईसीपीएल के निदेशकों ने जिस पते का उल्लेख किया था, वो उनके नहीं थे. बल्कि वास्तव में यह एक सरकारी भवन और एक वरिष्ठ नौकरशाह का घर था.’
जब ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की तो उसने कथित तौर पर पाया कि जीपीआईसीपीएल के निदेशक बिन लू, जो वीवो के पूर्व निदेशक भी थे, को 2014-15 में वीवो में शामिल किए जाने के ठीक बाद पूरे भारत में 18 से अधिक कंपनियों में शामिल किया गया था. कहा जाता है कि एक अन्य चीनी नागरिक जिक्सिन वेई भी चार कंपनियों में शामिल थे.
जांचकर्ताओं का आरोप है कि इन कंपनियों ने वीवो इंडिया को भारी मात्रा में फंड ट्रांसफर किया.
ईडी का दावा है कि चीनी नागरिकों सहित वीवो इंडिया के कुछ कर्मचारियों ने तलाशी प्रक्रिया में सहयोग नहीं किया और ‘फरार’ और ‘डिवाइस छिपाने’ की कोशिश की.
अब तक, जांच एजेंसी ने पीएमएलए के प्रावधानों के तहत कथित तौर पर ‘विभिन्न संस्थाओं’ के 119 बैंक खातों को जब्त कर लिया है, जिसमें शेष बकाया राशि 465 करोड़ रुपये है, इसके अलावा दो किलो सोने की छड़ें और 73 लाख रुपये नकद मिला है.
दिप्रिंट ने ईमेल के जरिये वीवो इंडिया से संपर्क साधा, लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
पूर्व में आई रिपोर्टों में वीवो ने कहा था कि वह ‘सभी आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए अधिकारियों के साथ सहयोग कर रही है’ और ‘पूरी तरह कानूनों के पालन के लिए प्रतिबद्ध है.’
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ओप्पो मामला- ‘गलत तरीके से लिया शुल्क छूट का फायदा, चीन को भेजा पैसा’
राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने जुलाई में ओप्पो मोबाइल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड पर आरोप लगाया था कि कंपनी ने अन्य संदिग्ध उल्लंघनों के बीच 4,389 करोड़ रुपये की सीमा शुल्क की चोरी की है.
चीन में ग्वांगडोंग ओप्पो मोबाइल टेलीकम्युनिकेशंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड की एक सहायक कंपनी, ओप्पो इंडिया ओप्पो, वनप्लस और रियलमी सहित विभिन्न मोबाइल फोन ब्रांड असेंबल करने और उन्हें बेचने का काम करती है.
डीआरआई के एक बयान के मुताबिक, ओप्पो इंडिया के कार्यालय और प्रमुख प्रबंधन कर्मचारियों के आवासों की तलाशी में ‘अहम सबूत’ मिले कि कंपनी ने ‘कुछ वस्तुओं के विवरण में जानबूझकर गलत सूचना’ दी थी जिन्हें कंपनी ने मोबाइल फोन निर्माण में उपयोग के लिए आयात किया था.
डीआरआई के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि कंपनी ने कथित तौर पर 2,900 करोड़ रुपये से अधिक शुल्क छूट का लाभ उठाया, जबकि वह इसके योग्य नहीं थी. उन्होंने कहा कि पूछताछ के दौरान, वरिष्ठ प्रबंधन के सदस्यों के साथ-साथ घरेलू आपूर्तिकर्ताओं ने स्वीकारा किया कि उन्होंने आयात के समय सीमा शुल्क अधिकारियों को ‘गलत विवरण’ पेश किया था.
इतना ही नहीं, डीआरआई ने अपने बयान में आरोप लगाया है कि ओप्पो इंडिया ने ‘मालिकाना प्रौद्योगिकी/ब्रांड/आईपीआर लाइसेंस आदि’ के उपयोग के लिए चीन स्थित कुछ कंपनियों सहित विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों को रॉयल्टी और लाइसेंस शुल्क का भुगतान करने का प्रावधान किया है. हालांकि, कंपनी ने कथित तौर पर इन रॉयल्टी और लाइसेंस शुल्क को आयातित माल की ट्रांजैक्शन वैल्यू में जोड़ने की अनदेखी की है.
डीआरआई अधिकारी ने कहा, यह सीमा शुल्क अधिनियम का उल्लंघन है और इस तरह से कथित तौर पर 1,408 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी की गई थी.
अधिकारी ने कहा कि ओप्पो इंडिया को 4,389 करोड़ रुपये के सीमा शुल्क भुगतान के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है.
कस्टम छापे के जवाब में ओप्पो के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘एससीएन (कारण बताओ नोटिस) में उल्लिखित आरोपों पर हमारा एक अलग दृष्टिकोण है. हमारा मानना है कि यह एक उद्योग-व्यापी मुद्दा है जिस पर कई कॉरपोरेट काम कर रहे हैं.’
प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी नोटिस का जवाब देगी और एससीएन की समीक्षा के बाद अपना पक्ष रखेगी.
प्रवक्ता ने कहा, ‘ओप्पो इंडिया कानून के तहत प्रदान किए गए किसी भी उपाय सहित इस संबंध में आवश्यक कदम उठाएगी.’
हुवावे केस—‘टैक्स चोरी, बही-खातों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया’
हुवावे का मामला भी वीवो की तरह ही है. आयकर विभाग ने जुलाई में हुवावे टेलीकम्यूनिकेशन इंडिया पर उसकी मूल चीनी कंपनी को 750 करोड़ रुपये भेजने का आरोप लगाया, जबकि उसने अपने राजस्व में बड़ी गिरावट दिखाई थी.
इससे पहले, मार्च में आयकर विभाग ने आरोप लगाया था कि कंपनी ने बही-खातों में करीब 400 करोड़ रुपये की कमाई छिपाकर टैक्स चोरी की कोशिश की थी.
सरकार के सूत्रों के अनुसार, कंपनी ने खर्च के विभिन्न प्रावधानों को जोड़कर अपने बही-खातों में गड़बड़ी कर भारत में अपनी कर योग्य आय को कम करके दिखाया. एक सूत्र ने कहा, ‘इन खर्चों में बिना इस्तेमाल के खराब सामान, वारंटी, संदिग्ध ऋण-लोन और अग्रिम के प्रावधान शामिल थे, जिनके पीछे कोई वैज्ञानिक या वित्तीय तथ्य नहीं दिए गए थे या फिर मामूली थे.’
कर चोरी का यह कथित मामला फरवरी में सामने आया था, जब आयकर विभाग ने हुवावे के दिल्ली और बेंगलुरु स्थित कार्यालयों के साथ-साथ कंपनी के प्रमुख अधिकारियों के आवासीय परिसरों में छापेमारी की थी.
सरकार के एक सूत्र ने कहा कि जांचकर्ताओं ने पाया कि कंपनी ने भारत के बाहर अपने संबंधित पक्षों से ली गई ‘तकनीकी सेवाओं’ के बदले ‘बढ़ा-चढ़ाकर भुगतान’ दिखाया.
सूत्र का आरोप है, ‘ये रकम चीन भेजी जा रही थी. जब इस बारे में ब्योरा मांगा गया तो कंपनी ऐसे तकनीकी सेवाओं की वास्तविकता को साबित नहीं कर सकी, जिनके लिए भुगतान किया गया था.’
वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी एक बयान, जिसमें कंपनी के नाम का उल्लेख नहीं किया गया था, के मुताबिक, ‘एक बड़े टेलीकॉम समूह ने ऐसी सेवाओं के बदले भुगतान के लिए पांच साल में 129 करोड़ रुपये खर्च किए थे.’
इसके अलावा, उसने संबंधित पक्षों को ‘रॉयल्टी’ भुगतान को लेकर भी 350 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च दिखाया था.
बयान में कहा गया, ‘ऐसे खर्च को ब्रांड के इस्तेमाल और पेटेंट-कॉपीराइट जैसे तकनीकी जानकारी वाले कामों में दिखाया गया. तलाशी के दौरान, कंपनी ऐसी सेवाओं या तकनीकी विशेषज्ञता के कामों की एवज में कोई भी रसीद वगैरा पेश करने में नाकाम रही, और वह ऐसे दावों के लिए रॉयल्टी की दरों को सही साबित करने का कोई बुनियादी तथ्य भी नहीं दे पाई.’
चीन की इस दिग्गज टेलीकम्युनिकेशन कंपनी के भारत के मामलों के सीईओ डेविड ली—चीनी मूल के ली को अप्रैल 2020 में सीईओ नियुक्त किया गया था—को 1 मई को नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरटेशनल एयरपोर्ट से बैंकाक की फ्लाइट में बैठने के पहले रोक लिया गया. इसके बाद उन्होंने आयकर विभाग के उनके खिलाफ लुक आउट सर्कुलर को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया.
इन आरोपों पर दिप्रिंट को दिए लिखित जवाब में हुवावे प्रवक्ता ने कहा, कंपनी भारतीय एजेंसियों के साथ ‘पूरा सहयोग’ कर रही है और मांगी गई सभी जानकारियां उपलब्ध करा रही है.
जवाब में कहा गया है, ‘भारत में एक महत्वपूर्ण निवेश भागीदार के तौर पर, हम देश के कानून का पूरा सम्मान करते हैं…हम कानून की उचित प्रक्रिया के हिसाब से अपना जवाब/प्रत्युत्तर दाखिल करने की प्रक्रिया में है.’ अंत में कहा गया कि चूंकि ये मामला न्यायिक विचाराधीन है, लिहाजा हुवावे या उसके अधिकारियों के लिए कोई और टिप्पणी करना ‘उचित’ नहीं होगा.
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पिछले एक साल में ईडी ने कथित तौर पर चीन की फिनटेक कंपनियों द्वारा संचालित माइक्रो फाइनेंसिंग एप्लीकेशन (लोन ऐप) के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है और इस संबंध में तमाम केस दर्ज किए हैं. जांच एजेंसी ने लोन ऐप केस में 158.97 करोड़ रुपये से ज्यादा की कई परिसंपत्तियां जब्त की हैं.
ईडी सूत्रों के अनुसार, भारत में ऐसी कई फिनटेक कंपनियां हैं—जो दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और गुरुग्राम से ऑपरेट कर रही हैं—जो या तो प्रत्यक्ष तौर पर चीनी नागरिकों या कंपनियों के स्वामित्व वाली हैं या परोक्ष तौर पर भारतीय कंपनियों में नियुक्त ‘डमी निदेशकों’ के नेतृत्व में चल रही हैं. सूत्रों ने कहा, ये कंपनियां चीन या हांगकांग से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर फंड प्राप्त कर रही हैं.
ईडी सूत्रों का दावा है कि ये फिनटेक कंपनियां ग्राहकों को दो हजार से 20 हजार रुपये तक का झटपट लोन (इंस्टैंट माइक्रो लोन) देती हैं लेकिन इसके बदले भारी ब्याज वसूलती है, जो सालाना 182 से 365 फीसदी तक होता है और समय पर कर्ज न चुका पाने में भारी पेनॉल्टी भी लगाती थीं.
लोन की यह अवधि एक हफ्ते से कुछ महीनों तक की होती है और कर्ज मंजूर होने के साथ ही प्रोसेसिंग फीस के नाम पर 15 से 25 फीसदी रकम तुरंत काट ली जाती थी.
ईडी सूत्रों ने यह भी आरोप लगाया, ऐसे लोन देने की प्रक्रिया के दौरान ये कंपनियां ‘ग्राहकों का निजी डेटा’ भी ले लेती थीं और फिर इसका इस्तेमाल उन ग्राहकों के खिलाफ करतीं और उन्हें भारी ब्याज चुकाने को मजबूर करतीं.
ईडी सूत्रों के अनुसार, इन फिनटेक कंपनियों ने ऐसे दर्जनों निष्क्रिय गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की पहचान की, जिनकी पूंजी 3.5 करोड़ रुपये से 11 करोड़ रुपये के बीच थी और फिर इनके लाइसेंस का इस्तेमाल अपने कारोबार के लिए किया.
‘कार्रवाई का अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है असर’
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कार्रवाई आवश्यक प्रतीत होती है, लेकिन इससे भारत में चीन का निवेश प्रभावित हो सकता है. साथ ही आशंका जताई कि इससे अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पूर्वी एशिया अध्ययन विभाग में चाइनीज स्टडीज की पूर्व प्रोफेसर डॉ. मधु भल्ला ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि ऐसा लगता है कि भारत इन चीनी कंपनियों के खिलाफ केस दर्ज करने के जरिये चीन को एक संदेश देना चाहता है.
उन्होंने कहा, यह विशुद्ध रूप से आर्थिक की बजाये एक ‘राजनीतिक संदेश’ प्रतीत होता है, हालांकि चीनी कंपनियों से दूरी बनाए रखने के इस उद्देश्य में इस तथ्य को कमतर करके आंका गया है कि भारत के सबसे बड़े कॉरपोरेट चीनी बाजार में गहराई से जड़ें जमा चुके हैं. हालांकि एजेंसियों की यह कार्रवाई वैश्विक तौर पर देखे जा रहे ट्रेंड के अनुरूप दिखाई देती है.
भल्ला ने कहा, ‘वर्ष 2020 के बाद, दुनियाभर के देशों में उनके स्थानीय कानूनों के अनुपालन को लेकर चीनी कंपनियों पर दबाव बढ़ गया है. कोविड महामारी के बाद, अमेरिका ने चीन के साथ संपर्क तोड़-सा लिया था और तब यह देखने का उतावलापन था कि ये चीनी कंपनियां उन देशों के कारोबारी परंपराओं के अनुसार कैसा व्यवहार करती हैं. भारत इस मामले में अमेरिकी राह पर चल रहा है.’
भल्ला ने यह भी कहा कि सरकार का एजेंडा चाहे कंपनियों को कानूनों का अनुपालन करने वाला बनाने का हो या चीन से दूरी बनाने का, उसे समझने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि यदि अनुपालन का उद्देश्य था, तो भारतीय कानूनों का पालन करने का दबाव गैर चीनी कंपनियों पर भी डाला जाएगा.
उन्होंने सवाल किया, ‘क्या हम प्रत्येक कारपोरेट के मामले में उचित ऑडिटिंग प्रक्रिया अपनाते हैं. सिर्फ चीनी कंपनियों पर कार्रवाई से उद्देश्य हासिल नहीं होगा.’
अंतरराष्ट्रीय कानूनो के विशेषज्ञ बलजीत काल्हा ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, हालांकि चीनी कंपनियों की जांच महत्वपूर्ण है, लेकिन निवेश को हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए, खासकर ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ गई है.
काल्हा ने कहा, एजेंसियों को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि कई भारतीय कंपनियां इस कार्रवाई के कारण समस्याओं का सामना कर रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘इन जांचों की वजह से बहुत सारे वेंडर्स और कारोबारी, जो बिना किसी प्रकार का उल्लंघन किए व्यवसाय कर रहे हैं, पीड़ित हो रहे हैं.’
ईडी के पूर्व निदेशक करनाल सिंह ने कहा, एजेंसियों द्वारा इन मामलों को दर्ज करने से संकेत मिलता है कि चीनी कंपनियां मुनाफा दूसरे देशों में ट्रांसफर कर रही हैं, जो विभिन्न कानूनों के तहत अपराध के दायरे में आता है.
उन्होंने बताया, ‘कई कारणों से बहुत सारी एजेंसियां इन कंपनियों के पीछे लगी हुई थीं. एक अपराध के मामले में कई एजेंसियां शामिल हो जाती हैं. उदाहरण के लिए, यदि धन शोधन (मनी लांड्रिंग) के लिए जाली दस्तावेजों का उपयोग करके कंपनियां बनाई गई हों तो स्थानीय पुलिस (ऐसे अपराध की जांच के लिए) और ईडी मनी लांड्रिंग के आरोपों की जांच के लिए काम करने लगती हैं.’
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