मुंबई, छह मई (भाषा) सोने पर दिए जाने वाले कर्ज से संबंधित भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के मसौदे में प्रस्तावित दिशानिर्देशों को लागू करने से इस क्षेत्र में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की परिसंपत्ति वृद्धि की रफ्तार सुस्त पड़ सकती है। एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई गई है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, रिजर्व बैंक का यह मसौदा सोने के मूल्य के अनुपात में ऋण (एलटीवी) और ‘बुलेट’ ऋणों के नवीनीकरण/ टॉप-अप पर केंद्रित है। स्वर्ण ऋण देने वाली एनबीएफसी की ऋण वृद्धि पर इसका असर पड़ सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने यह मसौदा अप्रैल में वित्तीय संस्थाओं में नियामकीय ढांचे को सुसंगत बनाने और ऋण देने की प्रथाओं में अंतर को दूर करने के इरादे से जारी किया था।
क्रिसिल ने कहा कि आरबीआई ने सोने के आभूषण पर कर्ज देने में उल्लेखनीय वृद्धि के बीच कुछ ऋणदाताओं में देखी गई अनियमित प्रथाओं के संदर्भ में यह मसौदा जारी किया था।
क्रिसिल की निदेशक मालविका भोटिका ने कहा, ‘‘गिरवी रखी जाने वाली संपत्ति के मूल्य के मुकाबले दिए गए कर्ज की गणना और उसके उल्लंघन पर निर्देश स्वर्ण-ऋण देने वाली एनबीएफसी की वृद्धि संभावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं।’’
कर्ज अवधि के दौरान सिर्फ ब्याज भुगतान और अंत में एकमुश्त भुगतान वाले ‘बुलेट’ ऋणों के संदर्भ में क्रिसिल का मानना है कि इनके वितरण पर एलटीवी वर्तमान में 65-68 प्रतिशत से घटकर 55-60 प्रतिशत हो जाएगा, ताकि अर्जित ब्याज को ध्यान में रखा जाए और एलटीवी अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
भोटिका ने कहा, ‘‘इसका मतलब होगा कि सोने के आभूषणों के समान मूल्य के लिए कम ऋण वितरण होगा और अब एनबीएफसी ग्राहकों से समय-समय पर ब्याज संग्रह पर भी विचार कर सकते हैं।’’
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