बेंगलुरु/नई दिल्ली: साल 2021 में स्टार्ट-अप्स की संख्या में आए उछाल के बाद इस साल आया एक ऐसा ‘फंडिंग विंटर’ (स्टार्ट-अप्स को पैसे मिलने में हो रही दिक्कत) जो अभी भी हवा में ठंडक पैदा कर रहा है; और अब नए साल 2023 के बारे में लगता है कि इस वर्ष भारत की गिग इकॉनमी अपनी वास्तविक उड़ान भर पाएगी.
वित्तीय सेवा मंच (फाइनेंशियल सर्विसेस प्लेटफॉर्म) ‘स्ट्राइडवन’ द्वारा इस महीने जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 तक, भारत के कुल कार्यबल का लगभग 4 प्रतिशत हिस्सा ‘गिग सेक्टर’ से होने की उम्मीद है.
इसका मतलब यह है कि गिग इकोनॉमी, जो ‘स्थायी’ रोजगार के बजाय संविदा आधारित, अंशकालिक और फ्रीलान्स वर्कर्स की बहुलता वाले श्रम बाजार को संदर्भित करती है, द्वारा साल 2024 तक लगभग 2.35 करोड़ श्रमिकों को रोजगार दिए जाने की उम्मीद है – यह साल 2020-21 में केवल 80 लाख -या कार्यबल के 1.5 प्रतिशत- से तीन गुना वृद्धि होगी.
रिपोर्ट कहती है, ‘लंबे समय के दौरान, इस क्षेत्र में भारत के गैर-कृषि क्षेत्रों में 90 मिलियन (9 करोड़) से अधिक नौकरियां जोड़ने की क्षमता है.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास स्मार्टफोन होने, सस्ते डेटा और इंटरनेट-आधारित सेवाओं के लिए बढ़ती भूख के साथ, ऑनलाइन रिटेल की पैठ के साल 2019 के लगभग 5 प्रतिशत से बढ़कर साल 2024 तक 11 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है.
ये अनुमान ऐसे समय में आए हैं जब भारत में स्टार्ट-अप सेक्टर को लेकर कुछ चिंताएं जताई जा रहीं है. साल 2022 में इस सेक्टर में बड़े पैमाने पर छंटनी देखी गई, यूनिकॉर्न ($1 बिलियन या उससे अधिक के अनुमानित मूल्य वाली कंपनियां) की संख्या में भारी गिरावट आई और स्टार्ट-अप्स को मिलने वाली फंडिंग जुलाई-सितंबर की तिमाही के दौरान पिछले दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई. वेंचर कैपिटल (वीसी) फंडों ने कथित तौर पर इस साल स्टार्ट-अप्स के साथ हुए डील्स (सौदों) को पांचवे हिस्से तक कम कर दिया.
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बारे में दृष्टिकोण अभी भी सकारात्मक है, विशेष रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा, जलवायु और ऊर्जा जैसे उभरते क्षेत्रों में. हालांकि वर्तमान में मिले रहे लाभों, भत्तों और सुविधाओं के साथ वाली अधिक नियमित नौकरियों की संख्या में कमी हो सकती हैं, स्टार्ट-अप्स अल्पकालिक संविदात्मक श्रम के लिए अवसर पैदा करना जारी रखेंगे.
गैर-लाभकारी प्रौद्योगिकी थिंक टैंक ‘आईस्पिरिट फाउंडेशन’ के सह-संस्थापक शरद शर्मा कहते हैं, ‘भारत उन कुछेक देशों में से एक है जहां अगले कुछ वर्षों के दौरान कामकाजी उम्र वाले लोगों की आबादी बढ़ेगी. आने वाले वर्षों में चीन, अमेरिका, यूरोप और यहां तक कि थाईलैंड में भी इनकी संख्या में गिरावट देखने को मिलेगी. इसलिए हमें ‘गिग जॉब’ समेत हर तरह की नौकरी का स्वागत करना चाहिए.‘
स्ट्राइडवन के संस्थापक इशप्रीत सिंह गांधी ने ऊपर वर्णित रिपोर्ट में कहा है, ‘स्टार्ट-अप्स के इस अचानक से हुए उदय ने भारत को दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम बना दिया है. इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को अहम रूप से प्रभावित किया है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 4-5 प्रतिशत योगदान करने की क्षमता दिखाई है.’
एथेरा वेंचर पार्टनर्स के रुत्विक दोशी ने भी दिप्रिंट से बात करते हुए एक उत्साहपूर्ण टिप्पणी ही की: ‘हम इसे [स्टार्ट-अप सेक्टर को] साल-दर-साल आगे बढ़ते देखना जारी रखे हुए हैं और मुझे ऐसा कोई कारण नहीं दिखता कि यह आने वाले किसी भी समय में धीमा हो जाएगा. यह लगातार बढ़ रहा है और हम इसे 2023 में भी ऐसा करते देखते रहेंगे.’
हालांकि, गिग वर्कर्स की अस्थिर कामकाजी परिस्थितियों के साथ-साथ स्टार्ट-अप सेक्टर में फंडिंग के धीमे पड़ जाने के बारे में चिंताएं अभी बनी हुई है.
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‘इसे सिर्फ उबर ड्राइवरों का देश नहीं होना चाहिए‘
भारत के अंदर वीसी फंडिंग का अधिकांश प्रवाह विदेशों से हो रहा है और यह ज्यादातर एड-टेक, किराना और खाद्य सामग्री के वितरण, खुदरा व्यापार और गतिशीलता (मोबिलिटी) के कुछ बड़े ई-कॉमर्स उद्यमों को ही जा रहा है.
विशेषज्ञ इसे ‘पर्यटन वाली पूंजी (टूरिस्ट कैपिटल)‘ का नाम देते हैं और उनका कहना है कि घरेलू स्तर पर फंडिंग की कमी ने कई स्टार्ट-अप को पूंजी से वंचित कर दिया है.
वे प्रारंभिक चरण के स्टार्ट-अप्स के पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) को फंड (वित्तपोषित) करने के लिए स्थानीय उच्च निवल संपत्ति वाले व्यक्तियों (हाई नेट वर्थ इंडिवीडुअल्स या एचएनआई), बीमा कंपनियों, निजी कंपनियों और अन्य को आकर्षित करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं.
शर्मा ने कहा, ‘महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें केवल उबर कैब के चालकों का देश नहीं बनना चाहिए. हमें अपने ‘उबर’ को पैदा करने की भी आवश्यकता है. तभी अर्जित धन भारत में रहेगा.’
‘गिग वर्क’ उसमें शामिल कर्मियों के लिए कई चुनौतियों के साथ आता है, जिनमें अस्थिरता और लाभ तथा सुरक्षा की कमी शामिल है.
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में ‘गिग वर्कर्स’ के हालात पर शोध करने वाले डॉक्टरेट के छात्र मोहम्मद सज्जाद हुसैन ने कहा कि ‘गिग वर्कर्स’ के लिए यह चिंता करना एक ‘रोज़-रोज़ की बात’ है कि उनके अनुबंधों का नवीनीकरण किया जाएगा या नहीं. इसके अलावा, उनके लिए अपने आप को ‘यूनियनाइज़’ करने (अपने मुद्दों के लिए एक साथ आने) के कुछ ही अवसर होते हैं.
स्ट्राइडवन की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लगभग 47 प्रतिशत ‘गिग वर्कर्स’ के पास किसी भी तरह का बीमा नहीं है, और इनमें से लगभग 41 प्रतिशत पर्याप्त आर्थिक सामर्थ्य न होने को इसका मुख्य कारण बताते हैं.
शर्मा के अनुसार, इस बारे में ‘टेक्नो-लीगल रेगुलेशंस (तकनीकी-कानूनी नियमों) की शुरूआत किया जाना श्रमिकों के साथ-साथ स्टार्ट-अप्स के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकती है.
टेक्नो-लीगल रेगुलेशंस वे नियम-कायदे हैं जो स्टार्टअप और ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल होते हैं और बाधाओं को दूर करके उनके विकास को सुगम बनाते हैं.
केंद्र सरकार सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की जगह लेने के लिए एक नया कानून लाने पर विचार कर रही है. नए कानून के दायरे में सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स से जुडी संस्थाओं और फैक्ट-चेक (तथ्यों की जांच करने वाले) पोर्टलों को शामिल किये जाने की उम्मीद है.
‘फंडिंग विंटर के बाद का बसंत?
साल 2017 से 2022 के बीच स्टार्ट-अप्स की कुल संख्या 72 प्रतिशत की क्युमुलेटिव एनुअल ग्रोथ रेट- सीएजीआर से बढ़ी है, और 2022-27 में इसके 25 प्रतिशत की सीएजीआर से बढ़ने का अनुमान है.
वैश्विक रूप से बनी हुई विपरीत परिस्थितियों, जैसे उत्तरी अमेरिका और यूरोप में बड़े पैमाने पर आने वाली आसन्न मंदी, के बीच आने वाले महीनों में (कम) फंडिंग द्वारा चुनौती पेश किए जाने की उम्मीद है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अभी भी विकास के लिए काफी अवसर हैं.
बिज़नेस एक्सेलरेटर फर्म, इंडिया एक्सीलरेटर, के संस्थापक आशीष भाटिया, 5 जी की बढ़ती पैठ के साथ अवसरों को और बढ़ते देखते हैं और उनका यह मानना है कि आगे बढ़ने के दौरान जलवायु, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर लोगों का बड़ा ध्यान होगा.
उन्होंने कहा, ‘साल 2021 में आए उछाल से स्टार्ट-अप्स को काफी फायदा हुआ, लेकिन उन्हें फंडिंग के संकट और धीमी वैश्विक अर्थव्यवस्था से भी जूझना पड़ा. हालांकि, इस वर्ष में बड़ी संख्या में नए स्टार्ट-अप्स को उभरते हुए भी देखा गया – साल 2022 को भारतीय स्टार्ट-अप क्षेत्र में सबसे अधिक विलय और अधिग्रहण वाले वर्ष के रूप में चिह्नित किया गया, जो साल 2021 की तुलना में 9 प्रतिशत अधिक थे.‘
उन्होंने कहा, ‘अभी भी मंडरा रहे अनिश्चितता के खतरे के बावजूद हम पूरी आशावादिता के साथ 2023 की प्रतीक्षा कर रहे हैं. भारतीय स्टार्ट-अप क्षेत्र के लिए भविष्य में सकारात्मक विकास, नवाचार और निवेश की संभावनाएं प्रचुर मात्रा में दिखाई देती हैं.‘
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि प्रारंभिक चरण वाले स्टार्ट-अप के लिए यह आवश्यक है कि नकदी की खपत को कम किया जाए और वर्तमान में चल रही अनिश्चितता के मद्देनजर संसाधनों का अनुकूलन किया जाए क्योंकि नई पूंजी को खोजना मुश्किल हो सकता है.
निवेश मंच ‘वी फाउंडर सर्कल’ के सीईओ और सह-संस्थापक नीरज त्यागी, के अनुसार, स्टार्ट-अप अब ‘टीम के पुनर्गठन, ब्रिज फंड को उगाहने, अपने स्वयं के वेतन में कटौती करने, भत्तों को खत्म करने और कई सारे सह-उत्पादों की अपनानें की कोशिश करने की तुलना में मुख्य व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित करने जैसे सुधार कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि यह प्रवृत्ति 2023 में भी जारी रहेगी.
बहरहाल, वह भी आशावादी ही हैं. वे कहते है, ‘इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि स्टार्ट-अप्स के लिए फंडिंग धीमी हो रही है, खासकर विकास के स्तर पर, लेकिन कुल मिलाकर फंडिंग रुकने वाली नहीं है. वास्तव में, वे स्टार्ट-अप्स जो लाभप्रदता को प्राथमिकता दे रहे थे, अब केंद्र में आ रहे हैं और निवेशकों के बीच पसंदीदा बने हुए हैं.
त्यागी का मानना है कि ‘फंडिंग विंटर’ के साल 2023 की पहली छमाही तक बने रहने की संभावना है, क्योंकि वैश्विक बाजार बढ़ती ब्याज दर के माहौल में खुद को और सुधारता दिख रहा है.
उन्होंने कहा, ‘स्टार्ट-अप फंडिंग के आने वाले समय में एकदम से रुक जाने की संभावना नहीं है, खासतौर से शुरुआती चरण के उपक्रमों के लिए. टीयर 2/3/4 से, नए ‘एंजेल इन्वेस्टर्स’ का एक बड़ा प्रवाह बढ़ रहा है और इसलिए ‘सीड टू एंजेल स्टेज’ फंडिंग में बहुत सारे निवेश देखने को मिलेगा और 2023 में समग्र फंडिंग में एंजल इन्वेस्टर्स का योगदान सबसे महत्वपूर्ण होगा.‘
(अनुवादः रामलाल खन्ना | संपादनः हिना फ़ातिमा)
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