मुंबई, सात अक्टूबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों का ऋण जोखिम प्रबंधन मजबूत करने के लिए मंगलवार को मौजूदा ‘घटित नुकसान’ आधारित प्रावधान व्यवस्था की जगह ‘अपेक्षित ऋण क्षति’ (ईसीएल) आधारित प्रावधान लागू करने का प्रस्ताव पेश रखा।
प्रस्तावित दिशानिर्देशों से तमाम वित्तीय संस्थानों के वित्तीय विवरणों की बेहतर ढंग से तुलना की जा सकेगी और ऋण जोखिम प्रबंधन के तरीके भी बेहतर किए जा सकेंगे।
आरबीआई के इस मसौदा दिशानिर्देश में वैश्विक स्तर पर स्वीकृत नियामकीय एवं लेखांकन मानकों के साथ तालमेल बैठाने का लक्ष्य रखा गया है। ईसीएल दृष्टिकोण के तहत परिसंपत्तियों के वर्गीकरण के लिए चरणबद्ध मानदंड लागू होंगे, जबकि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के वर्गीकरण के वर्तमान मानदंड बनाए रखे जाएंगे।
प्रस्तावित ढांचा ‘प्रभावी ब्याज दर’ (ईआईआर) विधि पर आधारित आय मान्यता और ईसीएल मॉडल के क्रियान्वयन के लिए मॉडल जोखिम प्रबंधन के व्यापक सिद्धांत भी सुनिश्चित करेगा।
आरबीआई ने कहा कि प्रस्तावित दिशानिर्देशों से अतिरिक्त एकबारगी प्रावधान की स्थिति बन सकती है लेकिन बैंक की न्यूनतम नियामक पूंजी जरूरतों पर इसका कुल असर न्यूनतम रहने का ही अनुमान है। इसके लिए पांच वर्ष का संक्रमण काल रखा गया है।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने पिछले हफ्ते द्विमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा के समय कहा था कि ईसीएल मसौदा सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर एक अप्रैल, 2027 से लागू किया जाएगा।
ईसीएल नियमों के तहत बैंक ऋण एवं निवेश जैसी वित्तीय परिसंपत्तियों को चरण-एक, चरण-दो और चरण-तीन में वर्गीकृत करेंगे और प्रत्येक रिपोर्टिंग तिथि पर जरूरी प्रावधान करेंगे।
इसके अलावा, केंद्रीय बैंक ने बेसल प्रारूप के तहत ‘ऋण जोखिम के मानकीकृत दृष्टिकोण’ के संशोधित क्रियान्वयन के लिए मसौदा दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। इसका उद्देश्य कॉरपोरेट, एमएसएमई और रियल एस्टेट के जोखिम भार का अधिक सूक्ष्म और संवेदनशील निर्धारण करना है।
नए नियमों में नियमित समय पर भुगतान करने वाले क्रेडिट कार्ड धारकों को भी नियामकीय खुदरा श्रेणी में शामिल किया गया है।
रिजर्व बैंक ने आम लोगों और हितधारकों से इन मसौदा दिशानिर्देशों पर 30 नवंबर, 2025 तक टिप्पणियां आमंत्रित की हैं।
भाषा प्रेम प्रेम रमण
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