नयी दिल्ली, 28 फरवरी (भाषा) सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) और खाद्य तेल उद्योगों के प्रमुख निकाय साल्वेंट एक्स्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) जैसे दो औद्योगिक संगठनों के बीच एक मुद्दे पर परस्पर ठन गई है। सोपा ने एसईए के 1.2 करोड़ हेक्टेयर भूमि में सोयाबीन की खेती को रोकने के सुझाव की आलोचना की है।
इस पर सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आरोपों को ‘स्पष्ट झूठ’ और घरेलू खाद्य तेल उद्योग में दरार पैदा करने का प्रयास करार दिया।
सोपा ने एक बयान में कहा कि मुंबई स्थित एसईए ने 25 फरवरी को केंद्रीय खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल के साथ खाद्य तेल उद्योग की एक वर्चुअल बैठक में यह सुझाव दिया था।
एसईए ने ‘‘भारत में सोयाबीन के लिए 1.2 करोड़ हेक्टेयर भूमि उपयोग को एक गहरी भूल बताया था क्योंकि सोयाबीन में केवल 18 प्रतिशत तेल है और इसकी उत्पादकता कम है। उसने अन्य फसलों की बुवाई के लिए इस भूमि का उपयोग करने का सुझाव दिया।’’
सोपा ने कहा कि एसईए अध्यक्ष ने कहा कि भारत में प्रोटीन की कमी नहीं है, और उन्होंने सरकार से आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सोयामील के आयात की अनुमति देने का भी अनुरोध किया।
सोपा के अध्यक्ष दावीश जैन ने कहा कि एसईए की मांग ‘‘खतरनाक, उद्योग विरोधी, किसान विरोधी और देश के हित के खिलाफ है क्योंकि यह देश को आत्मनिर्भरता से दूर ले जा सकती है।’’
जैन ने कहा, ‘‘अगर सोयाबीन की खेती बंद कर दी जाती है और जीएम सोयाबीन के आयात की अनुमति दी जाती है तो पूरे सोया उद्योग का सफाया हो जाएगा और लगभग 60 लाख किसान, खासकर मध्य भारत में, अपनी पसंदीदा खरीफ फसल खो देंगे, जहां सोयाबीन के कुछ विकल्प मौजूद हैं।’’
उन्होंने कहा कि इससे न केवल खाद्य तेलों के आयात पर भारत की निर्भरता बढ़ेगी, बल्कि भारत को आवश्यक प्रोटीन की जरूरतों के लिए भी आयात पर निर्भर बना देगा।
आरोपों की तीखी प्रतिक्रिया में एसईए ने कहा कि सोपा अपने सदस्यों से ‘झूठ’ बोल रहा है और खाद्य तेल उद्योग के भीतर दरार पैदा कर रहा है।
एसईए अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘यह लंबे समय में किसी की मदद नहीं करेगा और प्रतिकूल प्रभाव वाला साबित होगा। मैं आपके (सोपा) द्वारा की जा रही गलत प्रस्तुति पर थोड़ा निराश हूं।’’
चतुर्वेदी ने यह भी कहा कि एसईए ने देश में सोया की खेती के खिलाफ नहीं कहा था।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने जो कहा वह यह कि सोयाबीन की खेती 12 लाख हेक्टेयर में होती है और इसमें एक करोड़ टन का उत्पादन होता है जिससे देश या उद्योग की कोई मदद नहीं होती और उत्पादकता बढ़ाने और इसे बढ़ाकर न्यूनतम 1.5 टन प्रति हेक्टेयर करने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने की जरूरत है।’’
इसके अलावा, सोपा ने कहा कि सोयाबीन की खेती को हतोत्साहित करना भारतीय लोगों को प्राकृतिक शुद्धता के साथ महत्वपूर्ण प्रोटीन के सबसे किफायती स्रोत से वंचित करना होगा।
भाषा राजेश राजेश अजय
अजय
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.