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Thursday, 25 April, 2024
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ट्रांसफर प्राइसिंग क्या है, क्यों आईटी विभाग BBC में इसकी जांच कर रहा है

ट्रांसफर प्राइसिंग एक नियमित एकाउंटिंग टूल है. अक्सर कंपनियां इसमें हेर-फेर कर अपने टैक्स को बचाने का प्रयास करती हैं.

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नई दिल्ली: आयकर विभाग ने शुक्रवार को ‘एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंपनी’ के दिल्ली और मुंबई कार्यालयों में किए गए सर्वे के संबंध में एक बयान जारी किया. इसने कहा कि कंपनी की आय और उसके भारत के परिचालन से होने वाले मुनाफे की रिपोर्टिंग में कई वित्तीय अनियमितताएं पाई गई हैं.

विभाग की ओर से गुरुवार देर शाम बीबीसी के कार्यालयों में तीन दिन तक किए गए सर्वे करने के कुछ घंटे बाद यह बयान जारी किया गया था.

कथित विसंगतियों में ट्रांसफर प्राइसिंग और आर्म्स लेंथ प्राइस के संबंध में हल्की अनियमितताएं पाई गईं थीं.

बयान में कहा गया है, ‘‘इसके अलावा सर्वे में ट्रांसफर प्राइसिंग डॉक्यूमेंटेशन के संबंध में कई विसंगतियां सामने आई हैं. इस तरह की विसंगतियां प्रासंगिक कार्य, परिसंपत्ति और जोखिम (एफएआर) के विश्लेषण, कंपेरबल्स का गलत इस्तेमाल जो सही आर्म्स लेंथ प्राइस (एएलपी) निर्धारित करने के लिए लागू होते हैं और अपर्याप्त राजस्व विभाजन, आदि से संबंधित हैं.’’

व्यापक रूप से कथित अनियमितताओं को समझना सरल है, लेकिन ट्रांसफर प्राइसिंग, एफएआर और एएलपी की अवधारणाओं के बारे में पहले ज्यादा कुछ सुनने में नहीं आया है. चलिए इन्हें समझते हैं-

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ट्रांसफर प्राइसिंग क्या है?

ट्रांसफर प्राइसिंग मूल रूप से एक एकाउंटिंग टूल है, जो एक ही कंपनी की सहायक कंपनियों को एक दूसरे के साथ लेन-देन करने में सक्षम बनाता है. एक उदाहरण के रूप में, मान लें कि कंपनी A की दो सहायक कंपनियां हैं, फर्म A और फर्म B. अब फर्म A और फर्म B अपने आप में अलग-अलग कंपनियां हैं और इसलिए एक दूसरे के बीच संसाधनों या सेवाओं को मुफ्त में ट्रांसफर नहीं कर सकती हैं.

ट्रांसफर प्राइसिंग वो तरीका है जिसके द्वारा वे एक दूसरे के साथ लेन-देन करते समय इन संसाधनों की ‘कीमत’ लगाते हैं. आमतौर पर ऐसे हस्तांतरणों की कीमत बाज़ार दर पर होनी चाहिए.

एफएआर विश्लेषण केवल यह निर्धारित करने की विधि है कि ट्रांसफर प्राइसिंग के लिए जिस किसी विशेष वस्तु या सेवा का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसका मार्किट प्राइस क्या है.

इसी तरह आर्म्स लैंथ एक अवधारणा है जो मूल्य सहायक कंपनियां एक दूसरे को चार्ज करती हैं. इसका मूल रूप से मतलब है कि एक सहायक कंपनी को दूसरी सहायक कंपनी से उतनी ही कीमत वसूलनी चाहिए जितनी वह एक असंबद्ध कंपनी से वसूल करेगी.

बाकी सब एक मानक अभ्यास है और इन्हें लेकर कोई समस्या नहीं उठती है. हालांकि, इस बात की संभावना है कि ट्रांसफर प्राइसिंग का इस्तेमाल टैक्स से बचने के लिए किया जा सकता है.

मान लीजिए कि फर्म A अपनी सेवाओं के लिए फर्म B से बाज़ार मूल्य से कम शुल्क लेती है. ऐसे में फर्म A की आय कम होती है क्योंकि उसे अपनी सेवाओं के लिए कम पैसा मिल रहा है, लेकिन फर्म B को अधिक लाभ होता है क्योंकि वो अपने इनपुट के लिए कम भुगतान कर रही है. मूल कंपनी, कंपनी A पर इसका समग्र प्रभाव समान होगा.

अब, ऐसी स्थिति पर विचार करें जहां फर्म A उच्च कर वाले देश में है और फर्म B कम कर वाले देश में है. अपनी सेवाओं के लिए कम शुल्क लेकर, फर्म ए ने यह सुनिश्चित कर लिया कि वह कम कर का भुगतान करेगी, क्योंकि उसका राजस्व कम है, जबकि फर्म B भी अपने उच्च लाभ पर कम कर का भुगतान करती है क्योंकि कंपनी जहां स्थित हैं वहां कर की दरें कम हैं. कुल मिलाकर,मूल कंपनी कम करों का भुगतान करने वाले लेन-देन से बाहर आ जाती है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था.

आई-टी विभाग के बयान में कहा गया, ‘‘सर्वे के दौरान विभाग ने संगठन के संचालन से संबंधित कई साक्ष्य इकट्ठा किए, जो इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि कुछ रेमिटेंस पर कर का भुगतान नहीं किया गया है. इन्हें समूह की विदेशी संस्थाओं ने भारत में आय के रूप में प्रकट नहीं किया है.’’

(अनुवाद: संघप्रिया | संपादन: फाल्गुनी शर्मा

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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