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नयी दिल्ली, 15 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने वाणिज्यिक समझौतों में मध्यस्थता प्रावधानों को खराब ढंग से लिखे जाने पर बृहस्पतिवार को गहरी चिंता जताते हुए कहा कि मध्यस्थता प्रक्रिया का इस्तेमाल मामलों को जटिल बनाने और उन्हें अनावश्यक रूप से लंबा खींचने के लिए किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने ऐसे समझौतों में मध्यस्थता प्रावधानों की अस्पष्टता पर ‘गंभीर चिंता’ जताई और निचली अदालतों को खराब ढंग से लिखे गए खंडों को शुरुआत में ही खारिज करने की ‘अटूट प्रवृत्ति’ दिखाने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘भारत में वाणिज्यिक समझौतों में मध्यस्थता के प्रावधानों का मसौदा तैयार करने में बहुत गुंजाइश है। विवादों के त्वरित और प्रभावी समाधान के लिए मध्यस्थता को अपनाए जाने के बावजूद यह स्पष्ट और विडंबनापूर्ण है कि कुछ मामलों में विवादों के समाधान को अधिक जटिल बनाने और उसे लंबा खींचने के लिए इस प्रक्रिया का दुरुपयोग किया गया है।’’
न्यायालय ने इस स्थिति के लिए प्रशासनिक अनदेखी या अपर्याप्त कानूनी सलाह को संभावित कारण बताते हुए कहा कि इस पर अलग से विचार करने की जरूरत है।
पीठ ने अदालतों के समय की ‘जानबूझकर और बेतहाशा’ बर्बादी को निंदनीय बताते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि मध्यस्थता के प्रावधानों को सटीक और स्पष्ट ढंग से लिखा जाए, न कि अस्पष्ट भाषा में।
पीठ ने कहा, ‘‘इस काम को पूरी निष्ठा से अंजाम देना हरेक कानूनी सलाहकार, परामर्शदाता और वकील की जिम्मेदारी और दायित्व है।’’
पीठ ने अदालतों का समय खराब करने वाले ऐसे तरीकों को लेकर कानूनी बिरादरी को ‘सावधान करने और चेतावनी देने के बजाय सलाह देने’ का फैसला किया।
उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी दिल्ली नगर निगम और कुछ निजी ठेकेदारों के बीच पार्किंग और वाणिज्यिक परिसरों के विकास से संबंधित रियायती समझौतों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर की।
भाषा प्रेम प्रेम अजय
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