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Sunday, 17 November, 2024
होमदेशअर्थजगतपिछले साल 2000 कंपनियां हुई थी फेल, सभी देखना चाहते हैं भारतीय स्टार्टअप के सफलता की कहानी

पिछले साल 2000 कंपनियां हुई थी फेल, सभी देखना चाहते हैं भारतीय स्टार्टअप के सफलता की कहानी

बड़े खिलाड़ी मैदान में कूदते हैं और अपने छोटे साथियों को जिंदा बने रहने के लिए जगह नहीं छोड़ते. लेकिन स्टार्टअप फंडिंग के लिए रुपये के पूंजी आधार को मजबूत करना इसका एक तरीका हो सकता है.

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बेंगलुरु: स्टार्टअप ट्रैकिंग प्लेटफॉर्म Trackxn के डेटा से पता चलता है कि बेंगलुरु की लगभग एक तिहाई ऑनलाइन फूड और ग्रॉसरी डिलीवरी कंपनियां अपना ऑपरेशन बंद कर चुकी हैं. यह आंकड़ा शहर की विजयी स्टार्टअप कहानी के दूसरे पक्ष को दिखाता है, क्योंकि बड़े खिलाड़ी अपनी स्थिति को मजबूत बनाते चले जाते हैं, जिससे छोटी कंपनियों को अपने आपको बचाए रखने की बहुत ही कम जगह बचती है.

Traxcn के मुताबिक, बेंगलुरु में 383 फूड और ग्रोसरी डिलीवरी ऐप में से 129 ने अपनी दुकानें बंद कर दी हैं.

नवंबर के अंतिम सप्ताह में एक फ्रूट डिलिवरी ऐप, जूज़ी ने ‘प्रतिकूल व्यावसायिक परिस्थितियों’ का हवाला देते हुए अपने इस ऐप को बंद कर दिया था.

कंपनी के अधिकारियों को फोन करने पर कोई माकूल जवाब नहीं मिला. ईमेल के जरिए उन तक संस्थापकों का फैसला पहुंचा है. इस फैसले से उनमें से ज्यादातर लोग बेंगलुरु में अपने ग्राहकों की तरह ही हैरान हैं.

हालांकि शहर में 11,000 से ज्यादा स्टार्टअप हैं, लेकिन ज्यादातर ध्यान उन्हीं लोगों पर है जिन्होंने इस बाजार को बड़ा बनाया है  जैसे ओला, बायजू, स्विगी और अन्य बड़ी कंपनियां. इन्होंने न सिर्फ अपने संबंधित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बाजार हिस्सेदारी पर कब्जा कर लिया है बल्कि ये बिलियन-डॉलर के वैल्यूएशन पर फंडिंग के बड़े दौर को सुरक्षित करने में भी कामयाब रहे हैं.

लेकिन अखिल भारतीय आंकड़ा उतना तो नहीं, लेकिन हैरान करता है. 2021 के बाद से ऑपरेशन बंद करने के लिए मजबूर होने वाले स्टार्टअप्स की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है. Trackxn के डेटा से पता चलता है कि इनमें से कई कंपनियों पर फंडिंग से संबंधित दबाव बने रहने का संकेत मिले हैं.


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डेड-पूल स्टार्टअप्स

ट्रैक्सन के अनुसार, 2021 में भारत में 975 ‘डेड-पूल’ कंपनियां थीं. दूसरे शब्दों में ऐसी कंपनियां जो अब चालू हालत में नहीं हैं. 2022 में यह संख्या दोगुनी से ज्यादा होकर 1996 हो गई है. यहां पिछले 10 सालों में स्थापित की गई तकनीकी कंपनियों का जिक्र किया गया है.

स्टार्टअप इकोसिस्टम से नजदीकी से जुड़े लोगों ने कहा कि भारत में प्रत्येक 500 मिलियन डॉलर के लिए 10 गुना ज्यादा 100मिलियन डॉलर वैल्यूएशन कंपनियां हैं और प्रत्येक 100 मिलियन डॉलर कंपनी के लिए 10 गुना अधिक 50 मिलियन डॉलर वैल्यूएशन कंपनियां हैं.

iSPIRT फाउंडेशन के सह-संस्थापक शरद शर्मा ने कहा, ‘भारत में स्टार्टअप स्केल का पावर-लॉ कुछ समय के लिए बेकार हो गया है क्योंकि बहुत सारे वीसी/पीई (वेंचर कैपिटल/प्राइवेट इक्विटी) फंडिंग सिर्फ बड़े खिलाड़ियों के पास जा रही है.’  उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे पास पर्याप्त रूप से मजबूत शुरुआती चरण का फंडिंग इकोसिस्टम नहीं हैं. फंडिंग चैनल भी धीरे-धीरे सूख रहे हैं क्योंकि हम एक और आसन्न वैश्विक आर्थिक मंदी को आते देख रहे हैं.’

पॉवर लॉ कहता है कि कुछ कंपनियां अन्य सभी की तुलना में काफी ज्यादा वैल्यू प्राप्त करेंगी.

Tracxn के डेटा से पता चलता है कि भारतीय स्टार्टअप ने कैलेंडर वर्ष 2022 की तीसरी तिमाही या तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में 3 बिलियन डॉलर जुटाए, जो पिछली तिमाही की तुलना में 57 फीसदी और पिछले साल की तीसरी तिमाही में जुटाए गए फंड की तुलना में तीन गुना कम थे.

हालांकि डेटा को अलग-अलग लोग अलग-अलग तरीके से देख रहे हैं. कुछ के लिए बेंगलुरु के नंबर पूरे देश की स्थिति को बयां करते हैं.

एक्सेल पार्टनर्स के पार्टनर और कर्नाटक विजन ग्रुप के चेयरमैन प्रशांत प्रकाश ने कहा, ‘देश में लगभग 70,000 या इतने ही स्टार्ट-अप में से लगभग 2,000 स्टार्टअप डेड हो गए. यह संख्या ज्यादा नहीं है’

उन्होंने बताया, ‘यह कुल स्टार्टअप का 5 प्रतिशत से भी कम है. इसलिए इन आकड़ों को सामने लाना एक बहुत अच्छी बात है क्योंकि लोगों को पता होना चाहिए कि स्टार्टअप वास्तव में अद्भुत काम कर रहे हैं. आमतौर पर लोग सोचते हैं कि सभी स्टार्टअप्स में से 20 से 30 प्रतिशत तो आगे ही नहीं बढ़ पाते हैं.’


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‘टूरिस्ट’ कैपिटल

भारत की वीसी फंडिंग का अधिकांश हिस्सा विदेशों से आता है और यह शायद ही कभी शुरुआती कंपनियों की तरफ जाता हो. दरअसल यह बड़ी कंपनियों में प्रवाहित होता रहता है.

हालांकि इस साल 29 अगस्त तक देश के 656 जिलों में डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (DPIIT) ने 77,000 से अधिक स्टार्ट-अप को मान्यता दी थी. लेकिन ज्यादातर लोग उनमें से कुछ को ही जानते हैं. इनमें फूड और ग्रोसरी डिलीवरी, मोबिलिटी और मनोरंजन के कुछ रूपों में काम करने वाली कंपनियां शामिल हैं.

शर्मा ने अमेरिका और चीन जैसे देशों में वीसी समर्थित फंडों से पूंजी के प्रवाह का जिक्र करते हुए कहा, ‘स्टार्टअप जो काफी तेजी से आगे बढ़ते हैं, उन्हें काफी ज्यादा फंड मिलता है. इसमें से ज्यादातर ‘टूरिस्ट’ मनी होती है.’

उन्होंने कहा कि इसका समाधान स्टार्टअप फंडिंग के लिए रुपये के पूंजी आधार को मजबूत करना है.

उन्होंने कहा, ‘हमें शुरुआती चरण के इकोसिस्टम में निवेश करने के लिए स्थानीय हाई-नेट मूल्य वाले व्यक्तियों, बीमा कंपनियों, बड़ी बैलेंस शीट वाली निजी कंपनियों को आकर्षित करना होगा. तभी हम इस समस्या का समाधान कर पाएंगे. एक बार ऐसा हो जाने पर इस ‘टूरिस्ट’ कैपिटल के प्रति हमारी भेद्यता कम हो जाएगी.

उन्होंने कहा, ‘मौजूदा मंदी उन मसलों को दूर करने के लिए कार्रवाई का आह्वान है जो प्रारंभिक चरण के फंडिंग के लिए एक मजबूत रुपये के पूंजी आधार को बनाने से रोकते हैं.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य | संपादन: ऋषभ राज)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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