यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस – भारत के तेज और इंटरऑपरेबल रिटेल पेमेंट सिस्टम – ने इस साल अक्टूबर में एक और रिकॉर्ड बनाया, जब इसने 12.11 लाख करोड़ रुपए के 7.3 अरब ट्रांजैक्शंस दर्ज किए. पिछले साल के मुकाबले वॉल्यूम में करीब 85 प्रतिशत और वैल्यू में 67.85 प्रतिशत की ग्रोथ रेट के साथ, यूपीआई डिजिटल पेमेंट में देश की उस छलांग की अगुवाई कर रहा है जिसके बारे में काफी लिखा जा चुका है. इसलिए सवाल उठता है: भारत में सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) की क्या भूमिका है?
हाल ही में जारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) का कॉन्सेप्ट नोट इस सवाल का जवाब देने की कोशिश है. एक रिटेल सीबीडीसी, या ई-रुपी, कॉमर्शियल बैंकिंग सिस्टम के बाहर पेमेंट का एक अतिरिक्त विकल्प बन सकता है, और कॉमर्शियल बैंकों के माध्यम से चल रहे पेमेंट सिस्टम में लिक्विडिटी और क्रेडिट जोखिम के बहुत ज्यादा बढ़ने को नियंत्रित कर सकता है. ये एक महत्वपूर्ण तर्क है. अभी डिजिटल पेमेंट सिस्टम में यूपीआई का दबदबा है, लेकिन यूपीआई सिस्टम के थर्ड- पार्टी एप्लिकेशन प्रोवाइडरों से मार्केट कंसन्ट्रेशन रिस्क भी है, यानी कुल बाजार के बहुत बड़े हिस्से का कुछ एक कंपनियों के हाथ में जाने का खतरा.
इस साल जून तक, वॉलमार्ट के फोनपे के पास बाजार की 47 फीसदी और गूगल के जीपे के पास 35 फीसदी हिस्सेदारी थी. इसलिए माना जा रहा है कि कंज्यूमरों, यूपीआई या थर्ड- पार्टी एप्लिकेशन प्रोवाइडरों की सीधी पहुंच अगर केंद्रीय बैंक के पैसे तक होगी तो इससे ऐसे खतरे कम किए जा सकेंगे.
सीबीडीसी की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है उसे अपनाया जाना
माना जा रहा है कि ई-रुपी का एक और बड़ा फायदा होगा रिजर्व बैंक के एक सुरक्षित इंस्ट्रूमेंट तक सीधी पहुंच, क्योंकि इसमें सरकारी गारंटी होगी. हालांकि, किसी यूजर के नजरिये से देखें तो भले ही सरकारी गांरटी आकर्षक हो सकती है, लेकिन नकद भुगतान में नाम का गुप्त रहना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, भले ही नकद ट्रांजैक्शन पूरी तरह कानून के दायरे में हों. यही नहीं, प्राइवेट डिजिटल पेमेंट तरीकों में भी अंतिम निपटारा केंद्रीय बैंक के ही माध्यम से और उसके वित्तीय नियम- कायदों के तहत होता है और इसलिए ये भी तुलनात्मक रूप से सुरक्षित हैं.
भारत में यूपीआई – संचालित डिजिटल पेमेंट की तेज ग्रोथ और नकद के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल (हालांकि इसका रुझान नीचे की तरफ है) को देखते हुए ई-रुपी को खुदरा इस्तेमाल के लिए अपनी जरूरत साबित करने में मेहनत करनी पड़ सकती है. ये बात महत्वपूर्ण है क्योंकि सीबीडीसी की सफलता के लिए जरूरी है कि उसे व्यापक रूप से अपनाया जाए और तभी उसे लाने के लिए सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग को सही ठहराया जा सकेगा.
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लेकिन कॉन्सेप्ट नोट में इस बात की झलकियां हैं कि कौन से तरीके होंगे जो लोगों को प्रेरित करेंगे कि वे ई-रुपी अपनाएं. नोट में ‘सीबीडीसी टेक स्टैक’ (सीबीडीसी के लिए जरूरी टेक्नोलॉजीज का कॉम्बिनेशन) बनाने के लिए कई स्तरों वाले (संभावित रूप से डिस्ट्रीब्यूटेड और सेंट्रलाइज्ड लेजर्स दोनों के साथ) और मॉड्यूलर (कई छोटे मॉड्यूलों में बदलना) एप्रोच का सुझाव दिया गया है. इसके लिए एपीआई (एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस), डिजिटल पहचान, दस्तखत, और बाकी चीजों का इस्तेमाल किया जाएगा. इनमें से कई चीजें जैसे आधार, ई-हस्ताक्षर, यूपीआई पहले से मौजूद हैं. साथ ही, सुझाव दिया गया है कि ई-रुपी का इस्तेमाल ई-कॉमर्स में नकद के विकल्प के रूप में किया जाए, जिसमें ओएनडीसी (ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स) के रूप में भारत एक और सरकार- संचालित इनोवेशन पर काम कर रहा है.
बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म (जिनमें प्रवेश के लिए शर्तें होती हैं) के विपरीत, ओएनडीसी में एक खुले, इंटरऑपरेबल, और सभी को शामिल करने वाले नेटवर्क का प्रस्ताव है जो एक डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर होगा. इस तरह ई-रुपी ऑनलाइन डिजिटल पेमेंट की लहर पर सवार होकर देश में विकसित हो रहे एक बड़े ‘डिजिटल स्टैक’ या डिजिटल इकोसिस्टम का एक अहम हिस्सा बन सकेगा.
ई-रुपी को अपनाने के लिए बढ़ावा देने वाली नीतियां भी महत्वपूर्ण होंगी. और उतना ही जरूरी होगा यह समझना कि क्या वे जोर-जबर्दस्ती से लागू होंगी. उदाहरण के लिए, जहां यूपीआई में लेन-देन के लिए ग्राहकों या कारोबारियों से फीस चार्ज करना प्रतिबंधित है, वहीं इसका औचित्य और यूपीआई के ग्रोथ के लिए ऐसे उपायों से मिलने वाले प्रोत्साहन का सबूत अभी भी स्पष्ट नहीं है.
एक स्वागत योग्य कदम, लेकिन चिंताएं बरकरार
आरबीआई का कॉन्सेप्ट नोट सीबीडीसी को लेकर केंद्रीय बैंक की सोच के बारे में पहली व्यापक अभिव्यक्ति है. नोट में कुछ अहम फैसलों की तरफ इशारा किया गया है. टोकन- आधारित रिटेल ई-रुपी और खाता- आधारित होलसेल ई-रुपी (ई-रुपी- डब्ल्यू) दोनों के बारे में विचार किया जाएगा. साथ ही, फाइनेंशियल सिस्टम में उथल- पुथल को कम रखने के मकसद से ई-रुपी जारी करने के लिए एक बहु-स्तरीय ढांचे पर विचार होगा. दूसरी भुगतान प्रणालियों के साथ संबंध और साइबर सिक्योरिटी जैसे बाकी पहलुओं पर नोट में उन सिद्धांतों को स्पष्ट किया गया है जो आगे उठाए जाने वाले कदमों को दिशा देंगे.
नोट में ई-रुपी को लॉन्च करने के लिए पुनरावृत्तीय दृष्टिकोण (शुरुआत के अनुभवों का उपयोग कर बाद के कदम उठाना) की परिकल्पना की गई है, जिसकी शुरुआत इस्तेमाल के खास मामलों में आसान मॉडलों के पायलट प्रोजेक्ट के साथ होगी. इस महीने, आरबीआई ने सरकारी प्रतिभूतियों में सेकेंडरी मार्केट ट्रांजैक्शंस के सेटलमेंट के लिए होलसेल सेगमेंट में एक ई-रुपी- डब्ल्यू का पहला पायलट लॉन्च किया. रिटेल सेगमेंट में भी एक पायलट जल्दी ही लाया जाएगा. ऐसी उम्मीद है कि इन पायलट प्रोजेक्ट से, आगे चलकर, ई-रुपी सिस्टम की प्रक्रिया और डिजाइन में सुधार से जुड़ी ज्यादा जानकारी मिलेगी. एक संस्थागत डिजाइन, और कुछ उदाहरणों के साथ बदलाव के रूप में ये नजरिया समझदारी भरा है.
हालांकि, कई ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जिनमें निकट अवधि में अधिक वैचारिक स्पष्टता या अभिव्यक्ति की जरूरत है. उदाहरण के लिए, ऐसा लगता है कि नोट में ई-रुपी जारी करने के लिए इनडायरेक्ट, हाइब्रिड और इंटरमीडिएट आर्किटेक्चर जैसे शब्दों का इस्तेमाल एक ही अर्थ में बदल- बदलकर किया गया है. इनडायरेक्ट, या सिंथेटिक, मॉडल केंद्रीय बैंक और निजी धन के बीच मौजूदा दो स्तरों वाले मौद्रिक ढांचे की नकल है.
कुछ लोगों के मुताबिक, इसे वास्तविक सीबीडीसी नहीं माना जा सकता. इसके अलावा डिजिटल करेंसीज सूचनाओं का भंडार भी होती हैं. इसलिए ई-रुपी में नाम के गुप्त रहने का स्तर चाहे जो हो, व्यक्तिगत और गैर- व्यक्तिगत सूचना के डिजिटल रिकॉर्ड को डेटा और प्राइवेसी से जुड़ी पर्याप्त सुरक्षा की जरूरत होगी. इन विषयों पर किसी विस्तृत कानून की कमी ई-रुपी की व्यापक स्वीकार्यता के लिए बड़ी बाधा हो सकती है.
सीमा पार प्रभाव
एक सीबीडीसी को लाने का एक बड़ा आकर्षण है इसके सीमा- पार इस्तेमाल की संभावना, खास तौर पर अंतरराष्ट्रीय भुगतान और लेन-देन से जुड़ी ऊंची लागत को देखते हुए. दूसरी वजह है ‘डिजिटल डॉलराइजेशन’ जैसे संभावित असर यानी किसी मजबूत या अधिक आकर्षक विदेशी सीबीडीसी की तरफ लोगों का झुकाव (जैसे, इस्तेमाल करने में आसानी या ज्यादा कमीशन जैसी वजहों से). इसका खतरा तब ज्यादा होगा, जब सीमा-पार ट्रांजैक्शंस के नियमों में हर तरफ स्पष्टता नहीं होगी.
डॉलर के दबदबे वाले फाइनेंशियल सिस्टम पर आधारित अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध भी प्रोत्साहन दे सकते हैं क्योंकि कई देश वैकल्पिक वित्तीय रास्ते तलाश रहे हैं. कई देशों ने सीमा- पार सीबीडीसी प्रोजेक्ट भी लॉन्च किए हैं. ये जानना जरूरी है कि, सीमा- पार सीबीडीसी पर आधारित एमब्रिज प्रोजेक्ट के ताजा पायलट ने चार देशों के बीच 2.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर से ज्यादा की वैल्यू वाले 160 से ज्यादा पेमेंट और विदेशी मुद्रा में लेन-देन की सुविधा देकर नया इतिहास रचा है.
ये प्रोजेक्ट बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स, दि हॉन्ग कॉन्ग मॉनेटरी अथॉरिटी, और थाइलैंड, चीन और यूएई के केंद्रीय बैंकों के बीच सहयोग है. इन सब से बिखराव की संभावना बढ़ती दिखती है और साथ ही अलग-अलग वित्तीय प्रणालियों के बीच आपसी सूचनाएं साझा और इस्तेमाल करने की जरूरत भी रेखांकित होती है.
ई-रुपी पायलट के लॉन्च के साथ ही, भारत उन देशों के एक छोटे समूह में आ गया है जहां सीबीडीसी के पायलट चलाए जा रहे हैं. जी20 के 19 देशों में इसकी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. जी20 की आने वाली बैठक की अध्यक्षता भारत के पास है, और ये हमारे देश के लिए सीमा- पार सीबीडीसी के लिए तकनीकी, कानूनी और सरकारी ढांचे को तैयार करने की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों का नेतृत्व करने का अहम मौका है.
(प्रियदर्शिनी डी. कार्नेगी इंडिया के टेक्नोलॉजी और सोसाइटी प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं. ये उनके निजी विचार हैं.
यह लेख प्रौद्योगिकी की भू-राजनीति की पड़ताल करने वाली सीरीज का हिस्सा है, जो कार्नेगी इंडिया के 7वें ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट की थीम है. विदेश मंत्रालय के साथ संयुक्त मेजबानी में ये समिट 29 नवंबर से 1 दिसंबर तक होगी. प्रिंट इसमें डिजिटल सहयोगी है. रजिस्टर करने के लिए यहां क्लिक करें. सभी लेख यहां पढ़ें.)
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