नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) प्रौद्योगिकी की प्रोग्रामिंग में भारतीय भाषाओं के इस्तेमाल से अगली पीढ़ी प्रौद्योगिकी पूर्वाग्रहों से काफी हद तक मुक्त होगी। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने सोमवार को यह उम्मीद जताई।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में सचिव एस कृष्णन ने उद्योग मंडल फिक्की के एक कार्यक्रम में कहा कि भारत में बड़े पैमाने पर अपनाने के लिए भाषाओं के इर्दगिर्द एआई के लिए मूलभूत मॉडल विकसित किए जाते हैं तो यह देश के लिए नेतृत्व के अवसर प्रदान करेगा।
फिलहाल सरकार ‘भाषिनी’ कार्यक्रम के तहत विकसित डिजिटल अनुवाद टूल का इस्तेमाल करते हुए देश भर के नागरिकों को एक-दूसरे से संवाद करने में सक्षम बनाने के लिए एआई तकनीक पर काम कर रही है।
सचिव ने कहा कि मौजूदा दौर में उभरती प्रौद्योगिकियां, चाहे वे भाषा के रूप में हों या अन्य पहलुओं के रूप में हों, तेजी से महत्वपूर्ण होती जा रही हैं।
उन्होंने कहा, ‘प्रौद्योगिकी वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े अवसर का प्रतिनिधित्व करती हैं। भारतीय भाषाओं में जितनी अधिक सामग्री उपलब्ध होती है और जितनी अधिक भारतीय भाषाएं विशाल भाषा मॉडल (एलएलएम) का रुख करती हैं, उतना ही डेटा के इस्तेमाल से जुड़े अंतर्निहित पूर्वाग्रह कम होते जाते हैं। कुछ खास खंडों या कुछ खास भाषाओं के इस्तेमाल से ये पूर्वाग्रह बन जाते हैं।’
एआई प्रौद्योगिकी पर आधारित भाषाई अनुवाद एप्लिकेशन का विकास काफी हद तक अंग्रेजी को आधार बनाकर किया गया है। इसकी वजह से ये अनुवाद एप्लिकेशन अक्सर दूसरी भाषाओं में सटीक सामग्री दे पाने में नाकाम रहते हैं।
कृष्णन ने कहा, ‘हालांकि यह (अंग्रेजी) कुछ हद तक कारोबार की भाषा हो सकती है लेकिन यदि आपको इसे वास्तव में लोकतांत्रिक बनाने की जरूरत है, यदि आप वास्तव में अधिक भागीदारी चाहते हैं तो यह एकदम जरूरी है कि हम स्थानीय भाषाओं में भी अपनी पहुंच रखें।”
उन्होंने कहा कि अपने लोगों के लिए, विकास को लोकतांत्रिक बनाने के लिए ऐसा करना जरूरी है। उन्होंने इसे ऐतिहासिक अवसर बताते हुए कहा कि इससे चूकना नहीं चाहिए।
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प्रेम रमण
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