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Monday, 25 November, 2024
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किसानों की आय दोगुनी करने वाली ये ‘जीरो बजट खेती’ क्या है

दक्षिण भारत में जीरो बजट खेती लोकप्रिय है. अपने बजट भाषण में, सीतारमण ने कहा कि देश भर में प्राकृतिक खेती पद्धति को अपनाया जाना चाहिए.

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नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण की घोषणा करते हुए कहा कि सरकार अब ‘जीरो बजट फार्मिंग’ को बढ़ावा देगी. उन्होंने इसे ‘अपनी जड़ों की ओर लौटना’ से जोड़ा है. उनके अनुसार यह किसानों की आय दोगुनी करेगा. सीतारमण ने इस बात का जिक्र किया कि किस तरह जीरो बजट की नैचुरल फार्मिंग पहले से ही कुछ राज्यों में चली आ रही है. उन्होंने कहा कि इस मॉडल का अनुसरण पूरे देश को करना चाहिए. कुछ राज्य इस क्षेत्र में पहले से ही आगे हैं और अपने किसानों को इस दिशा में प्रशक्षित कर रहे हैं. दिप्रिंट ‘जीरो बजट नैचुरल फार्मिंग’ के बारे में एक नजर डाल रहा है.

कोई केमिकल नहीं, कोई निवेश नहीं

इस तरह की खेती में दो चीजों पर जोर ज्यादा होता है. संयुक्त राष्ट्र के फूड और एग्रीकल्चर विभाग के हिसाब से, ‘बजट का मतलब है क्रेडिट और खर्च. इस हिसाब से जीरो बजट का अर्थ है आपके निवेश पर कोई क्रेडिट नहीं, कोई खर्च नहीं.’

प्राकृतिक खेती का अर्थ होता है बिना केमिकल के केवल प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए खेती करना. जीरो बजट खेती को एक समाजिक आंदोलन के तहत भारत में सुभाष पालेकर ने शुरू किया था. यह कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और अन्य दक्षिण भारत राज्य में काफी प्रसिद्ध हो रहा है.


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क्या वाकई जीरो बजट है?

पालेकर के आलोचक ने कहा कि ‘जीरो बजट’ भ्रामक है. आधुनिक खेती को शुरू में बड़े पूंजी निवेश के अलावा महंगे बाहरी निवेशों के पूरे सेट की आवश्यकता होती है. इस संबंध में बहुत अधिक सार्वजनिक आलोचना का सामना करने के बाद, पालेकर को सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया कि यह शब्द भ्रामक था.
फेसबुक पर 16 अक्टूबर 2018 को जारी एक बयान में, पालेकर ने कहा कि कृषि पद्धति का नाम बदलकर ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती’ किया जाना चाहिए.


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क्या ये काम करता है?

इस कृषि पद्धति के समर्थकों में से एक सेवानिवृत्त सिविल सेवक विजय कुमार ने नीति आयोग को बताया कि जीरो-बजट खेती को ‘खेती की लागत कम करने, जोखिमों को कम करने, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से बचाने’ के लिए बढ़ावा दिया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन और अजीम प्रेमजी जैसे परोपकारी ने इस कृषि पद्धति का समर्थन किया है. आंध्र प्रदेश में बिना लाभ के पर्यावरण सहयोग समूह द्वारा आयोजित ‘जीरो-बजट प्राकृतिक खेती’ के अक्टूबर 2018 के आकलन ने सुझाव दिया कि इसकी सफलता के बारे में सबूत अभी भी मिले-जुले थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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