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Friday, 3 May, 2024
होमदेशअर्थजगतआरबीआई के महज सोना बेचने की अफवाह से ही क्यों देश की अर्थव्यवस्था में मच गई अफरा-तफरी

आरबीआई के महज सोना बेचने की अफवाह से ही क्यों देश की अर्थव्यवस्था में मच गई अफरा-तफरी

अगस्त-अंत तक 618.2 टन सोने की हिस्सेदारी के साथ, आरबीआई सोने के भंडार के मामले में दुनिया के शीर्ष 10 केंद्रीय बैंकों में से एक है.

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नई दिल्ली : पिछले सप्ताह इकोनॉमिक टाइम्स ने जब यह रिपोर्ट किया कि भारतीय रिजर्व बैंक सोने को बेच सकता है, और अपने दावे के लिए केंद्रीय बैंक के साप्ताहिक सांख्यिकीय पूरक डाटा का इस्तेमाल किया तो यह चेतावनी के लिए था क्योंकि इस कदम को एक और संकेत के रूप में देखा गया कि भारत का आर्थिक संकट कितना गंभीर हो गया है. हालांकि, आरबीआई ने रिपोर्ट का जल्दी से खंडन किया था और सोने की हिस्सेदारी वैल्यूएशन में बदलाव के लिए वैल्यूएशन की फ्रिक्वेंसी में बदलाव को जिम्मेदार ठहराया था.

साप्ताहिक सांख्यिकीय अनुपूरक (डब्ल्यूएसएस) मूल्य में उतार-चढ़ाव साप्ताहिक से मासिक से आधार पर पुनर्मूल्यांकन की फ्रिक्वेंसी में दिखाए गए परिवर्तन के कारण होता है और यह सोने और लेन-देन की दरों के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों पर आधारित है.

डाटा से पता चलता है कि अगस्त के अंत तक आरबीआई अपने 618.2 टन सोने के साथ सोने के भंडार के मामले में दुनिया के शीर्ष 10 केंद्रीय बैंकों में शामिल हो गया है.

पिछले दो सालों से आरबीआई लगातार अपने सोने के भंडार को बढ़ा रहा है, विश्व वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का डाटा बताता है कि यह डॉलर से परे अपने भंडार में विविधता लाने के लिए सोने की होल्डिंग को जोड़ना चाहता है.

दि प्रिंट की नजर इस पर है कि क्यों सोने को बेचना अर्थव्यवस्था में तनाव का संकेत माना जाता है.

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भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की संरचना

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, भारत का स्वर्ण भंडार 26.86 बिलियन डॉलर या 1.91 लाख करोड़ रुपये था, जबकि कुल विदेशी मुद्रा भंडार 440.7 बिलियन डॉलर.

इसका मतलब है कि भारत की सोने की होल्डिंग कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 6.1 प्रतिशत है, जबकि लगभग 93 प्रतिशत भंडार अमेरिकी डॉलर और यूरो जैसी विभिन्न विदेशी मुद्राओं में में है.

क्यों सोने के भंडार का मूल्य बिना मात्रा में परिवर्तन के बदल सकता है

सोने की कीमतों में बदलाव और लेन-देन दरों में उतार-चढ़ाव के कारण, सोने के भंडार की मात्रा में भौतिक बदलाव के बिना भी स्वर्ण भंडार का मूल्य बदल सकता है.

मुद्राओं के प्रदर्शन के आधार पर भारतीय टोकरे में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां भी बदलती रहती हैं. इसे पुनर्मूल्यांकन प्रभाव कहा जाता है.

भारत ने कब शुरू किया था सोने का भंडारण बढ़ाना

भारत का स्वर्ण भंडार सब से कम 358 टन था जब डी सुब्बाराव ने रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद 2008 की सितम्बर में संभाला था. वैश्विक वित्त संकट के बाद, भारत ने अंतर्राष्ट्रिय मुद्रा कोष से 200 टन सोना 2009 में खरीदा.

भारत  ने 2018 में एक बार फिर सोना खरीदना शुरू किया. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का डाटा बताता है कि पिछले 18 महीनों में उसने 60 टन से ज्यादा सोना जोड़ा है.

पिछले महीने गोल्डहब नें प्रकाशित एक लेख में सुब्बाराव ने अपने कार्यकाल में इतनी मात्रा में सोने की खरीद का कारण बताया था. इस दौरान भारत का स्वर्ण भंडार 55 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ा था.

उनका कहना था, ‘सोना एक अच्छा लंबी अवधि के लिए किया गया निवेश है और एक विश्वसनीय भंडार है. ‘उनका साथ ही कहना था कि अगर नए उभरते बाज़ार डॉलर पर एक्सचेंज रेट की अस्थिरता के लिए निर्भर नहीं कर सकते, तो उनके पास बहुत कम उपाय बचते हैं, सिवाय इसके कि वे अपनी रक्षा के साधन स्वयं तैयार करें.’

उनका साथ ही कहना था, ‘अपने पास सोने का भंडार रखना अपनी रक्षा करने का मुख्य साधन है.’

क्यों केंद्रीय बैंक के द्वारा सोना बेचा जाना मंदी को दिखाता है

शुरुआती खबरों में आरबीआई द्वारा सोना बेचे जाने की बात देश के आर्थिक सेहत की चिंता की बात को लेकर शुरू हुई. पिछली बार आरबीआई ने 1991 में आई वित्तीय संकट के दौरान सोना गिरवी रखा था उस दौरान घटता विदेशी मुद्रा भंडार आवश्यक वस्तुओं के लिए भारत के आयात बिल को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं था.

उस दौरान भारत ने बैक ऑफ इंग्लैंड और यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड को 67 टन सोना गिरवी रखा था ताकि वह अपने 600 डॉलर मिलियन के बैलेंस ऑफ पेमेंट (भुगतान संतुलन) संकट से उबर पाए.

पिछले दिनों भारतीय अर्थव्यवस्था की डगमगाती स्थिति से निपटने और आरबीआई की बिमल जाना पैनल द्वारा 1.76 लाख करोड़ रुपए भारत सरकार को दिए जाने पर भी यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि केंद्रीय बैंक सोने की होल्डिंग की बिक्री के माध्यम से संसाधन जुटाने की कोशिश कर रहा है.

दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अपने पास जमा सोना बढ़ा रहे हैं

कई केंद्रीय बैंक अपने सोने के भंडार को बढ़ा रहे हैं. 2018 में, दुनिया भर के केंद्रीय बैंको नें 651 टन सोना खरीदा जो कि पिछले 50 सालों में ब्रेटन वुड्स सिस्टम खत्म होने के बाद से सबसे ज़्यादा है.

विश्व स्वर्ण परिषद का मानना है कि सोने का भंडार इसलिए बढ़ा है क्योंकि भूराजनीतिक तनाव बढ़े, कई राजनीतिक और आर्थिक कारक भी हैं और साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव आ रहे हैं.

परिषद ने सितम्बर 2019 में जारी अपनी एक रिपोर्ट– दि सेंट्रल बैंकर्स गाईड जो गोल्ड एस ए रिज़र्व असेट में लिखा है, ‘ सोना ही एक ऐसा असेट है जिसपर कोई राजनीतिक और श्रृण जोखिम नहीं है, न इसका प्रिंटिंग प्रेस से अवमूल्यन हो सकता है ना ही असाधारण मौद्रिक नीति के उपाय ला कर.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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