नयी दिल्ली, आठ अगस्त (भाषा) बाजार नियामक सेबी ने वित्त के नये स्रोत के रूप में हरित बॉन्ड की तरह नील यानी ब्लू बॉन्ड का प्रस्ताव किया है। इस प्रकार की प्रतिभूतियों का उपयोग समुद्री संसाधनों के खनन और मछली पकड़ने समेत समुद्री अर्थव्यवस्था से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में किया जा सकता है।
सेबी के परामर्श पत्र के अनुसार, नियामक ने हरित बॉन्ड के लिये भी रूपरेखा मजबूत करने का सुझाव दिया है। इसके लिये हरित ऋण प्रतिभूतियों की परिभाषा को व्यापक बनाना तथा खुलासा नियमों को सुदृढ़ करने का प्रस्ताव किया गया है।
इन प्रस्तावों का मकसद इस ऋण प्रतिभूति को अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार संघ (आईसीएमए) द्वारा प्रकाशित अद्यतन हरित बॉन्ड सिद्धांतों के अनुरूप बनाना है।
परामर्श पत्र के अनुसार, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने जब हरित बॉन्ड प्रतिभूतियों के लिये रूपरेखा बनाई थी, तब से दुनिया में सतत वित्तपोषण के क्षेत्र में कई चीजें हुई हैं। ऐसे में इसकी समीक्षा की जरूरत है।
इसमें कहा गया है, ‘‘भारत में समुद्री अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं जैसे समुद्री संसाधनों के खनन, पर्यावरण अनुकूल तरीके से मछली पकड़ने, राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति और ‘ब्लू फ्लैग बीच’ यानी पर्यावरण अनुकूल पर्यटन मॉडल के क्षेत्र में नीले बॉन्ड के उपयोग की काफी गुंजाइश है।
देश में 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा है और 14,500 किलोमीटर अंतर्देशीय जलमार्ग है। ऐसे में समुद्री अर्थव्यवस्था के विकास से इस क्षेत्र को गति मिल सकती है।
फिलहाल देश की अर्थव्यवस्था में समुद्री अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी 4.1 प्रतिशत है।
नियामक ने दो श्रेणियों…प्रदूषण नियंत्रण और संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग की अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकनॉमी) …का सुझाव दिया है। ये क्षेत्र हरित परियोजनाओं के लिये पात्र हो सकते हैं।
सेबी नियम के तहत हरित ऋण प्रतिभूति (जीडीएस) कुछ श्रेणियों के अंतर्गत आने वाली परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये जारी किये जाते हैं।
भारतीय कंपनियों ने ईएसजी (पर्यावरणीय, सामाजिक और कंपनी संचालन) तथा हरित बॉन्ड के जरिये 2021 में सात अरब डॉलर जुटाए जो 2020 में 1.4 अरब डॉलर तथा 2019 में चार अरब डॉलर था।
भाषा
रमण अजय
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