scorecardresearch
Friday, 26 April, 2024
होमदेशअर्थजगतडेटा लोकलाइजेशन क्या है और भारत में मास्टरकार्ड, एमेक्स, डाइनर्स क्लब पर क्यों लगाई गई पाबंदी

डेटा लोकलाइजेशन क्या है और भारत में मास्टरकार्ड, एमेक्स, डाइनर्स क्लब पर क्यों लगाई गई पाबंदी

विदेशी कार्ड भुगतान नेटवर्क से जुड़ी कंपनियां डेटा लोकलाइजेशन मानदंडों को पूरा करने में नाकाम रहने के बाद अब भारत में न तो नए ग्राहकों का पंजीकरण कर सकती है और न ही नए कार्ड जारी कर सकती हैं. दिप्रिंट इस मामले को विस्तार से समझा रहा है.

Text Size:

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने डेटा लोकलाइजेशन संबंधी मानदंडों, जिन्हें इस नियामक की तरफ से अप्रैल 2018 में जारी किया गया था, को पूरा करने में नाकाम रहने पर मास्टरकार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस और डाइनर्स क्लब की तरफ से भारत में नए कार्ड जारी किए जाने पर पाबंदी लगा दी है.

आरबीआई के नियमों के मुताबिक, तीनों विदेशी कार्ड भुगतान नेटवर्क कंपनियां अब न तो नए ग्राहकों को साइन अप कर सकती हैं या न ही नए कार्ड जारी कर सकती हैं.

इससे प्रभावी तौर पर भारतीय बाजार में केवल दो कार्ड जारीकर्ता बचे हैं- वीजा और घरेलू कंपनी रुपे.

यहां दिप्रिंट आपको बता रहा है कि डेटा लोकलाइजेशन मानदंड क्या होते हैं, भारत उन पर क्यों जोर दे रहा है और भारतीय पेमेंट इकोसिस्टम के लिए यह क्या मायने रखता है.


यह भी पढ़ें: मोदी सरकार की कई नाकामियां हैं लेकिन अब तक एक भी मुद्दे को नहीं भुना सकी कांग्रेस


आरबीआई के डेटा लोकलाइजेशन मानदंड क्या हैं?

आरबीआई की तरफ से 2018 में डेटा लोकलाइजेशन निर्धारित किए गए थे. इसके लिए सभी पेमेंट सिस्टम ऑपरेटर के लिए सारा डेटा भारत में संग्रहित किए जाने की आवश्यकता थी. विशेष रूप से, उन्हें छह महीने की अवधि में हुए संपूर्ण लेन-देन का ब्योरा और भारत में कलेक्ट और प्रोसेस की गई सारी जानकारी संग्रहित करने को कहा गया था. इसमें ग्राहक का नाम, पता, मोबाइल नंबर, आधार और पैन नंबर और भुगतान से संबंधित अन्य डेटा जैसी जानकारियां शामिल हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

हालांकि, 2019 में इसमें थोड़ी छूट देते हुए आरबीआई ने एक एफएक्यू सूची के माध्यम से ऐसे डेटा को विदेशों में प्रोसेस करने की अनुमति दे दी बशर्ते इसे स्थानीय रूप से स्टोर किया गया हो. इसके अलावा, आरबीआई ने यह भी अनिवार्य कर दिया था कि विदेशों में प्रोसेस किए गए डेटा को 24 घंटे के भीतर विदेशी सिस्टम से हटाना होगा.

इससे वीजा, मास्टरकार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस और डाइनर्स क्लब जैसे सभी विदेशी कार्ड जारीकर्ता प्रभावित हुए.


यह भी पढ़ें: मोदी-शाह की भाजपा में मजबूत जनाधार वाले नेता परेशान क्यों हैं


आरबीआई ने मास्टरकार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस और डाइनर्स क्लब पर पाबंदी क्यों लगाई?

अधिकांश पेमेंट ऑपरेटर्स ने डेटा लोकलाइजेशन मानदंडों का विरोध किया और छूट के लिए वित्त मंत्रालय और आरबीआई के साथ लॉबिंग भी की. उनका तर्क था कि स्थानीय स्तर पर डेटा स्टोर करने के लिए जरूरी डिजिटल बुनियादी ढांचा तैयार करने पर इन कंपनियों को काफी खर्च करना होगा.

हालांकि, नियामक अपने रुख पर अडिग रहा और सभी पेमेंट सिस्टम ऑपरेटर्स से अक्टूबर 2018 की समयसीमा का अनिवार्य तौर पर पालन करने को कहा.

दो अलग-अलग आदेशों के जरिये आरबीआई ने कंपनियों को ‘पर्याप्त समय’ देने के बावजूद अप्रैल 2018 के मानदंडों का पालन करने में नाकाम रहने के कारण मास्टरकार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस और डाइनर्स क्लब को नए ग्राहकों को पंजीकृत करने और नए कार्ड जारी करने से रोक दिया है. हालांकि, आरबीआई ने यह स्पष्ट किया कि यह आदेश मौजूदा ग्राहकों पर कोई असर नहीं डालेगा.


यह भी पढ़ें: ‘मेरा लोकतंत्र में विश्वास और यह अपराध नहीं होना चाहिए’- म्यांमार के शरणार्थियों को जुंटा शासन के पतन की उम्मीद


भारतीय पेमेंट इकोसिस्टम के लिए इसका क्या मायने हैं

मास्टरकार्ड और वीजा भारतीय बाजार में काम कर रही पेमेंट सिस्टम से जुड़ी दो सबसे बड़ी वैश्विक कंपनियां हैं. और डेबिट और क्रेडिट कार्ड के मार्केट में इसकी व्यापक हिस्सेदारी है. बाजार में वीजा की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है, वहीं मास्टरकार्ड की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत के करीब है.

बैंकिंग उद्योग से जुड़े सूत्रों ने पुष्टि की कि वीजा आरबीआई के डेटा लोकलाइजेशन मानदंडों के अनुरूप काम कर रही है. इसका मतलब यह है कि मास्टरकार्ड पर प्रतिबंध लगने के बाद बैंक अपने कार्ड जारी करने के लिए वीजा और रुपे की ओर रुख करेंगे.

इस बीच, प्रतिबंधित कंपनियां पाबंदियों से कुछ छूट पाने के लिए नियामक यानी आरबीआई को मनाने की कोशिशें कर सकती हैं.

क्या डेटा लोकलाइजेशन केवल पेमेंट स्पेस तक ही सीमित है?

डेटा संरक्षण पर जस्टिस श्रीकृष्ण समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019 में डेटा लोकलाइजेशन के उपाय किए जाने के प्रस्ताव तो हैं लेकिन वे बहुत कड़े नहीं हैं. बिल डेटा को तब तक प्रभावी रूप से देश की सीमाओं से परे ले जाने की अनुमति देता है जब तक कि उस डेटा को संवेदनशील या महत्वपूर्ण नहीं करार दिया जाता.

चूंकि विधेयक पारित होना और नियमों को अधिसूचित किया जाना अभी बाकी है, संवेदनशील और महत्वपूर्ण डेटा क्या होगा, इसे अभी तक ठीक से परिभाषित नहीं किया गया है.


यह भी पढ़ें: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा- महंगाई, पेगासस और किसानों के मुद्दों पर समझौता नहीं करना चाहते हैं


क्यों डेटा लोकलाइजेशन सिर्फ भारत की समस्या नहीं है

विश्व स्तर पर डेटा के मुक्त प्रवाह को लेकर तमाम चिंताएं जताई जाती रही हैं. अप्रैल 2021 के कार्नेगी इंडिया के पेपर में डेटा के मुक्त प्रवाह को लेकर विभिन्न देशों की तरफ से चार प्रमुख चिंताएं रेखांकित की गईं थी- विदेशी सर्वर पर डेटा स्टोर होना घरेलू राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए डेटा एक्सेस में बाधा डालता है, विदेशी फर्मों की तरफ से डेटा के इस्तेमाल के कारण आर्थिक लाभ घटना, विदेशी निगरानी को लेकर आशंकाएं और व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग करके गोपनीयता के अधिकारों का उल्लंघन.

पेपर तैयार करने वालों ने यह भी बताया कि कई देशों ने डेटा लोकलाइजेशन की व्यवस्था की है लेकिन उनका स्तर अलग-अलग है.

उन्होंने बताया कि उदाहरण के तौर पर, चीन में अहम माने जाने वाले इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े सारे महत्वपूर्ण डेटा के लिए लोकलाइजेशन अनिवार्य है. रूस ने अपने नागरिकों का सारा व्यक्तिगत डेटा लोकल स्तर पर स्टोर करने का मानक निर्धारित किया है. वहीं, अमेरिका में रक्षा संबंधी सारा डेटा स्थानीय स्तर पर स्टोर करना जरूरी है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कोविड और महंगाई जैसे मुद्दों के बीच जनता को पेगासस के बारे में समझाना मुश्किल: शशि थरूर


 

share & View comments