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मुंबई, छह जून (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आर्थिक वृद्धि तेज करने के मकसद से शुक्रवार को प्रमुख नीतिगत दर रेपो को उम्मीद से अधिक 0.5 प्रतिशत घटाकर 5.5 प्रतिशत कर दिया। इसके साथ ही अप्रत्याशित रूप से नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी एक प्रतिशत की कटौती की घोषणा की।
इस कदम से बैंकों के पास कर्ज देने के लिए अधिक नकदी उपलब्ध होगी जो अर्थव्यवस्था को गति देने का काम करेगी। इससे मकान, वाहन और अन्य कर्ज सस्ते होने की उम्मीद है।
आरबीआई ने यह कदम ऐसे समय उठाया है जब मुद्रास्फीति अप्रैल में घटकर लगभग छह साल के निचले स्तर 3.16 प्रतिशत और आर्थिक वृद्धि दर 2024-25 में चार साल के न्यूनतम स्तर 6.5 प्रतिशत पर आ गयी है।
आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा की अगुवाई वाली छह-सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने प्रमुख ब्याज दर रेपो दर 0.50 प्रतिशत घटाकर 5.5 प्रतिशत करने का निर्णय किया। समिति के छह में से पांच सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया। समिति ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को भी एक प्रतिशत घटाकर तीन प्रतिशत कर दिया। इससे बैंकों में नकदी में 2.5 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करते हुए मल्होत्रा ने कहा, ‘‘उभरती वृहद आर्थिक, वित्तीय गतिविधियों और आर्थिक परिदृश्य पर गौर करने के बाद एमपीसी ने रेपो दर में 0.50 प्रतिशत कटौती करने का निर्णय किया है।’’
इस कटौती के साथ आरबीआई इस साल फरवरी से लेकर अबतक रेपो दर में कुल एक प्रतिशत की कटौती कर चुका है। इस साल फरवरी और अप्रैल की मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर में 0.25-0.25 प्रतिशत की कटौती की गयी थी। आरबीआई ने मई 2020 के बाद पहली कटौती फरवरी में की थी।
आरबीआई ने इसके साथ ही मौद्रिक नीति रुख को उदार से बदलकर तटस्थ कर दिया है। इसका मतलब है कि केंद्रीय बैंक आर्थिक स्थिति के हिसाब से नीतिगत दर में समायोजन को लेकर जरूरत पड़ने पर जरूरी कदम उठा सकता है।
मल्होत्रा ने कहा, ‘‘रेपो दर में एक प्रतिशत की कटौती के बाद मौद्रिक नीति के पास वृद्धि को समर्थन देने के लिए अब सीमित गुंजाइश बची है।’’
रेपो वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। इससे पहले, पांच अगस्त, 2022 को यह 5.40 प्रतिशत के स्तर पर थी।
रेपो दर में कटौती के साथ ही इससे जुड़ी सभी बाह्य मानक ब्याज दरें (ईबीएलआर) कम हो जाएंगी। अगर बैंक इसका पूरा लाभ कर्जदारों को देते हैं, तो आवास, वाहन और व्यक्तिगत कर्ज पर मासिक किस्तों (ईएमआई) में 0.5 प्रतिशत की कमी आएगी।
मल्होत्रा ने कहा, ‘‘आरबीआई को उम्मीद है कि बैंक रेपो दर में कमी का लाभ उपभोक्ताओं को देंगे। साथ ही सीआरआर में एक प्रतिशत की कटौती से उनके पास जो अतिरिक्त नकदी होगी, उससे कर्ज वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।’’
सीआरआर में छह सितंबर से 29 नवंबर, 2025 के बीच चार बराबर किस्तों में 0.25 प्रतिशत की कटौती होगी जिससे यह घटकर तीन प्रतिशत रह जाएगी।
उन्होंने कहा, ‘‘इस मौद्रिक नीति उपाय को आर्थिक वृद्धि को आकांक्षी स्तर पर ले जाने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए। आर्थिक वृद्धि की आकांक्षा सात से आठ प्रतिशत के बीच वृद्धि की है।’’
नीतिगत दर में कटौती के कारणों का जिक्र करते हुए मल्होत्रा ने कहा, ‘‘पिछले छह महीनों में मुद्रास्फीति में काफी नरमी आई है। यह अक्टूबर, 2024 में संतोषजनक स्तर से ऊपर थी और अब यह व्यापक आधार पर नरमी के संकेत के साथ लक्ष्य से काफी नीचे आ गई है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘निकट भविष्य और मध्यम अवधि के परिदृश्य को देखते हुए हमें यह भरोसा है कि वर्ष के दौरान यह निर्धारित लक्ष्य से कम रहेगी।’’
मुख्य रूप से खाद्य वस्तुओं के दाम में नरमी से खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में घटकर लगभग छह साल के निचले स्तर 3.16 प्रतिशत पर आ गयी।
आरबीआई को खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है।
मल्होत्रा ने कहा कि चुनौतीपूर्ण वैश्विक परिवेश और अनिश्चितता के बीच वृद्धि उम्मीद से कम बनी हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘ इस प्रकार, आर्थिक वृद्धि की गति को बढ़ाने के लिए नीतिगत उपायों के माध्यम से घरेलू निजी खपत और निवेश को प्रोत्साहित करना जरूरी है।’’
मल्होत्रा ने कहा, ‘‘वृद्धि-मुद्रास्फीति की स्थिति को देखते हुए न केवल नीतिगत मोर्चे पर ढील को जारी रखना आवश्यक है, बल्कि वृद्धि को समर्थन देने के लिए ब्याज दर में कटौती को भी आगे बढ़ाना होगा।’’
यह कटौती ऐसे समय में की गई है जब मार्च में समाप्त वित्त वर्ष 2024-25 में आर्थिक वृद्धि चार साल के निचले स्तर 6.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भी समान आर्थिक वृद्धि का ही अनुमान लगाया है। इसका कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शुल्क नीतियों के बाद बढ़ता व्यापार तनाव है।
केंद्रीय बैंक ने 2025-26 के लिए अपने मुद्रास्फीति अनुमान को चार प्रतिशत से घटाकर 3.7 प्रतिशत कर दिया है।
उन्होंने कहा, ‘‘जबकि मूल्य स्थिरता एक आवश्यक शर्त है, लेकिन यह निश्चित रूप से आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।’
पिछले बार की महंगाई दर में कमी के विपरीत, वर्तमान नरमी (मुद्रास्फीति लगातार तीन महीनों से चार प्रतिशत से नीचे बनी हुई है) व्यापक स्तर पर खाद्य वस्तुओं में कमी का नतीजा है।
सीआरआर में कटौती से बैंकों में नकदी बढ़ेगी और वित्तपोषण लागत कम होगी।
आवास ऋण और निर्माण के लिए कर्ज के लिए ब्याज दरें कम होने से आवास और बुनियादी ढांचा क्षेत्र को गति मिलेगी। साथ ही, इससे आवास की मांग में तेजी आने की उम्मीद है।
इन उपयों से वित्तपोषण लागत में कमी के साथ पूंजीगत व्यय में तेजी आने की उम्मीद है।
भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान प्रभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, मई 2025 में बैंक ऋण वृद्धि घटकर 9.8 प्रतिशत रह गई, जो अर्थव्यवस्था में कर्ज देने में व्यापक गिरावट को बताती है।
मल्होत्रा ने कहा, ‘केंद्रीय बैंक को विश्वास है कि उसकी घोषणाएं कर्ज देने को बढ़ावा देने में मदद करेंगी।’’
उन्होंने कहा कि मजबूत वृहद आर्थिक बुनियाद और मुद्रास्फीति में नरमी मौद्रिक नीति के लिए वृद्धि का समर्थन करने के लिए गुंजाइश बनाती है…।’’
मल्होत्रा ने कहा, ‘‘चूंकि वैश्विक परिवेश अनिश्चित बना हुआ है, इसलिए निरंतर मूल्य स्थिरता के बीच घरेलू वृद्धि पर ध्यान देना और भी महत्वपूर्ण हो गया है।’’
एमपीसी की अगली बैठक चार से छह अगस्त के बीच होगी।
भाषा रमण प्रेम
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