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Monday, 4 November, 2024
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RBI ई-रुपये के प्रयोग को UPI के जरिए बढ़ाना चाहता है, पर रोजाना 10 लाख ट्रांजेक्शन ‘दूर की कौड़ी’ है

आरबीआई ने पिछले नवंबर में सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी या ई-रूपये का संचालन शुरू किया था और अब उसे यूपीआई के माध्यम से इसका उपयोग बढ़ाने की उम्मीद है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसको लेकर जागरूकता की कमी और इसे अपनाने में कई बाधाएं हैं.

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नई दिल्ली: भारत के डिजिटल परिवर्तन में तेजी लाने के लिए चल रहे अभियान के तहत, भारतीय रिजर्व बैंक ने नवंबर 2022 में एक सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी), ई-रुपी को शुरू किया. अब, आरबीआई का लक्ष्य इसके माध्यम से सीबीडीसी के उपयोग को बढ़ाना है. अब साल के अंत तक आरबीआई यूपीआई प्लेटफॉर्म के ज़रिए सीबीडीसी ट्रांजेक्शन को रोज़ाना बढ़ाकर 1 मिलियन या दस लाख तक करना चाहती है.

हालांकि, इसे शुरू करने में जुड़े हुए विशेषज्ञों का दावा है कि यह लक्ष्य “दूर की कौड़ी” है, विशेष रूप से ई-रुपी के बारे में जागरूकता की कमी और पायलट प्रोग्राम में भाग लेने वाले बैंकों की सीमित संख्या को देखते हुए.

सीबीडीसी किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा जारी की गई करेंसी होती है, लेकिन वह नोट और सिक्कों के बजाय डिजिटल रूप से मौजूद होती है. हालांकि, वे निजी क्रिप्टोकरेंसी के समान कार्य करते हैं, फिर भी वे ‘सुरक्षित’ माने जाते हैं और संपत्ति के बजाय लेनदेन के माध्यम के रूप में काम करते हैं.

फिलहाल आरबीआई को सीबीडीसी से काफी उम्मीदें हैं. पिछले महीने एक कॉन्क्लेव में बोलते हुए, आरबीआई के डिप्टी गवर्नर टी रबि शंकर ने कहा कि केंद्रीय बैंक सीबीडीसी-यूपीआई इंटरऑपरेबिलिटी को लागू करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है. उन्होंने बैंकों से वर्ष के अंत तक सीबीडीसी का उपयोग करके प्रतिदिन दस लाख लेन-देन संभालने के लिए तैयार रहने को भी कहा.

लेकिन मई में जारी केंद्रीय बैंक की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, सीबीडीसी के अब तक के पायलट रन के परिणाम “संतोषजनक और उम्मीदों के अनुरूप” रहे हैं, आरबीआई के अधिकारियों के साथ-साथ भाग लेने वाले बैंकों का कहना है कि इसके प्रयोग को बढ़ावा देने में रुकावटें आ सकती हैं.

वर्तमान में, ई-रुपये के बारे में जागरूकता अभी भी सीमित है, आरबीआई सीबीडीसी को समझने के लिए केवल एक कॉन्सेप्ट नोट और वीडियो उपलब्ध करा रही है.

रिटेल पेमेंट की बात करें तो, पायलट प्रोजेक्ट में केवल 13 भागीदार बैंक शामिल हैं, जिनमें से कुछ भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), बैंक ऑफ बड़ौदा, एचडीएफसी बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक हैं. इन बैंकों ने सीमित संख्या में ग्राहकों को डिजिटल रुपये के साथ प्रयोग करने और रिटेल पायलट प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने का विकल्प प्रदान किया है. हालांकि, यह नहीं पता है कि लोगों को किस आधार पर चुना गया है.

एचडीएफसी के एक बयान और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एचडीएफसी बैंक पहला और अब तक का एक मात्र बैंक है जिसने चुनिंदा यूज़र्स के लिए सीबीडीसी में लेनदेन के लिए यूपीआई स्कैन कोड पेश किया है. अन्य भागीदार बैंकों ने अभी तक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इंटरऑपरेटबिलिटी की शुरुआत नहीं की है.

‘दूर की कौड़ी’ लक्ष्य

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने फरवरी 2022 के केंद्रीय बजट प्रस्तुति के दौरान सीबीडीसी की शुरूआत की थी. इसके बाद, थोक पायलट प्रोजेक्ट नवंबर 2022 में शुरू हुआ, उसके बाद उसी साल दिसंबर में रिटेल पायलट प्रोजेक्ट शुरू हुआ.

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल जून तक लगभग 13 लाख यूज़र्स ने सीबीडीसी वॉलेट डाउनलोड किया, जिसमें लगभग 3 लाख विक्रेता ई-रुपये में भुगतान स्वीकार कर रहे थे.

अब, साल के अंत तक प्रति दिन दस लाख सीबीडीसी लेन-देन प्राप्त करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर विशेषज्ञों को संदेह है.

वित्तीय क्षेत्र में इनोवेशन को बढ़ावा देने और सुविधा प्रदान करने वाली आरबीआई की सहायक कंपनी, रिज़र्व बैंक इनोवेशन हब की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य मृत्युंजय महापात्रा ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “हमारी बैंकिंग प्रणाली को अभी भी इस बदलाव को प्रोसेस करने के लिए समय की आवश्यकता है.”

उन्होंने कहा, “पहली बिटक्वाइन के बारे में रिपोर्ट किए हुए एक दशक से अधिक समय हो गया है और अभी भी बहुत कुछ बाकी है. इसलिए, मुझे लगता है कि बड़े पैमाने पर सीबीडीसी को संचालित करने के लिए प्रौद्योगिकी और सुरक्षा के स्तर को अपनाने में हमें कुछ समय लगेगा. एक दिन में दस लाख लेन-देन एक दूरगामी लक्ष्य है.”

पीडब्ल्यूसी इंडिया में पेमेंट ट्रांसफॉर्मेशन के पार्टनर मिहिर गांधी इस आकलन से सहमत हुए, उन्होंने कहा कि वित्तीय संस्थान और आरबीआई अभी भी इस अवधारणा को अच्छी तरह से समझने की दिशा में काम कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि सीबीडीसी को व्यापक रूप से अपनाने के साथ एक प्रमुख मुद्दा यह है कि यह क्या है और यह यूपीआई से कैसे अलग है, इसके बारे में जागरूकता की कमी है, जिसमें पैसे का डिजिटल लेनदेन भी शामिल है.

हालांकि, गांधी ने कहा कि उपयोग के मामलों की संख्या में वृद्धि के साथ, आरबीआई अपने सहयोगियों के साथ इस विषय पर प्रभावी कम्युनिकेशन की रणनीति बनाएगा.


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UPI और Crypto से कैसे अलग है CBDC?

सीबीडीसी एक प्रकार की डिजिटल करेंसी है जो क्रिप्टोकरेंसी के समान डिस्ट्रीब्यूटेड-लेजर तकनीक (distributed-ledger technology) पर आधारित है, लेकिन यह थोड़ा अलग तरीके से काम करता है.

और हालांकि सीबीडीसी, यूपीआई के समान हैं, क्योंकि वे दोनों डिजिटल मुद्रा को स्टोर करने के लिए वॉलेट का उपयोग करते हैं, लेकिन दोनों को जारी किए जाने और यूज़ किए जाने का तरीका अलग है.

उन्होंने कहा, “सीबीडीसी और मौजूदा यूपीआई सुविधा के बीच एक बड़ा अंतर यह है कि यूपीआई में लेनदेन की सुविधा के लिए बैंक की आवश्यकता होती है. सीबीडीसी के साथ, बैंक की जरूरत नहीं होती है. आप डिजिटल मनी को सीधे रिसीवर के सीबीडीसी खाते में ट्रांसफर कर सकते हैं.”

सीबीडीसी के माध्यम से लेनदेन करते समय, डिजिटल करेंसी भेजने वाले व्यक्ति के ई-वॉलेट से डेबिट की जाती है और सीधे प्राप्तकर्ता के वॉलेट में जमा की जाती है. इसके तहत पैसे को बैंक में जमा नहीं किया जाता है.

हालांकि, रिटेल कस्टमर को सीबीडीसी बैंक के माध्यम से ही जारी किया जाता है.

सिस्टम जिस तरह से काम करता है वह यह है कि रिटेल कस्टमर वॉलेट-आधारित ऐप का उपयोग कर सकते हैं जहां से वे सीबीडीसी जारी करने का रिक्वेस्ट कर सकते हैं. रिक्वेस्ट को ऐप के माध्यम से प्रोसेस किया जाएगा और भागीदार बैंक सीबीडीसी को ग्राहक के वॉलेट में स्थानांतरित कर देगा.

इसका मतलब यह है कि आरबीआई और अंतिम ग्राहक के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है.

पीडब्ल्यूसी के मिहिर गांधी ने कहा कि वर्तमान रिटेल सिस्टम एपीआई-बेस्ड वॉलेट सिस्टम पर आधारित है, न कि लेनदेन के पैमाने के कारण ब्लॉकचेन तकनीक पर.

गांधी ने बताया, “पायलट में बैंक कस्टोडियन की भूमिका निभाते हैं. वे बिज़नेस-टू-बिज़नेस (B2B) और बिजनेस-टू-कस्टमर (B2C) दोनों भूमिकाएं निभाते हैं. बी2बी के लिए, बैंक ब्लॉकचेन तकनीक पर टोकन का उपयोग करके आरबीआई से सीबीडीसी प्राप्त करते हैं, और फिर बैंक सिक्युरिटीज़ के सेटलमेंट और लेनदेन के लिए डिजिटल मनी का उपयोग करते हैं जहां कोई कोलैटरल नहीं देना होता है.

गांधी ने कहा, बी2सी फ्रंट पर, बैंकों को एपीआई तकनीक का उपयोग करके आरबीआई द्वारा जारी डिजिटल सीबीडीसी को कस्टमर वॉलेट में ट्रांसफर करने की ज़रूरत है.

जबकि सीबीडीसी को अक्सर भारत में क्रिप्टोकरेंसी के रिप्लेसमेंट के रूप में समझा जाता है, यह बिटक्वाइन जैसी निजी तौर पर जारी डिजिटल संपत्तियों से अलग है.

महापात्रा ने कहा,“अन्य क्रिप्टोकरेंसी के विपरीत, सीबीडीसी डिस्ट्रीब्यूटेड-लेजर तकनीक पर आधारित है लेकिन सभी सिद्धांतों का पालन नहीं करता है. सीबीडीसी के मामले में केंद्रीय बैंक के पास डिजिटल रुपये को क्रिएट करने और जारी करने का एक मात्र अधिकार है, और इसका पूरा ट्रैक रिकॉर्ड भी उपलब्ध है.”

CBDC को बढ़ाने से क्या होगा फायदा?

वृहद स्तर पर, सीबीडीसी भौतिक नोटों की छपाई, भंडारण और वितरण की लागत को कम करने का एक अवसर प्रदान करते हैं. मुद्रा की छपाई आरबीआई के खर्च का एक बड़ा हिस्सा है, उदाहरण के लिए, 2021-22 में यह कथित तौर पर 5,000 करोड़ रुपये है.

इसके अलावा, आरबीआई अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को भी नियंत्रित करता है. केंद्रीय बैंक लगातार बड़े पैमाने पर करेंसी नोटों की छपाई नहीं कर सकता, क्योंकि इससे लंबी अवधि में उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ेगी, पैसे का मूल्य कम होगा और अंततः मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलेगा. सीबीडीसी टोकन प्रणाली के माध्यम से अर्थव्यवस्था में पैसा डालने का अधिक नियंत्रित तरीका प्रदान करके इस जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है.

इसके अलावा, महापात्रा ने कहा, सीबीडीसी नकली मुद्रा की समस्या को भी कम करता है.

उन्होंने कहा, “सीबीडीसी के साथ, पैसे को लेकर सुरक्षा भी बढ़ जाती है. डिजिटल रुपये के स्वामित्व और हस्तांतरण का रिकॉर्ड अपरिवर्तनीय है. इससे नकली मुद्रा का ख़तरा भी कम हो जाता है. चूंकि सीबीडीसी आरबीआई द्वारा अनुमोदित और जारी किया गया है, इसलिए सीबीडीसी जारी करने का अधिकार केंद्रीय बैंक के पास है.”

आरबीआई ने यह तर्क भी पेश किया है कि डिजिटल रुपये से बैंकों के शामिल होने की प्रक्रिया भी खत्म हो जाती है.

वर्तमान यूपीआई भुगतान प्रणाली में, जब कोई उपयोगकर्ता किसी व्यापारी/उपयोगकर्ता को पैसे भेजता है, तो पैसा प्रेषक के बैंक खाते से डेबिट हो जाता है और फिर यूपीआई प्रणाली के माध्यम से प्राप्तकर्ता के बैंक खाते में जमा हो जाता है. प्राप्तकर्ता बैंक के माध्यम से जाए बिना सीधे धन का उपयोग नहीं कर सकता है.

महापात्रा ने कहा कि सीबीडीसी के ज़रिए पैसा खो नहीं सकता है. भौतिक मुद्रा के विपरीत, डिजिटल मुद्रा को नष्ट नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका एक स्थायी ट्रेसिंग रिकॉर्ड होता है.

डिजिटल रुपये के नुकसान

सीबीडीसी प्रणाली में कुछ कमियां हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है ब्याज अर्जित करने में असमर्थता.

गांधी ने समझाया, “हालांकि सीबीडीसी एक डिजिटल मुद्रा है, लेकिन इससे बचत खातों में ब्याज नहीं मिलता है. आप सीबीडीसी को सावधि जमा, या बैंकों में आवर्ती जमा में डिपॉज़िट नहीं कर सकते जैसा कि आप मौजूदा मुद्रा के साथ कर सकते हैं. इसे केवल वॉलेट में ही रखा जा सकता है.”

उन्होंने यह भी कहा कि यह फैक्टर इसे अपनाने में बाधा के रूप में कार्य करता है क्योंकि यूज़र्स को अपने पैसे को गैर-ब्याज वाले खाते में ट्रांसफर करना मुश्किल है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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