नई दिल्ली: एक मंत्री समूह ने सिफारिश की है कि मैन्युफेक्चरिंग हब बनने के लिए भारत को निर्माण के लिए प्रगति प्लेटफॉर्म जैसी एक समर्पित सेंट्रल टास्क फोर्स की ज़रूरत है जो प्रधानमंत्री की निगरानी में हो.
देश में निर्माण को बढ़ावा देने के लिए बने मंत्री समूह (जीओएम) ने ये भी कहा है कि नीति निश्चितता, एक बेहतर विवाद समाधान तंत्र, अनुपालन बोझ में कमी और लॉजिस्टिक्स की लागत घटाने पर फोकस करना चाहिए.
प्रगति, जिसका मतलब है प्रो एक्टिव गवर्नेस एंड टाइमली इंप्लीमेंटेशन, पीएमो में एक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म है, जो बहुत सी सरकारी परियोजनाओं की समीक्षा और निगरानी करता है.
भारतीय मैन्युफेक्चरिंग क्षेत्र का आकार 380 बिलियन डॉलर्स का है जो चीन के चार ट्रिलियन डॉलर के निर्माण उद्योग के दसवें भाग से भी कम है. पीएम नरेंद्र मोदी का आत्मनिर्भर भारत का आह्वान बहुत कुछ इस पर निर्भर है कि भारतीय मैन्युफेक्चरिंग रफ्तार पकड़े और बहुत से आयातों की जगह ले ले.
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ब्रांड ‘विश्वसनीय भारत’
कपड़ा और महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में मंत्री समूह ने निर्यात रणनीति के हिस्से के तौर पर एक ‘विश्वसनीय भारत’ ब्रांड तैयार करने की ज़रूरत पर भी बल दिया और इस विश्वसनीयता को बनाने के लिए केंद्र, राज्य तथा ज़िला स्तर पर नीति निरंतरता की सलाह दी और ये भी बताया कि मनमाने फैसलों से विदेशी निवेशकों के बीच भारत के ब्रांड की छवि पर कैसे विपरीत असर पड़ा है.
अक्टूबर में सरकार को पेश की गई रिपोर्ट में जो दिप्रिंट के हाथ लगी है, कहा गया है, ‘चुनौती ये है कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर इस नैरेटिव से निपटा जाए. घरेलू स्तर पर भारत के लिए जो नैरेटिव तय है, वो पूंजी की ऊंची लागत और मंज़ूरियों में देरी रहा है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसमें नीति की विसंगतियां हैं और यूपीए के वर्षों ने भारत के ईको-सिस्टम की एक भ्रष्ट छवि बना दी है’.
जीओएम ने नेशनल इंडस्ट्री चैम्पियंस तैयार करने का भी सुझाव दिया है जो और अधिक विदेशी उद्योगों को भारत में लाने की कोशिश करेंगे.
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कारोबार करने की आसानी
विश्व बैंक की अब स्थगित कर दी गई, ‘ईज़ ऑफ डूईंग बिजनेस’ की 2020 इंडेक्स में भारत की स्थिति सुधरकर 63वीं हो गई, जो मोदी के पहली बार सत्ता में आने के समय 134 थी.
लेकिन मंत्रियों ने जुलाई में जारी की गई टीमलीज़ अनुपालन रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें भारी संख्या में नियम कानूनों की बात गई थी जिन्हें कंपनियों को भारत में अभी भी मानना पड़ता है.
उन्होंने सुझाव दिया कि ‘अनुपालन की ज़रूरतों को और तर्कसंगत बनाकर, तथा संपत्ति के पंजीकरण व निर्माण पर्मिट्स जैसी प्रमुख प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करके और जटिलताओं को हटाकर, पूरी प्रक्रिया को डिजिटाइज़ करने से’ निर्माण क्षेत्र को सुविधा मिलेगी.
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि अनुपालन की जटिलताओं की वजह से ही ‘भारत में अधिकतर कंपनियां अनौपचारिक बने रहना पसंद करती हैं क्योंकि औपचारीकरण तथा अनुपालन का खर्च बहुत भारी होता है’. रिपोर्ट में सुझाया गया कि सभी पेपरवर्क को हटाकर डिजिटल अनुपालन पर आ जाएं और सभी अनुपालनों में ई-सिग्नेचर्स शुरू कर दें.
उसमें कहा गया कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में कई अनुभाग और नियम हैं जिनसे काफी कागज़ी कार्रवाई होती है. इसके लिए सुझाया गया है कि प्रलेखन और अनुमोदनों के लिए एक एकीकृत तथा केंद्रीकृत प्रणाली के ज़रिए डुप्लिकेट अनुमोदन प्रक्रियाओं को खत्म किया जाए. इस ज़रूरत पर भी बल दिया गया कि बहुत पुराने पड़ चुके कानूनों को लगातार चिन्हित करते हुए चरणबद्ध तरीके से हटाया जाए.
पैनल ने इस ज़रूरत पर भी बल दिया कि लागतों को घटाकर एक अंतर्राष्ट्रीय मानदंड पर आया जाए जिसमें सड़क (25-30 प्रतिशत), रेल (50-55 प्रतिशत) और जलमार्ग (20-25 प्रतिशत) का मिश्रण हो.
उसने कहा कि प्रतिस्पर्धा को निर्धारित करने में लॉजिस्टिक्स का एक अहम रोल होता है और उसने इस बात पर ज़ोर दिया कि लॉजिस्टिक्स की औसत सम्मिलित लागत कम की जाए जो फिलहाल भारत में चीज़ों की अंतिम कीमत का 18 प्रतिशत होती हैं.
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