नई दिल्ली: भारत के केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), ने इस सप्ताह जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि क्रिप्टो एसेट्स के बारे में उसके सामने उपलब्ध विकल्पों में से एक उन्हें ‘इम्पलोड’ (आतंरिक रूप से बिखर जाने) करना है, हालांकि उसने यह भी स्वीकार किया कि इस विकल्प के साथ कुछ जोखिम भी हैं.
कुल मिलाकर, आरबीआई का कहना है कि भारत की जी-20 अध्यक्षता के तहत उसकी प्राथमिकताओं में से एक क्रिप्टो एसेट्स पर वैश्विक ढांचा विकसित करना है, जिसमें बिना किसी समर्थन वाले क्रिप्टो एसेट, स्टेबल कॉइन और विकेंद्रीकृत वित्त पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की संभावना शामिल हो सकती है.
गुरुवार शाम को जारी अपनी ‘वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट‘ के दिसंबर 2022 के संस्करण में – आरबीआई ने कहा कि हाल के दिनों में हुई कई घटनाओं ने क्रिप्टो उद्योग से जुड़े जोखिमों को रेखांकित किया है, जिसने केंद्रीय बैंक को इस उद्योग और आगे की राह पर कुछ अंतर्दृष्टि दी है.
आरबीआई ने कहा, ‘क्रिप्टो एक्सचेंज ‘एफटीएक्स’ के गिर जाने तथा इसके दिवालियापन की वजह से क्रिप्टो एसेट्स वाले बाजार में हुई भारी बिकवाली ने क्रिप्टो पारिस्थितिकी तंत्र में अंतर्निहित कमजोरियों को उजागर किया है. हाल ही में, सबसे बड़े क्रिप्टो एक्सचेंज माने जाने वाले बिनेंस ने भी अपने प्लेटफॉर्म पर स्टेबल कॉइन्स की निकासी पर रोक लगा दी है.’
आरबीआई ने इस बात को भी नोट किया कि एफटीएक्स में हुए आंतरिक बिखराव’ से पहले टेरायूएसडी/लूना (जो कि सेल्सियस पर चलने वाली एल्गोरिथम स्टेबल कॉइन है) का विफल हो जाना और एक क्रिप्टो ऋणदाता तथा थ्री एरो कैपिटल नाम के एक क्रिप्टो करेंसी हेज फंड, के दिवालियापन के मामले भी सामने आये थे.
आरबीआई ने कहा है कि ‘इस उथल-पुथल ने कई सारे नजरिए देखने को मिले हैं. सबसे पहला, क्रिप्टो एसेट्स अत्यधिक अस्थिर हैं. बिटकॉइन की कीमत नवंबर 2021 के अपने चरम से (14 दिसंबर 2022 तक) 74 प्रतिशत कम हो गई है. अन्य क्रिप्टो एसेट्स की कीमतों में भी इसी तरह की गिरावट और बढ़ती हुई अस्थिरता का अनुभव किया गया है.
आरबीआई के अनुसार दूसरा यह कि स्टेबल कॉइन लूना में गिरावट इस बात की याद दिलाती है कि किसी आधिकारिक मुद्रा के मुकाबले स्थिर मूल्य बनाए रखने का वादा करने वाला स्टेबल कॉइन भी क्लासिक कॉन्फिडेंस रन (मुद्रा में विश्वास में आई कमी) के अधीन है.’
एक ‘स्टेबल कॉइन’ को यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यह अपने मूल्य को किसी अन्य परिसंपत्ति वर्ग, जैसे कि किसी आधिकारिक मुद्रा या सोना, के बराबर आंकने की कोशिश करता है, ताकि उस तरह की तीव्र अस्थिरता को कम किया जा सके, जो अक्सर अन्य अनपेग्ड (बिना किसी बंधन वाली वाली) क्रिप्टो एसेट की कीमतों में देखा जाता है.
तीसरा, आरबीआई ने इस बात को भी नोट किया कि एफटीएक्स और सेल्शियस जैसे क्रिप्टो एक्सचेंज की गिरावट से पता चलता है कि कैसे इस तरह के ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म उधार देने, दलाली, समाशोधन (क्लीयरिंग) और निपटान (सेटलमेंट) जैसे अन्य कार्यों को अंजाम दे रहे थे, जो उनके रिस्क प्रोफाइल को और जटिल बना देते हैं.
आरबीआई ने कहा, ‘इससे उन्हें उनके अनिवार्य कार्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक जोखिम की तुलना में ऋण, बाजार और मौद्रिक तरलता (लिक्विडिटी) सम्बन्धी जोखिमों कहीं अधिक असमानुपाती रूप से सामना करना पड़ा.’
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क्रिप्टो पॉलिसी :- जी–20 की एक प्राथमिकता
आरबीआई ने कहा कि क्रिप्टो एसेट को विनियमित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई सारे विकल्पों पर विचार किया जा रहा है.
उसने कहा था कि इनमें से एक विकल्प क्रिप्टो एसेट और इस उद्योग से जुड़े निकायों को विनियमन के अधीन लाना और उन पर पारंपरिक वित्तीय मध्यस्थों और एक्सचेंज पर लागू होने वाले समान नियमों के जैसे ही ‘समान जोखिम-समान-नियामक-नतीजे’ (सेम रिस्क, सेम-रेगुलेटरी-आउटकम) वाले सिद्धांत को लागू करना है
एक अन्य विकल्प, जिसका आरबीआई ने पहले समर्थन किया था वह यह है कि क्रिप्टो एसेट्स पर प्रतिबंध लगाना ‘क्योंकि वास्तविक जीवन के उनके उपयोग के मामले न के बराबर हैं.’
हालांकि, तीसरा दृष्टिकोण क्रिप्टो एसेट्स के प्रति भारत सरकार के रवैये को ध्यान में रखते हुए सबसे अधिक अनुकूल प्रतीत होता है.
आरबीआई ने कहा, ‘एक तीसरा विकल्प यह है कि इसे अपने आप से बिखरने दिया जाए और इसे व्यवस्थित रूप से अप्रासंगिक बना दिया जाए, क्योंकि इसकी अंतर्निहित अस्थिरता और जोखिम अंततः इस क्षेत्र को बढ़ने से रोकेंगे ही.’
हालांकि, केंद्रीय बैंक ने यह भी कहा है यह तीसरा विकल्प जोखिम भरा है, क्योंकि यह क्षेत्र मुख्यधारा के वित्त के साथ अधिक जुड़ा हुआ बन सकता है और इसलिए वास्तविक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है. हालांकि, इसका कहना है कि अब तक यह अंतर्संबंध सीमित ही है
इसने कहा, ‘क्रिप्टो एसेट्स का बाजार अस्थिर बना हुआ है, फिर भी इसका असर अभी तक भी औपचारिक वित्तीय प्रणाली की स्थिरता पर नहीं पड़ा है.’
केंद्रीय बैंक ने इस बात को भी नोट किया कि नई तकनीक और बिजनेस मॉडल के ‘प्रणालीगत स्तर’ तक पहुंच जाने के बाद उन्हें विनियमित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है और इसलिए नीति निर्माताओं के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे इसके बारे में देरी न करते हुए जल्द से जल्द एक उपयुक्त नीतिगत दृष्टिकोण तैयार करें.
आरबीआई ने कहा, ‘इस संदर्भ में, भारत की जी- 20 की अध्यक्षता के तहत आने वाली प्राथमिकताओं में से एक वैश्विक विनियमन के लिए एक ऐसी रूपरेखा विकसित करना है, जिसमें बिना किसी समर्थन वाले क्रिप्टो एसेट, स्टेबल कॉइन और डेफी (डिसेंट्रलाइज़्ड फाइनेंस या विकेंद्रीकृत वित्त) पर प्रतिबंध लगाए जाने की संभावना भी शामिल हो.’
(अनुवादः रामलाल खन्ना | संपादनः हिना फ़ातिमा)
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