मुंबई, 30 मई (भाषा) भारतीय झींगा निर्यातकों को कीमतों में बढ़ोतरी और मुद्रा लाभ की वजह से चालू वित्त वर्ष में राजस्व में दो से तीन प्रतिशत की मामूली वृद्धि देखने को मिलेगी। शुक्रवार को एक रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया।
क्रिसिल रेटिंग्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अमेरिका की तरफ से उच्च शुल्क लगाए जाने और प्रमुख आयातक देशों में मांग घटने से झींगा निर्यात की मात्रा स्थिर रहने की संभावना है, क्योंकि सुस्त आर्थिक वृद्धि से खर्च-योग्य आय पर असर पड़ रहा है।
क्रिसिल रेटिंग्स के निदेशक हिमांक शर्मा ने कहा, ‘पिछले वित्त वर्ष में भारतीय झींगा निर्यातकों के लिए स्थिति खराब हो गई थी, क्योंकि अमेरिका ने 5.77 प्रतिशत का प्रतिपूरक शुल्क लगा दिया था। इस वित्त वर्ष में अमेरिका ने जवाबी सीमा शुल्क लगा दिया है जबकि यूरोपीय संघ और चीन जैसे अन्य प्रमुख बाजारों में आर्थिक गतिविधि सुस्त है।’
शर्मा ने कहा कि ऐसी स्थिति में निर्यातकों को मांग में स्थिरता देखने को मिलेगी। हालांकि प्राप्तियां बढ़ने के साथ इस वित्त वर्ष में राजस्व में समग्र वृद्धि निम्न एकल अंकों में ही होनी चाहिए।
रिपोर्ट के मुताबिक, झींगा निर्यातकों के परिचालन मार्जिन पर दबाव रहेगा, क्योंकि शुल्क का बोझ आंशिक रूप से और धीरे-धीरे ही डाला जाएगा। निर्यातक अन्य बाजारों की तलाश कर रहे हैं और मूल्य संवर्धन के माध्यम से पेशकश में सुधार कर रहे हैं।
भारतीय निर्यातकों के पास अभी वैश्विक बाजार हिस्सेदारी का लगभग पांचवां हिस्सा है, जबकि घरेलू उत्पादन 12 लाख टन पर स्थिर देखा जा रहा है। इसकी वजह यह है कि गैर-लाभकारी वैश्विक कीमतों ने चालू वित्त वर्ष में झींगा पालन और वृद्धि को प्रभावित किया है।
भारत अपने झींगा उत्पादन का लगभग 48 प्रतिशत अमेरिका को निर्यात करता है लेकिन अमेरिका में उच्च शुल्क लगाए जाने का प्रतिकूल असर पड़ेगा।
हालांकि भारतीय निर्यातकों को मूल्यवर्धित खंड में चीन, वियतनाम, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे अन्य एशियाई देशों की तुलना में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ है।
क्रिसिल रेटिंग्स ने कहा कि मूल्यवर्धित उत्पाद वर्तमान में कुल भारतीय निर्यात का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा हैं, लेकिन शुल्क लाभ के साथ अगले 2-3 वर्षों में यह बढ़कर 15 से 17 प्रतिशत हो सकता है।
भाषा प्रेम प्रेम रमण
रमण
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.