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Friday, 22 November, 2024
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बढ़ता तापमान, लंबी बिजली कटौती- ‘कोयले की किल्लत’ से राज्यों और मोदी सरकार के बीच क्यों छिड़ी है तकरार

देश भर में चल रही गर्मी की लहर के बीच, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, तमिलनाडु, और आंध्र प्रदेश सबसे लंबी बिजली कटौतियों का सामना कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: देश में गर्मी के ज़ोर पकड़ने के साथ ही केंद्र और राज्यों के बीच बिजली कटौतियों को लेकर तकरार शुरू हो गई है, जिसमें राज्य दावा कर रहे हैं कि उन्हें बिजली बनाने के लिए पर्याप्त कोयला नहीं मिल रहा है.

उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, तमिलनाडु, और आंध्र प्रदेश देश में कुछ सबसे लंबी बिजली कटौतियों का सामना कर रहे हैं.

राज्यों का दावा है कि केंद्र ने बिजली की मांग में आई अचानक उछाल का पूर्वानुमान नहीं लगाया, जो आमतौर पर अप्रैल के अंत में आती है, लेकिन इस बार देश भर में चल रही गर्म हवा की वजह से जल्दी आ गई.

लंबी बिजली कटौतियों के पीछे एक और कारण ये भी रहा है कि मांग और पूर्ति में असंतुलन की वजह से कई राज्य महंगी बिजली ख़रीदने से बच रहे हैं.

कोयले की वैश्विक क़ीमतें, जिन पर मार्केट्स इंनसाइडर ने नज़र रखी, 22 अप्रैल को 326 डॉलर प्रति टन थीं, जबकि जनवरी में वो केवल 120 डॉलर प्रति टन थीं.

अगर तुलना करें तो 2020 में कोयले के दाम 50 प्रति डॉलर थे, जिसका मतलब है कि सिर्फ दो वर्षों के भीतर इसकी क़ीमत छह गुना से अधिक बढ़ गई है.

पिछले हफ्ते, कई मुख्यमंत्रियों ने केंद्र से आग्रह किया कि उनके राज्यों को कोयले की सप्लाई बढ़ाई जाए.

महाराष्ट्र उप-मुख्यमंत्री अजित पवार ने दावा किया कि कोयले की अपर्याप्त सप्लाई की वजह से, बिजली सप्लाई में क़रीब 3,500-4,000 की कमी की भरपाई करने के लिए, उन्हें मजबूरन वैकल्पिक स्रोतों पर विचार करना पड़ा. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि फ्यूल सप्लाई अग्रीमेंट (एफएसए) का पालन करें और किए गए वायदे के अनुसार राज्य को प्रतिदिन 72,000 मीट्रिक टन कोयले की सप्लाई कराएं.

बिजली कटौतियों के एक ज्वलंत मुद्दा बनने के पीछे एक तीसरा महत्वपूर्ण कारण है उद्योगों को मिलने वाली सप्लाई का नाकाफी होना. इस संदर्भ में तमिलनाडु और महाराष्ट्र का शुमार देश के सबसे ज़्यादा औद्योगीकृत राज्यों में होता है.

दिप्रिंट इन सभी कारणों पर एक क्रम से नज़र डालता है.


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समस्या

अप्रैल में कोयले की कमी के पीछे एक कारण इस साल बिजली की मांग रही है, जो पिछले कुछ वर्षों के मुक़ाबले कहीं अधिक तेज़ी से बढ़ी है

2021 में, ये मांग बढ़कर 124.2 बिलियन यूनिट्स (बीयू) प्रतिमाह हो गई, जो 2019 में 106.6 बीयू प्रतिमाह थी. 2022 में ये मांग और अधिक बढ़कर 132 बीयू प्रतिमाह हो गई है.

बिजली खपत में वृद्धि देश में चल रही गर्म हवा के साथ-साथ चलती है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आएमडी) ने देश के उत्तर और उत्तर पश्चिमी हिस्सों में हीटवेव का ऐलान कर दिया है, जहां तापमान पहले ही 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चल रहा है.

देश में बिजली सप्लाई की निगरानी करने वाली एजेंसी, पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (पीओएसओसीओ) द्वारा उपलब्ध कराए गए बिजली खपत के आंकड़ों से पता चलता है, कि इस साल अप्रैल महीने में भारत में बिजली की खपत पिछले कई वर्षों से कहीं अधिक रही है.

पीओएसओसीओ की दैनिक रिपोर्ट्स के अनुसार, इस साल अप्रैल में 1 से 25 तारीख़ के बीच भारत में हर रोज़ ऊर्जा की क़रीब 4,400 मिलियन यूनिट्स सप्लाई की गईं. इसकी तुलना में, 2018 से 2021 के बीच (सिवाय 2020 के) अप्रैल महीने में भारत में रोज़ाना औसतन 3,500 मिलियन यूनिट्स सप्लाई की गईं, जिसका अर्थ है कि इस साल अप्रैल महीने में बिजली की खपत 25 प्रतिशत अधिक रही है.

चित्रण : रमनदीप कौर / दिप्रिंट

(2020 का डेटा इसलिए बाहर रखा है कि ये हर जगह लगे लॉकडाउन्स से प्रभावित था)

भारत में बिजली घरों को कोयले की सप्लाई की निगरानी के लिए, अगस्त 2021 में केंद्र ने एक कोर प्रबंधन टीम (सीएमटी) का गठन किया था. सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि सीएमटी में बिजली मंत्रालय, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, और कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के प्रतिनिधि शामिल होंगे.

लेकिन इसके बावजूद कोयला भंडारों के लदान में हुई देरी की वजह से, पिछले साल अक्टूबर में भारत में सिर्फ चार दिन का स्टॉक बचा रह गया था.

सीएमटी ने कहा कि कोयले के सीमित भंडार का एक और कारण गुजरात, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और तमिलनाडु जैसे राज्यों के कोयला खनन क्षेत्रों में भारी बारिशें रही हैं, जिनसे कोयला उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. केंद्र ने कहा कि आयातित कोयले से होने वाले बिजली उत्पादन में 43.6 प्रतिशत की कमी आई, जिसके परिणामस्वरूप घरेलू कोयले की 17.4 मिलियन टन की अतिरिक्त मांग पैदा हो गई.

सीईए के आंकड़ों के अनुसार 24 अप्रैल तक, देश भर में फैले 173 संयंत्रों के पास कोयले का कुल भंडार 21.77 मिलियन टन था, जबकि ज़रूरत 66.33 मिलियन टन की थी. सीईए के आंकड़ों से पता चलता है कि 173 में से 108 बिजली संयंत्रों के पास बहुत कम भंडार बचे हैं- जो आवश्यक स्तर से 25 प्रतिशत कम हैं.

सीईए के आंकड़ों से पता चलता है कि 50 से अधिक थर्मल प्लांट्स में भंडार का स्तर 10 प्रतिशत से भी कम रह गया है, जिसके नतीजे में राज्यों को कोल इंडिया लि. (सीआईएल) से कोयले की अतिरिक्त सप्लाई मांगनी पड़ रही है.

देश में कुल बिजली उत्पादन का छियत्तर प्रतिशत कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों में होता है, जबकि बाक़ी में हाइड्रो, लिग्नाइट, सोलर, विंड और बायोमास आदि आते हैं. इसमें 12 प्रतिशत से अधिक कोयला निर्यात-आधारित होता है.

इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध से भी कोयले की अंतर्राष्ट्रीय सप्लाई बाधित हुई, जिससे कोयले का आयात और महंगा हो गया.

चित्रण : रमनदीप कौर / दिप्रिंट

केंद्र ने आरोपों का खंडन किया

केंद्र सरकार ने कोयले की कमी से इनकार किया है. केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने दिप्रिंट को बताया, कि विभिन्न स्रोतों से फिलहाल 72.5 मिलियन टन कोयला उपलब्ध है- जैसे कोल इंडिया लिमिटेड, सिंगारेनीम कोलरीज़ लिमिटेड, कोल वॉशरीज़ (वो सुविधाएं जहां कोयले को धोकर उसे अलग किया जाता है और उसकी ग्रेडिंग होती है), और 22.01 मिलियन टन कोयला थर्मल पावर प्लांट्स में उपलब्ध है.

24 अप्रैल को एक ट्वीट में भी मंत्रालय ने कोयले की कमी के आरोपों का खंडन किया.

ट्वीट में जोशी ने कहा, ‘कोयला कंपनियां हर रोज़ रेलवे, सड़क मार्गों, तथा आरसीआर (रोड-कम-रेल) जैसे विभिन्न माध्यमों से तक़रीब 2 मिलियन कोयला बिजली क्षेत्र को भेज रही हैं’. उन्होंने आगे कहा कि बिजली उत्पादन कंपनियों को भी 16.7 मिलियन टन अतिरिक्त कोयले की पेशकश की गई है, और उन्हें इस मात्रा को रोड-कम-रेल माध्यम से उठाने का विकल्प दिया गया है.

रविवार को समाचार एजेंसी पीटीआई की ख़बर के अनुसार, कोयला सचिव अनिल कुमार ने कहा कि वर्तमान बिजली संकट घरेलू कोयले की अनुपलब्धता की वजह से नहीं, बल्कि ईंधन के विभिन्न स्रोतों से होने वाले बिजली उत्पादन में आई कमी से पैदा हुआ है.

कोयला मंत्रालय के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-22 में कुल कोयला उत्पादन 8.5 प्रतिशत बढ़कर 777.23 मिलियन टन पहुंच गया, जो 2020-21 के दौरान 716 मिलियन टन था. सरकारी उपक्रम कोल इंडिया का उत्पादन 4.4 प्रतिशत बढ़कर 2021-22 में 622.6 मिलियन टन हो गया.

मार्च में ख़त्म हुए वित्त वर्ष में कोयले की सप्लाई 18.4 प्रतिशत बढ़कर 818.04 मिलियन हो गई, जो 2020-21 में 690.7 मिलियन टन थी.

कोयले की कमी से कैसे प्रभावित होती है बिजली की क़ीमत

7 अप्रैल को अपनी एक रिपोर्ट में फिच रेटिंग्स ने कहा, कि बिजली उत्पादन बढ़ाने में सामने आ रही चुनौतियों की वजह से, भारत में बिजली दरों में अल्पकालिक वृद्धि देखने में आ सकती है.

रिपोर्ट में कहा गया कि मांग और पूर्ति के असंतुलन की वजह से, बिजली की रोज़ाना कमी बढ़कर 1 प्रतिशत हो गई, जिसका औसत मार्च में 0.3 प्रतिशत था. रेटिंग एजेंसी ने कहा कि उसे अपेक्षा है कि ये कमी आने वाले दिनों में बढ़ सकती है, भले ही सप्लाई की समस्या को हल करने के लिए सरकार घरेलू कोयले में मिलाने के लिए कोयले के आयात को बढ़ाने की कोशिश कर रही है.

कोयला मिश्रण एक ऐसी तकनीक है जिसमें घरेलू कोयले को आयातित कोयले के साथ मिलाया जाता है, ताकि अलग अलग उद्देश्यों के लिए गुणवत्ता विशिष्टताओं को पूरा किया जा सके.

पिछले महीने बिजली मंत्री आरके सिंह ने 11 राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की.

2016 के बाद से नरेंद्र मोदी की एक नीति के तौर पर वादा किया गया था, कि भारत कोयले के आयात पर अपनी निर्भरता को घटाएगा. लेकिन, पिछले सप्ताह राज्यों के साथ बैठक में केंद्र उन्हें 10 प्रतिशत तक कोयला आयात करने की अनुमति देने पर सहमत हो गया, ताकि घरेलू आपूर्ति पर बने दबाव को कम किया जा सके.

23 अप्रैल को दि हिंदू बिज़नेस लाइन ने ख़बर दी, ‘योजना ये है कि राज्यों को ऊंची लागत पर भी कोयला आयात करने की अनुमति दी जाए, जिसे दिसंबर 2022 तक अंतिम उपभोक्ता को पास किया जाएगा. अधिकतर मात्रा के इस साल मई और जुलाई के बीच पहुंच जाने की संभावना है. अप्रैल के अंतिम सप्ताह में स्थिति की समीक्षा की जाएगी’.

लेकिन, ये काम आसान रहने वाला नहीं है: फिच रिपोर्ट ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय कोयले के बेहद ऊंचे दामों की वजह से कोयले का आयात एक सीमा तक ही बढ़ सकता है. रिपोर्ट में कहा गया, ‘जुलाई-सितंबर तिमाही में मॉनसून के चरम पर भी, घरेलू कोयले की सप्लाई प्रभावित हो सकती है, चूंकि उससे कोयले के खनन और परिवहन पर असर पड़ सकता है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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