मुंबई, छह नवंबर (भाषा) नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत ने बृहस्पतिवार को अत्यधिक नियामकीय अनुपालन बोझ से भारतीय उद्यमों का विकास प्रभावित होने का जिक्र करते हुए कहा कि देश के भीतर ‘समाजवादी मानसिकता’ अब भी कायम है।
पूर्व नौकरशाह कांत ने ‘एक्सीलेंस एनेब्लर्स’ के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “भारत का नियामकीय वातावरण अत्यधिक अनुपालन बोझ डालता है। ब्रिटिश राज को हमने कई मायनों में ‘लाइसेंस राज’ से बदल दिया था। और हमारी समाजवादी मानसिकता आज भी कायम है।”
उन्होंने कहा कि भारत को अपने उद्यमों को अत्यधिक विनियमन और अनुपालन के बोझ से मुक्त करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘‘नियमन का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो विश्वास और पारदर्शिता की ढाल बने, न कि मनमाने नियंत्रण की तलवार।’’
कांत ने चेतावनी दी कि यदि नियामकीय ढांचा जटिल और नियंत्रणकारी बना रहा, तो ‘विकसित भारत’ पहल के तहत 30 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा।
जी-20 में भारत का शेरपा रहने के बाद हाल ही में कई कंपनियों के निदेशक मंडल में शामिल किए गए कांत ने कहा, “हमें सरकार और विनियमन की भूमिका को मूलतः नियंत्रित से सक्षम में बदलना होगा।’’
कांत ने सुझाव दिया कि वित्तीय नियामकों के भीतर स्वायत्त ‘प्रभाव मूल्यांकन’ कार्यालय स्थापित किए जाएं, जो नियमित रूप से अपने निर्णयों के प्रभाव का मूल्यांकन करें और सीधे निदेशक मंडल को रिपोर्ट दें।
उन्होंने एक ही नियामक के भीतर सभी शक्तियों के केंद्रीकरण पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे ‘हितों के टकराव’ की स्थिति बनती है और बाहरी जांच-पड़ताल की कमी रहती है।
कांत ने कहा, “भारतीय नियामकों को तीन अलग-अलग चरणों- नियम निर्माण, प्रवर्तन और निर्णय में विभाजित किया जाना चाहिए। जहां यह आंतरिक रूप से संभव न हो, वहां स्वतंत्र न्यायाधिकरण काम करें।”
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि नियामक संस्थाएं सार्वजनिक परामर्श समूहों को कुछ अधिकार सौंपें और हर नियम में ‘समाप्ति अवधि’ का भी उल्लेख हो ताकि उसे तय समय के बाद स्वतः समीक्षा या समाप्त किया जा सके।
कांत ने कहा, “भारत की वृद्धि गाथा को नवाचार और मुक्त उद्यम की जरूरत है। नवाचार को आगे बढ़ने के लिए आजादी चाहिए। हमें ऐसे नियमन चाहिए जो सक्षम बनाएं, नियंत्रित न करें।”
भाषा प्रेम प्रेम अजय
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