नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) बाजार नियामक सेबी ने सोमवार को कम-से-कम 10 करोड़ रुपये के दावों वाले पुराने तथा बार-बार आने वाले मामलों से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए प्रत्यक्ष मध्यस्थता व्यवस्था का प्रस्ताव रखा।
यह भारतीय प्रतिभूति बाजार में ऑनलाइन विवाद समाधान (ओडीआर) के लिए रूपरेखा में बदलाव करने के सेबी के प्रस्ताव का हिस्सा है। इसका मकसद व्यवस्था को और स्पष्ट बनाना तथा कार्यान्वयन को बेहतर करना है।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अपने परामर्श पत्र में ओडीआर प्रणाली में औपचारिक रूप से डिपॉजिटरी को शामिल करने का प्रस्ताव रखा। साथ ही बाजार बुनियादी ढांचा संस्थानों (एमआईआई) को ओडीआर पोर्टल के परिचालन पहलुओं और ओडीआर संस्थानों के कामकाज पर संयुक्त रूप से एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने का सुझाव दिया।
नियामक ने प्रस्ताव दिया कि कुछ मामलों को मेल-मिलाप के बजाय सीधे मध्यस्थता में जाना चाहिए। इनमें 10 करोड़ रुपये से अधिक के दावे, पुराने/बार-बार आने वाली वाली शिकायतें, कुछ संस्थानों की तरफ से दायर मामले, कारोबारी सदस्यों के रिकवरी’ दावे और ऐसे मामले जहां दोनों पक्ष मध्यस्थता के लिए सहमत हैं, रखे जाने चाहिए।
सेबी ने कहा कि यदि मध्यस्थता का विकल्प नहीं चुना जाता है, तो मामला ओडीआर पोर्टल में बंद हो जाएगा, लेकिन इसे व्यवस्था के बाहर कानूनी रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है।
नियामक ने कहा, ‘‘शिकायतों/विवादों के मामले में 10 करोड़ रुपये के बराबर या उससे अधिक के वित्तीय दावों तथा पुरानी प्रकृति की और बार-बार आने वाली वाली शिकायतों के मामलों को सीधे मध्यस्थता के लिए भेजा जाना चाहिए।’’
सेबी ने सुझाव दिया कि सुलह समझौतों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए और कानूनी रूप से बाध्यकारी होना चाहिए। इसके अलावा, ओडीआर संस्थानों में सुलह से जुड़े और मध्यस्थों के लिए अलग-अलग पैनल होने चाहिए। एक व्यक्ति दोनों भूमिकाओं में काम नहीं कर सकता।
नियामक ने प्रस्ताव किया, ‘‘ओडीआर संस्थानों के पैनल में सुलहकर्ता और मध्यस्थों का वार्षिक आकलन किया जाएगा।’’
भाषा रमण अजय
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