scorecardresearch
Monday, 4 November, 2024
होमदेशअर्थजगतडेटा से पता चलता है कि भारत-चीन व्यापार घाटा बढ़ रहा है, भारतीय निर्यात साल में पहली बार गिरा

डेटा से पता चलता है कि भारत-चीन व्यापार घाटा बढ़ रहा है, भारतीय निर्यात साल में पहली बार गिरा

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल और मई में चीन को भारतीय निर्यात में 31% की गिरावट आई है, जबकि आयात 12.75% बढ़ा है. पिछले वर्ष की तुलना में व्यापार कुल मिलाकर सिर्फ 2% बढ़ा है.

Text Size:

नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच व्यापार असंतुलन को लेकर कुछ बुरी खबरें आ रही हैं, और इस मामले में स्थिति इस साल और भी खराब होने के आसार हैं.

यदि इस वित्तीय वर्ष के पहले दो महीनों के आंकड़ों को संकेत मानें तो न केवल व्यापार घाटा फिर बढ़ने की उम्मीद है, बल्कि चीन को भारत की तरफ से निर्यात भी कुछ सालों में पहली बार गिर सकता है. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल और मई में चीन को भारत की तरफ से निर्यात में 31 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि आयात 12.75 प्रतिशत बढ़ा है.

मंत्रालय की वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले सात वर्षों में भारत की तरफ से चीन को निर्यात में कभी गिरावट नहीं आई, सिवाये 2019-20 को छोड़कर, जब महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर व्यापार पर प्रतिकूल असर पड़ा था.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘निर्यात में गिरावट का एक प्रमुख कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की चिंताओं के कारण वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में गिरावट है.’

2021-22 में भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा पिछले वर्ष के 44 बिलियन डॉलर से बढ़कर 72.9 बिलियन डॉलर हो गया. कुल मिलाकर, उसी वर्ष भारत का व्यापारिक घाटा 192.24 बिलियन डॉलर था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 87 प्रतिशत अधिक है.

व्यापार घाटा तब होता है जब किसी देश की वस्तुओं और सेवाओं का आयात एक निश्चित समयावधि में उसके निर्यात से अधिक हो जाता है. चालू वर्ष में मई तक चीन के साथ व्यापार घाटा 12.32 अरब डॉलर पहुंच चुका है.

कुल मिलाकर, दोनों देशों के बीच व्यापार पिछले वर्ष की तुलना में अप्रैल और मई में मात्र 2 प्रतिशत बढ़ा है. वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से जून के लिए क्षेत्रवार डेटा अभी अपलोड नहीं किया गया है.

सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर विश्वजीत धर ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि कोविड को फैलने से रोकने के लिए घरेलू स्तर पर लॉकडाउन के कारण चीन अभी जिन बाधाओं का सामना कर रहा है, वह व्यापार की स्थिति में नजर आ रहा है.

धर का यह भी कहना है कि उन्हें लगता है कि चीन के साथ व्यापार घाटा केवल बढ़ने ही वाला है ‘क्योंकि भारत के निर्यात में कोई विस्तार नहीं हो रहा है.’


यह भी पढ़ें: विपक्ष तो घुटने टेक चुका मगर खुद भाजपा के अंदर खलबली मची है


‘भारत को निर्यात-प्रतिस्पर्धी उद्योगों की जरूरत’

चीन को भारत की तरफ से निर्यात की जाने वाली कुछ प्रमुख वस्तुओं में पेट्रोलियम उत्पाद, लौह अयस्क, समुद्री उत्पाद, जैविक रसायन, गैर-बासमती चावल, मसाले, अरंडी का तेल और तांबे के उत्पाद आदि शामिल हैं.

दूसरी ओर, जैसा ऊपर उद्धृत सरकारी अधिकारी ने कहा, चीन से भारत का आयात बड़े पैमाने पर कैपिटल और इंटरमीडिएट गुड्स पर केंद्रित है. इनमें इलेक्ट्रॉनिक घटक, कंप्यूटर हार्डवेयर, दूरसंचार उपकरण, औद्योगिक मशीनरी और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं.

कोविड लॉकडाउन के कारण चीन के विनिर्माण क्षेत्र में मंदी के कारण लौह अयस्क और तांबे के निर्यात में तेजी से गिरावट आई है. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत से मांस और कपास के निर्यात में भी गिरावट आई है.

दूसरी तरफ, भारत कई औद्योगिक उत्पादों में उपयोग होने वाले तमाम रसायनों के लिए चीन पर निर्भर रहा है. सरकारी अधिकारी ने बताया कि भारत के फार्मास्युटिकल उत्पादों के लिए चीन पर ‘व्यापक निर्भरता’ भी थी, जिन्हें अंततः निर्यात होने वाले उत्पादों के लिए कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है.

धर ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि असंतुलन में जल्द ही कोई सुधार होगा.

उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि चीनी अर्थव्यवस्था में सुधार के बाद भी ट्रेंड में कोई बदलाव आएगा क्योंकि 2021 के आंकड़े बताते हैं कि चीन कोविड से उतना प्रभावित नहीं था. यदि आप सभी मैक्रो इंडीकेटर देखें, और फिर यदि आप उन आंकड़ों को व्यापार डेटा के साथ जोड़कर देखें तो पाएंगे कि चीन के साथ व्यापार घाटा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है.’

धर ने कहा कि चीन के साथ अपने व्यापार घाटा कम करने के लिए भारत के पास एकमात्र उपाय निर्यात-प्रतिस्पर्धी उद्योग स्थापित करना है.

उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब सिर्फ मेक इन इंडिया नहीं है, बल्कि मेक इन इंडिया को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना होगा. और यह केवल बड़े पैमाने पर ही संभव है. मुझे नहीं लगता कि भारत ने अभी तक इसे अपनाया है.’

फरवरी से भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अपना सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 20 अरब डॉलर तक बढ़ा सकता है, अगर वह उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं का लाभ उठाकर चीन से आयात पर अपनी निर्भरता 50 प्रतिशत तक घटा दे. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत के कुल व्यापारिक आयात में चीन की हिस्सेदारी लगातार बढ़कर 16.5 प्रतिशत 2021-22 हो गई है.

बदलते भागीदार

पिछले एक दशक में, एक-दो साल छोड़ दें तो चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है. पिछले वित्तीय वर्ष में यह दर्जा अमेरिका के खाते में चला गया, जो चीन के लिए काफी बेचैनी का विषय रहा है.

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2021-22 में अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार 119.42 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल 80.51 अरब डॉलर था. इसी अवधि में चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार 115.42 अरब डॉलर रहा.

यह स्थिति कोविड के कारण चीन की अर्थव्यवस्था में अपेक्षाकृत गिरावट और अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक टकराव या ‘ट्रेड वार’ की वजह से भारत के लिए एक अनुकूल भू-राजनीतिक वातावरण के कारण आई है.

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि चीन में लॉकडाउन के कारण आपूर्ति बाधित होने से कई देशों को अपने आयात स्रोतों में विविधता लाने की जरूरत महसूस हो रही है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: शांत सड़कें, ‘थके हुए’ लोग- श्रीलंका में कमजोर पड़ता विरोध-प्रदर्शन, कार्यकर्ताओं ने इसे ‘तूफान से पहले की शांति’ बताया


share & View comments