मुंबई, आठ अप्रैल (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नकदी प्रबंधन को महामारी-पूर्व स्तर पर ले जाने को लेकर शुक्रवार को कदम उठाया। इसके तहत वित्तीय प्रणाली में मौजूद 8.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी को वापस लेने के लिए स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) को लागू करने और तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) का दायरा कम कर 0.50 प्रतिशत किये जाने की घोषणा की गयी।
चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली मौद्रिक समीक्षा के बाद आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इन कदमों का ऐलान करते हुए कहा कि एसडीएफ को रेपो दर से 0.25 प्रतिशत कम यानी 3.75 प्रतिशत पर रखा जाएगा। यह सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) से 0.50 प्रतिशत कम होगा। एमएसएफ बैंकों को जरूरत पड़ने पर कोष प्राप्त करने में मदद करता है।
एसडीएफ की शुरुआत आरबीआई अधिनियम में वर्ष 2018 में किए गए संशोधन से हुई थी। यह आरबीआई के लिये बैंकों के पास से अतिरिक्त नकदी लेने का एक माध्यम है जबकि इसमें बदले में सरकारी प्रतिभूति बैंकों को देने की जरूरत नहीं होती।
दास ने कहा, ‘‘एसडीएफ स्थिर दर वाले रिवर्स रेपो दर (एफआरआर) का स्थान लेगा। यह तरलता समायोजन सुविधा के अंतर्गत न्यूनतम दर होगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘एलएएफ कॉरिडोर नीतिगत रेपो दर के इर्दगिर्द होगा। इसके तहत एमएसएफ दर ऊपरी स्तर होगी जबकि एसडीएफ निचला स्तर होगा।’’
गवर्नर ने कहा, ‘‘इस प्रकार एलएएफ दायरे के अंतर्गत एक तरफ नकदी लेने और दूसरी तरफ देने की सुविधा होगी। रिजर्व बैंक के विवेकाधिकार से तय होने वाले रेपो एवं रिवर्स रेपो, ओएमओ (बाजार परिचालन) और सीआरआर के उलट एसडीएफ एवं एमएसएफ बैंकों के विवेकाधिकार से तय होगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एफआरआरआर 3.35 प्रतिशत पर बना रहेगा।
दास ने कहा कि हालात सामान्य होने के साथ केंद्रीय बैंक ने नकदी की स्थिति में नए सिरे से संतुलन साधने के लिए कदम उठाए हैं। इसके साथ ही रिजर्व बैंक ने ध्यान रखा कि ये कदम दुरूस्त होने के साथ सही समय पर भी उठाए गए हों।
दास ने कहा कि पिछले दो वर्षों में रिजर्व बैंक ने 17.2 लाख करोड़ रुपये की नकदी सुविधाएं मुहैया कराईं जिसमें से 11.9 लाख करोड़ रुपये का इ्स्तेमाल किया गया। इस तरलता राशि में से पांच लाख करोड़ रुपये या तो लौटाए जा चुके हैं या वापस लिए जा चुके हैं लेकिन महामारी के दौरान उठाए गए कदमों से व्यवस्था में अब भी 8.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी की स्थिति बनी हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘आरबीआई इस तरलता को क्रमिक रूप से कुछ साल में वापस ले लेगा जिसकी शुरुआत इसी साल से होगी।’’ इसके पीछे रिजर्व बैंक का मकसद यह है कि व्यवस्था में मौद्रिक नीति के मौजूदा रुख के अनुरूप तरलता अधिशेष का आकार बहाल हो जाए।
इसके साथ ही दास ने कहा कि बैंकों को इस वित्त वर्ष में अपने निवेश पोर्टफोलियो के बेहतर प्रबंधन के लिए एचटीएम (हेल्ड टू मैच्युरिटी) श्रेणी के अंतर्गत एसएलआर योग्य प्रतिभूतियों के मामले में सीमा बढ़ाकर 23 प्रतिशत करने का फैसला किया गया है। एचटीएम से आशय प्रतिभूतियों को परिपक्व होने तक बनाये रखने से है।
भाषा रमण पाण्डेय
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